Friday 29 June 2018

उम्मीदों का अफ़साना : बाहिर।


किताब - बाहिर

लेखिका - मोनिशा कुमार गम्बर

"आते हैं राहों में मसाइब कई, यूँ ही नहीं होता करिश्मा कोई।" यह शेर मैंने पॉल ए कॉफ़मेन द्वारा निर्देशित फिल्म "मैजिक बियौंड वर्ड्स" को देखने के बाद कहा था। यह फिल्म महान अंग्रेज़ी लेखिका जोआन रोलिंग अर्थात जे के रोलिंग के जीवन पर आधारित थी। हर शख्स की ज़िन्दगी में उतार-चढाव, उरूज़-ज़वाल, सफलता-असफलता आती हैं लेकिन अपनी परेशानियों, अपनी तकलीफों, अपने डर का मज़बूती से सामना करने वाले ही आखिरकार अपनी मंज़िल तक पहुँच पाते हैं।

पश्चिमी एशिया के एक छोटे से देश बहरीन से ताल्लुकात रखने वाली लेखिका मोनिशा कुमार गम्बर की नवीनतम किताब, उनका लेटेस्ट नॉवेल "बाहिर"  एक ऐसी ही लड़की की कहानी है जो सारे अज़ाबों, परेशानियों और तकलीफों से लड़-झगड़कर अपना मकाम हासिल करती है। इस लड़ाई में वह मानसिक तौर पर कितनी ही बार घायल होती है लेकिन हिम्मत नहीं हारती और पूरी ताकत से फिर उठ खड़ी होती है। ज़िन्दगी के फलसफे को चंद सफ़्हों में समेट देने वाला यह अफ़साना पकिस्तान से शुरू होता है जहाँ एक छोटे से घर में कहानी की मुख्य किरदार "सवेरा" का जन्म होता है। बेहद खूबसूरत नाक-नक्श वाली बच्ची सवेरा के साथ जन्म के तुरंत बाद ही नाइंसाफी हो जाती है और उसकी माँ उसे अपनी बहन को सौंप देती है। एक गोद ली हुई बच्ची की तरह सवेरा की परवरिश अपने घर से दूर सऊदी अरब में होती है जहाँ उसे वो प्यार, वो दुलार, वो परवाह, वो तालीम हासिल नहीं हो पाती जिसकी वह हक़दार थी। अपने बेटों में मसरूफ उसकी मौसी अर्थात उसकी माँ की बहन उसपर ज़रा सा भी ध्यान नहीं देती जिसके परिणामस्वरुप बड़ी छोटी उम्र में ही सवेरा बेहद निराश और उपेक्षित महसूस करने लगती है।

मात्र सतराह साल की उम्र में उसकी शादी एक गंवार, अनपढ़ आदमी के साथ कर दी जाती है जो सवेरा को एक हाड-मास के पुतले से अधिक कुछ नहीं समझता। बड़ी मुश्किलातों से जो लड़की खुद को सँभालने लायक हुई थी, बहुत ही कम समय में चार बच्चों की माँ बन जाती है। अपने पति द्वारा मिले त्रास से परेशान होकर वह वापस अपने परिवार के पास लौट जाती है लेकिन वहां भी उसे हिकारत की नज़रों से देखा जाता है और उसे कोई इज्ज़त नहीं दी जाती। अनुभवहीन होते हुए भी वह अपने बच्चों के लिए एक निजी सलून में काम करने लगती है। उसका सपना है की अच्छे पैसे इकठ्ठा कर वह अपना पार्लर खोलेगी। लेकिन उसके इस सपने को तब धक्का पहुँचता है जब उसका स्पोंसर ही उसपर वेह्शी और वेश्यावृत्ति का आरोप लगाकर उसे सऊदी से निकलवा देता है। उसकी दूसरी शादी भी असफल होती है और इसलिए सवेरा अन्दर से टूट जाती है। मगर हर बार अपने बच्चों की आँखों में उसे उम्मीद की किरण नज़र आती और वह सब भूल कर फिरसे एक नई शुरुआत कर देती।

अपने बच्चों को लेकर दरबदर होने के बाद वह पकिस्तान में अपनी बहन के यहाँ चली जाती है और फिर वहां से बहरीन। अब बहरीन जाकर वह क्या करती है? कहाँ जाती है? किसके साथ रहती है? यह सब सवाल हैं जिनके जवाब आपको किताब में मिलेंगे।

लेखिका ने कहानी को तीन मुख्तलिफ मुल्कों के इर्द-गिर्द रचा है जिससे उसकी बेहतरीन लेखन क्षमता साफ़ ज़ाहिर होती है। तीनों ही देशों के कल्चर को, उनके मरासिम को जिस तरह से पन्नों पर उतारा गया है वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। लेखिका ने मुख्य किरदार का नाम सवेरा रखा है जो उस किरदार की कहानी पर पूरी तरह फिट बैठता है। तमाम परेशानियों के बाद भी किरदार का आशावादी होना इस बात को साबित भी करता है। "बाहिर" से पूर्व "सिक ऑफ़ बींग हेल्दी" और "डाईंग टू लिव" जैसी बेस्ट-सेलर्स लिख चुकी लेखिका मोनिशा कुमार गम्बर लड़कियों और महिलाओं की तमाम समस्यों को बेहद दिलकश और दिलसोज़ अंदाज़ में पेश करती हैं। कविता और शायरी की समझ उन्हें मॉडर्न राइटर्स के बीच एक अलग पहचान दिलाती है।

किताब में जगह-जगह पर मशहूर शायर  मिर्ज़ा ग़ालिब के अशआर इस्तमाल किये गए  हैं और इसलिए शायरी समझने वालों को यह किताब ज़रूर पढनी चाहिए। बहरीन और भारत समेत कई देशों में अपनी छाप छोड़ चुकी यह किताब भारत में मकबूल निर्देशक महेश भट्ट के द्वारा चंडीगड़ में लॉन्च की गई थी। इस किताब को पढने के बाद मेरे ज़हन में फैज़ अहमद फैज़ का एक शेर कौंध गया "दिल ना-उम्मीद तो नहीं, ना काम ही तो है, लम्बी है गम की शाम मगर शाम हो तो है।" काफी प्रचलित अमेरिकी टीवी शो "गेम ऑफ़ थ्रोंस" में टिरियन लेनिस्टर का किरदार निभाने वाले अदाकार पिटर डिन्क्लेज ने अपनी एक स्पीच में कहा था " नो मेटर व्हाट हैपन्स, ट्राय अगेन, फेल अगेन, फेल बेटर" लेखिका का यह उपन्स्यास इन सभी बातों को अपने में समाहित कर लेता है। यह किताब एक ऐसी फिल्म के समान है जो आपको एंटरटेन भी करती है और शिक्षित भी। ज़िन्दगी के मैदान में उतर रहे हर युवा को यह फ़साना पढ़ना चाहिए। फसाना, ज़िन्दगी और प्यार का। फ़साना, विश्वास और विश्वासघात का। फ़साना, दया और पछतावे का। फ़साने गिरकर उठ जाने का। फसाना हमे यह बतलाने का की "लाइफ इस ऑल अबाउट फॉलिंग सेवन टाइम्स एंड स्टेंडिंग अप ऐट।"

Keep Visiting!

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