Tuesday 10 July 2018

मुलाक़ात : मंजीत सरगम चावला।


Author Manjit Sargam Chawla

वक़्त की गर्दिशों का गम ना करो,

हौंसले मुश्किलों में पलते हैं।

-मह्फुज़ुर रहमान

मंजीत, सरगम, चावला। किसी अफ़साने के तीन मुख्तलिफ किरदार मालूम होते हैं ना? हाँ किरदार तो हैं लेकिन तीन नहीं एक। एक अफसाना, एक किरदार या यूँ कहें कि एक किरदार का एक अफसाना, मंजीत सरगम चावला का अफसाना। राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित हालिया फिल्म "संजू" की टैग लाइन कुछ यूँ थी - "वन मैन, मैनी लाइफ्स" आज मैं आपका तआरुफ़ जिस लेखिका से करवाने जा रहा हूँ उनके लिए यह टैग लाइन ज़रा सी बदलकर "वन वुमन, मैनी लाइफ्स" कर दी जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी। 

हरियाणा के एक छोटे से शहर शाहाबाद मारकंडा में जन्मी मंजीत का सफ़र मुख्तलिफ हालातों और मुश्किलातों से भरा रहा। एक रूढ़िवादी परिवार में जन्म लेने के कारण मात्र उन्नीस वर्ष की छोटी सी उम्र में उनकी शादी अम्बाला के एक ऐसे औद्योगिक घराने में करवा दी गई जहाँ पर शिक्षा को ज़्यादा तरजीह नहीं दी जाती थी लेकिन मंजीत की किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था। एक रूढ़िवादी परिवार में जन्म लेने और एक औद्योगिक घराने में शादी करने के बावजूद मंजीत ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। यह करना उनके लिए सहल नहीं रहा होगा लेकिन अपने जज़्बे और अपनी हिम्मत के साथ उन्होंने यह कारनामा कर दिखाया। याद आता है मकबूल शायर अल्लामा इकबाल का मशहूर ए ज़माना शेर कि "ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है?"

मंजीत की ज़िन्दगी को झटका उस समय लगा जब 2002 में उनकी नोज़ाईदा बेटी को पैरेलिसिस अटैक आया जो की ला-इलाज था। अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मंजीत ने उसकी देखभाल करते हुए अपनी शिक्षा, अपनी तालीम को जारी रखा और अम्बाला से ही बी.सी.ए और फिर एम.सी.ए किया। इसके बाद अपने इल्म और अपनी काबिलियत के बल पर 2013 में पंजाब सिंध बैंक जैसे नामी बैंक में नौकरी हासिल की। गौरतलब है कि बहुत ही कम समय में मंजीत ने बड़ी सफलता देखि और आज वे अम्बाला के उस बैंक की ब्रांच मैनेजर हैं। असरार उल हक मजाज़ ने तमाम खातून के लिए वाजिब ही फरमाया है - "तेरे माथे पे ये आँचल तो बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था"

मगर मंजीत का सफ़र अभी बाकी था। एक सफल मैनेजर से एक सफल लेखक बनने की कहानी और भी दिलचस्प और हैरान कर देने वाली है। मुश्किलों ने जैसे मंजीत पर इख़्तियार कर लिया था, वह कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं थी। एक रोज़ अपने काम से लौटते हुए एक भयानक सड़क दुर्घटना में मंजीत का सीधा हाथ बुरी तरह घायल हो गया और डॉक्टर्स ने उन्हें छे महीने तक घर पर रहने की सलाह दे दी। उनके हाथ ने महसूस करने की क्षमता खो दी थी जिसकी वजह से अब सिर्फ उनका उल्टा हाथ ही उनके साथ था। कमाल की बात तो यह है की यदि यह घटना नहीं हुई होती तो मंजीत शायद कभी भी एक लेखिका नहीं बनतीं। छे महीनो तक घर पर रहने और उन छे महीनो के खालीपन ओ तन्हाई ने उन्हें लिखने मर मजबूर किया और एक के बाद एक दो शानदार किताबों की रचना मंजीत ने कर दी। "वक़्त की गर्दिशों का गम ना करो, हौंसले मुश्किलों में पलते हैं।" 

मंजीत कहती हैं कि उनकी ज़िन्दगी उतार-चढ़ाव भरी रही है लेकिन आज वह जो कुछ भी हैं अपने विश्वास और अपनी सकारात्मक सोच ओ विचारधारा की वजह से हैं। वह कहती हैं कि आपके विचार ही आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचाते हैं। एक अंग्रेजी कहावत है "If you sow a thought you cut an action, if you sow an action you cut a habit and if you sow a habit you cut a career"

मंजीत की किताबें भी उनकी इसी विचारधारा की तर्जुमानी करती हैं। उनकी पहली किताब "The Dream Manifester" सकारात्मकता और विश्वास की बात करती है। हम अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी अच्छा या बुरा देखते हैं वह सब कहीं ना कहीं हमारे विचारों, प्रार्थनाओं, क्रियाओं और नज़रियों से ताल्लुक रखता है। हम अपने जीवन के हालातों को अपने विचारों और अपने भावों के माध्यम से परिवर्तित कर सकते हैं। अपनी बातों और अपने ख्यालों को सकारात्मक बनाए रखना हमारे लिए ज़रूरी है क्योंकि यह सबकुछ सीधे उस निराकार से जुड़ा हुआ है जिसे हम इश्वर कहते हैं। चीज़ों को भुला देने और माफ़ कर देने की कला के मुतालिक भी इस किताब में तफसील से लिखा गया है। मुख़्तसर लफ़्ज़ों में इस किताब के मुतालिक बस इतना ही कहूँगा कि अगर दिल में विश्वास हो तो किसी भी मंजिल को पाया जा सकता है।  याद आता है फराह खान निर्दशित फिल्म ॐ शान्ति ॐ का संवाद कि "यदि किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने की साज़िश में लग जाती है।"

उनकी दूसरी किताब "The mystic of twin flame relationship" अवतार और पुनर्जन्म जैसे गूढ़ और गहन मुद्दों पर बात करती है। कुल मिलाकर मंजीत का लेखन आध्यात्मिकता, पुराण-विद्या, दर्शन-शास्त्र और मनोविज्ञान के इर्द-गिर्द घूमता नज़र आता है। मंजीत स्वयं भी एक आध्यात्मिक और धार्मिक महिला हैं और इसलिए उनकी कलम से इस तरह का लेखन निकलना लाज़मी है। 

हरियाणा के एक छोटे से गाँव की एक आम लड़की से लेकर एक सफल बैंक-ऑफिसर और लेखिका बनने का सफ़र मंजीत के मुबहम ज़रूर रहा होगा लेकिन मज़बूत इरादों और विपुल विश्वास ने आखिर उन्हें उनके मकाम तक पहुंचा ही दिया। कौंधता है ज़हन में मह्फुजुर रहमान का शेर कि "मत बैठ आशियाँ में परों को समेट कर, कर हौंसला कुशादा फज़ा में उड़ान का"

Click Here for getting a copy of the book
Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...