Saturday 7 July 2018

मुलाक़ात : मोनिशा कुमार गम्बर।


Monisha K. Gumber

Author of Dying to live, Sick of being healthy & Bahir

फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डिन। यदि में कहूँ की आज का अहद, आज का समय इन चार या पांच सोश्यल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की गिरफ्त में है तो कोई बड़ी बात, कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लोगों के मिलने-जुलने, बात करने, अपने एहसासों को साझा करने के यह प्लेटफॉर्म्स आज लगभग हर चीज़ के लिए एक मरकज़ बन गए हैं। बिज़नेस मेन से लेकर डॉक्टर तक और पेंटर से लेकर लेखक तक सभी अपने-अपने अमल के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। लेखक, शायर, अदीब या फनकारों के लिए तो सोश्यल मीडिया वाकई एक बहुत महत्वपूर्ण जगह है। मुख्तलिफ़ ख़यालात के मुख्तलिफ़ अदीब सोश्यल मीडिया के ज़रिये मिलते-जुलते हैं, अपनी किताबें साझा करते हैं, इवेंट्स में शामिल होते हैं और नाजाने क्या-क्या।

आज मैं आपको जिस लेखिका से मिलवाने जा रहा हूँ या जिनकी बात करने वाला हूँ उनसे मेरी मुलाक़ात फेसबुक पर ही हुई थी। हुए यूँ की "Writers for Writers" नामक एक फेसबुक ग्रुप में मैंने एक पोस्ट देखि जिसके तहत एक लेखिका अपनी अगली किताब में प्रकाशित करने के लिए कुछ कविताएँ तलाश कर रहीं थीं। पोस्ट में एक ई-मेल आईडी दी हुई थी जिसपर कविता भेजी जानी थी। मैं उस समय एक स्टूडेंट था और छोटी-मोटी नज्में करता रहता था। किसी किताब में प्रकाशित होने का मौका गंवाना नहीं चाहता था और इसलिए मैंने भी अपनी एक कविता मेल कर दी। कमाल की बात ये है की वो कविता पसंद कर ली गई और फिर उस किताब में शामिल भी हुई। उस किताब का नाम था "डाईंग टू लिव" और उसकी ऑथर थीं मोनिशा कुमार गम्बर। इस किताब से पहले वह "सिक ऑफ़ बींग हेल्दी" नाम की एक बेस्ट-सेलर भी लिख चुकी थीं।

उनकी लिखी इन दोनों किताबों को पढ़ने के बाद मैंने उनके बारे में जो ख्याल इजाद किया वो यह था कि यह लेखिका लड़कियों, खासकर के युवा लड़कियों की ज़िन्दगी में आने वाली मासूम सी समस्याओं को उठाकर उन्हें एक बेहेतरीन कहानी में तब्दील कर देती हैं। पश्चिमी एशिया में बसे एक छोटे से टापू-नुमा देश बहरीन से ताल्लुकात रखने वाली मोनिशा कुमार के लेखन की सबसे अच्छी बात यह है कि अपने ज्ञान, अपने इल्म को साबित करने के लिए यह कठिन भाषा और शब्दों का इस्तेमाल नहीं करतीं। एक अंग्रेजी कहावत है "Keep it Real and Simple" इनका लेखन कुछ-कुछ ऐसा ही है। रस्किन बॉन्ड के लफ़्ज़ों में कहूँ तो " It is clarity that she is striving to achieve, not simplicity"

A Reader with "Bahir"

मोनिशा कुमार गम्बर की एक और बात जिसने मुझे ख़ासा मुतासिर किया वो यह की ये अपनी किताबों में नए लेखकों और कवियों की रचनाओं को शामिल करके ना केवल उन्हें बल्कि कविता को बढ़ावा देती हैं। उन्ही के लफ़्ज़ों में "आई थिंक गुड क्रिएशंस शुड गेट ए गुड प्लेटफ़ॉर्म एंड इफ आई केन डू समथिंग फॉर इट देन आई विल" याद आता है जाने-माने गीतकार प्रसून जोशी का एक कथन की "कविता हमे जिंदा नहीं रख सकती, हमे ही कविता को जिंदा रखना होगा" एक पद्य लेखिका होते हुए भी कविता और ग़ज़ल के प्रति उनका रुझान काबिल ए तारीफ है। अपनी लेटेस्ट अर्थात नवीनतम किताब "बाहिर" में तो उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ चुने हुए अशआर इस्तेमाल भी किये हैं। मिसाल केे तौर पर उनका यह जगज़ाहिर शेर कि "हज़ारों ख्वाइशें ऐसी के हर ख्वाइश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले"

पहली किताब "सिक ऑफ़ बींग हैल्दी" जहाँ अपने आप को स्वीकार करने की कहानी थी वहीँ दूसरी किताब "डाईंग टू लिव" बहादुरी और आत्मविश्वास का अफसाना था। हाल ही मैं रिलीज़ हुई "बाहिर" उमीदों और ज़िन्दगी में आने वाले अज़ाबों से लड़कर उनसे जीतने की कहानी है। तीन अलहदा मुद्दों पर बात करते हुए ये तीन किताब-नुमा नदियाँ एक ही समंदर में आकर समाहित हो जाती हैं। मानव-संवेदना के समंदर में। अपनी तीन किताबों के ज़रिये इन्सान के मुख्तलिफ मरासिम के मुतालिक लेखिका ने बहुत कुछ जाना, समझा और लिखा है और शायद इसलिए इन किताबों का पढ़ा जाना एक पाठक के लिए ज़रूरी है। एक लेखिका के बारे में की गई बातों को मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड के शब्दों के साथ ख़त्म करूँगा।

"Book readers are special people and they will always turn to a book as ultimate pleasure, those who not read are the unfortunate ones"

Keep Visiting!

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