नेटफ्लिक्स पर डायरेक्टर लीना यादव के निर्देशन में बनी डॉक्यूमेंट्री "हाउस ऑफ़ सीक्रेट्स" साल 2018 की ठंड में उत्तरी-दिल्ली के बुराड़ी की गली नंबर चार में हुई रहस्यमई और हैरान कर देने वाली आत्महत्याओं पर आधारित है। एक घर, 11 सदस्य और 11 आत्महत्याएँ, या क़त्ल - मानसिक क़त्ल. "एक ही हादसा तो है और वो ये के आजतक बात नहीं कही गई, बात नहीं सुनी गई." शेर जौन एलिया का है।
मुझसे किसी ने कहा था कि कोई भी डॉक्यूमेंट्री असल में एडिटिंग-टेबल पर निर्देशित की जाती है। और ये बात मेरी देखि और पसंद की गई सभी डॉक्यूमेंट्रीज़ पर लागू होती है - चाहे फिर वह "एन इनसिग्निफिकेंट मैन" हो या "वाइल्ड-वाइल्ड कंट्री" या फिर "दी सोश्यल डिलेमा"।
लीना यादव, वो हैं जो "पार्चड" जैसी आंचलिक, हिम्मती और अभूतपूर्व फ़िल्म बना चुकी हैं। और हाल में आई उनकी ये डाक्यूमेंट्री उनके पोर्टफोलियो को निश्चित रूप से और अधिक मज़बूत करने जा रही है।
सधे हुए इंटरव्यू, कसी हुई एडिटिंग, दर्शकों को अंत तक जोड़े रखने वाली स्टोरीलाइन, और रहमान साहब का सहमाता हुआ और शरीर पर सिहरन सा रेंगता हुआ हल्का-हल्का संगीत। कोई फ़िज़ूल के नाटकीय रूपांतरण नहीं। जैसे सबकुछ उस केस से सम्बंधित खुल कर सामने आ गया हो - एकदम स्पष्ट, साफ़, ट्रांसपैरेंट।
इस डॉक्यु-फ़िल्म में भाटिया परिवार की कहानी सुना दी गई, वैसे नहीं जैसे 2018 में मूर्ख मीडिया ने सुनाई थी, लेकिन वैसे जैसे मेघना गुलज़ार ने आरुशी की कहानी अपनी फिल्म "तलवार" में सुनाई थी।
इस डॉक्यूमेंट्री को ज़रूर देखिये, और जानिये कि इस दुनिया में कई और दुनियाएं हैं। "इस दुनिया में कितनी ही दुनियाएँ खाली पड़ी रहती हैं।" कथन निर्मल वर्मा का है। जितने लोग हैं, उतने दिमाग हैं और उतनी ही दुनियाएं हैं। यकीन मानेंगे? अगर एक बात और कहूँ - इंसानी दिमाग से अधिक जटिल, पेचीदा और रहस्यमई इस संसार में कुछ और नहीं है। और शायद पृथ्वी की सबसे सुंदर और खतरनाक जगहें भी इन छोटी -छोटी दुनियाओं में हैं, दिमागों में हैं।
"एक बात होंटो तक है जो आई नहीं / तुमसे कभी, मुझसे कभी दो लफ्ज़ है वो मांगती।" - जावेद अख़्तर की कविता की पंक्तियाँ हैं।
अपने दिमाग के तारों को हमें सुलझाना होगा, ख़ुद को संभालना होगा, हादसों से आगे बढ़ना होगा। हमें बंद कमरों से निकलना होगा, हवा में टहलना होगा, मिलना-जुलना होगा, बात करनी होगी हर उस मौज़ू पर जिस पर हमें लगता है कि - "लोग सुनेंगे, तो क्या कहेंगे।" मुश्किल होगा, पर करना ही होगा क्योंकि - "ज़ेड. एन. एम. डी. - ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा।"
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