Thursday, 30 December 2021

शिकागो धर्म संसद और वर्तमान विधर्मी संसदें।




मैं आए दिन अपने धर्म से जुड़ी, अपने ग्रन्थों, पुराणों से सम्बंधित निश्छल, आलोकिक, और अनूठी बातें पढ़ता हूँ। भजन, स्रोत, कथाएं सुनता हूँ। और कभी-कभी उन्हें गुनगुनाता हूँ, Recollect करता हूँ। यह सब करते हुए मैं हमेशा रोमांच, उल्लास और उजास से भर उठता हूँ। मन में हिलौर उठती हैं, "आज कुछ अच्छा जाना, कुछ सार्थक पढ़ा।" का विचार मन को प्रसन्न कर देता है।

और जब-जब ऐसा होता है, तब-तब मैं सोचता हूँ कि जो नितांत पाखण्डी, विभिन्न संचार माध्यमों से संसार के समक्ष मेरे धर्म के प्रतिनिधि बनते हैं, वे धर्म से किस क़दर दूर हैं। भ्रष्ट, कलुषित और समूचे नकारात्मक ये लोग आख़िर किस तरह "सनातन" की अगुवाई करने का दावा कर सकते हैं? यह सब बहुत निराशाजनक है। निंदनीय है। 

मेरे प्रिय दोस्तों - "धर्म।" - ये शब्द इतना बड़ा, इतना विस्तृत, विशाल है कि एक प्राप्त जन्म में इसकी संपूर्णता को समझा नहीं जा सकता, इस पर स्वामित्व नहीं पाया जा सकता। केवल और केवल इसका आनंद ही लिया जा सकता है। आप भी आनंद लीजिए। धर्म को अपने ह्रदय में स्थान दीजिए, और मस्तिष्क में अपने विवेक, अपने ज़मीर को। 

वर्तमान में कोई भी तथाकथित बाबा, साधु, सन्त, महंत, योगी, मौलवी, फ़ादर आपको आपके "विश्वास", आपकी "आस्था" के समीप नहीं ले जा रहा। ले जा ही नहीं सकता। वह आपको सिर्फ़ अपने स्वार्थ के हत्ते चढ़ाने की कामना रखता है। वह अपने पीछे भ्रमित, सम्मोहित और भयभीत लोगों की भीड़ खड़ी करना चाहता है। और ये हालात उन्हीं लोगों के हैं जो स्वयं को भगवान का मैसेंजर(संदेश वाहक।) मानते हैं। इनकी तो छोड़िए, हाल-फ़िलहाल में तो आप चंद सियासतदानों की, कुछ सियासी दलों की बातों में आने लगे हैं। ये वाक़ई दुखदायी है।

क्या अपने धर्म, अपनी आस्था, अपने आवरण को समझने के लिए आपको नेता, अभिनेता, सत्ताधीशों की आवश्यकता है? अगर हाँ, तो न-जाने आप किस सत्य की ओर बढ़ रहे हैं। बहरहाल, जिस भी ओर आप अग्रसर हैं, आपको मेरी शुभकामनाएं। आज के समय में रामकृष्ण परमहंस की कही एक बात को बार-बार उल्लेखित करने की आवश्यकता महसूस होती है  - "नदियां बहती हैं, क्योंकि उनके जनक - पहाड़, अटल हैं।"

मेरे "सनातनी" भाइयों - अपने विवेक, अपनी समझ और अपने भीतर उपजे विचारों से ही अपने जीवन के छोटे-बड़े फ़ैसले लीजिए। और अपने लक्ष्य, अपने स्वप्न, अपने सत्य की खोज में निश्चिंत, निस्संग और निर्भीक होकर बहिये। क्योंकि हमारा ईश्वर अटल है। जब कोई नितांत मूर्ख आपसे कहे कि आपका धर्म संकट में है, तब परमहंस जी की कही इस बात का स्मरण करें। और फिर वन में बैठे एक बाघ के बारे में सोचें, "बाघ सी निर्भयता।" के बारे में सोचें।

याद रखें हिन्दू मानस के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति और युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद की इस बात को, जिसका उद्घोष उन्होंने शिकागो की धर्म-संसद में किया था -

"अगर विश्व धर्म संसद ने दुनिया को कुछ दिखाया है तो वह यह हैः इसने दुनिया को यह साबित किया है कि शुचिता, पवित्रता और परोपकार पर दुनिया के किसी चर्च का एकाधिकार नहीं है और हर धर्म ने उदात्त चरित्र वाले पुरूषों और महिलाओं को जन्म दिया है। इस प्रमाण के बावजूद, यदि कोई यह सपना देखता है कि केवल उसका धर्म जिंदा रहेगा और अन्य धर्म नष्ट हो जाएंगे, तो मैं अपने दिल की गहराई से उस पर दया करता हूं। मैं उससे कहना चाहता हूं कि जल्दी ही विरोध के बावजूद, हर धर्म के झंडे पर यह लिखा होगा ‘मदद करो, लड़ो मत‘, ‘आत्मसात करो, विध्वंस न करो‘, ‘सौहार्द और शांति न कि कलह और मतभेद‘।‘‘

किसी स्वघोषित, ज़हरीली, भड़काऊ, और उन्मादी धर्म-संसद की बात सुनने से किसी का भला नहीं हो सकता। मानवता का तो कतई नहीं, कभी नहीं। जिस किसी को इस तरह की संसदों में अपना, अपने परिवार, अपने परिवेश, अपने समाज का उत्थान दिखाई देता है, उनके लिए शायर दुष्यंत कुमार के ये शेर प्रासंगिक हो जाते हैं -

"बाढ़ की संभवनाएं सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं।

जिस तरह चाहे बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं।।

सनातन हिन्दू धर्म का शाश्वत संदेश है - "स्वीकार्यता, संकीर्णता नहीं। Inclusivity, Exclusivity नहीं। मानवता, दानवता नहीं। प्रेम, घृणा नहीं।"

बाक़ी, जैसी जिस की सोच। सृष्टि की सीमा, हमारी दृष्टि की सीमा से कई अधिक असीम और अमाप है। है ना?

Keep Visiting!

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