Thursday 18 November 2021

Three Farm Laws Repealed || Celebrations at The Singhu Border



तारीख़ 19 नवंबर 2021 को गुरु नानक देव जयंती के पर्व पर भारत के प्रधानमंत्री ने उन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी जिन्हें आनन-फानन में कोरोना काल के बीच संसद के दोनों सदनों में उन्हीं की सरकार ने पास करवाया था. 17 सितंबर 2020 को लोकसभा और फिर 20 सितंबर 2020 को राज्यसभा में पास होने के बाद यह तीन कृषि कानून 27 सितंबर 2020 को उस वक़्त अस्तित्व में आ गए जब भारत के राष्ट्रपति ने इन्हें मंज़ूरी दे दी. 

और इसके बाद से ही मुख्य रूप से पंजाब, हरयाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों ने इन कानूनों का पुरज़ोर विरोध करना शुरू कर दिया. ठंडी, गर्मी, बरसात की परवाह न करते हुए हज़ारों की तादाद में किसान दिल्ली की मुख्तलिफ़ सीमाओं पर मुस्तेदी से डटे रहे और सरकार से इन कानूनों को वापस लेने की मांग करते रहे. इन किसानों को देशद्रोही कहा गया, उपद्रवी घोषित किया गया, खालिस्तानी, उधमी, ना-समझ, मूर्ख, भ्रमित करार दिया गया. उनकी राहों में कील बिछाई गई, दीवारें खड़ी की गई, वाटर कैनन के वार किये गए, लाठियां बरसाई गई, एक क्षेत्र में तो विरोध कर रहे किसानों पर गाड़ी तक चढ़ा दी गई, लेकिन हलधर नहीं रुके, कृषक नहीं थमे, किसानों ने अपना आन्दोलन जारी रखा. और आखिरकार 14 महीने के लम्बे, अहिंसक और धैर्यपूर्ण इंतज़ार/प्रतीक्षा के बाद उस ही सत्ता के सत्ताधीश से अपनी मांगें मनवाई, जिस सत्ता के अहंकार और दंभ के चलते कई किसानों को इस आंदोलन के दौरान अपनी जान की कुर्बानी/आहुति देनी पड़ी.

"है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में // खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।" - पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर के महाकाव्य "रश्मिरथी" की हैं.

घमंड किसी व्यक्ति का हो, किसी समूह का हो, संप्रदाय का हो, या किसी राजनीतिक पार्टी का हो - अधिक समय तक टिकता नहीं है. झूठ ही की तरह, घमंड के भी पाँव नहीं होते. बहुत जल्द लंगड़ाकर गिर पड़ता है. और यह सिर्फ़ आज की बात नहीं है. पूर्व में जब कभी भी संसद से कोई जनविरोधी, अहंकारी, अस्वीकार्य और आक्रमणकारी पैग़ाम आया है, सड़क ने ही उसे वापस संसद भिजवाया है. और आगे भी यह होता रहेगा. क्योंकि ख़ुशकिस्मती से भारत एक प्रजातांत्रिक गणराज्य है. इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल भी संसद से पास हुआ था, लेकिन सड़क ने उसे डंके की चोट पर खारिज किया और अपने अधिकारों की लड़ाई स्वयं लड़ी. आज 19 नवंबर 2021 को इतिहास दोहराया गया है. और मुझे भरोसा है इस राष्ट्र के जागृत लोगों पर, कि आगे भी दोहराया जाता रहेगा. जनता के हक़ों की लड़ाई अनंतकाल तक जारी रहेगी और इस लड़ाई को जनता ही लड़ेगी. कोई विपक्षी पार्टी, दल, दलदल नहीं. लोकतंत्र में जनता को हमेशा "विपक्ष" की भूमिका में रहना चाहिए - ऐसा मेरा मानना है.

विशाल भारद्वाज की फ़िल्म "मक़बूल" में ॐ पूरी साहब और नसीर साहब के बीच का संवाद है - "संसार में शक्ति का संतुलन बहुत ज़रूरी है, आग के लिए पानी का डर बना रहना चाहिए." डेमोक्रेसी भारत में आकर चार नामों से जानी, पहचानी और पढ़ाई जाती है - लोकतंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और प्रजातंत्र. इसमें गौर करने वाली, ध्यान देने वाली, और हिफ्ज़ कर लेने वाली बात बस इतनी है कि चारों ही नामों में - "हम भारत के लोग" पहले हैं, तंत्र बाद में है. "देश काग़ज़ पर बना नक्शा नहीं होता." - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता की पंक्ति है. देश बनता है संविधान से, देश बनता है लोकतंत्र से, देश बनता है कई तरह के विचारों के समावेश से. देश बनता है एकता से, एकरूपता से नहीं. - भारत के हर नागरिक को यह समझना होगा, क्योंकि समस्या की पहचान ही, उसके निराकरण की शुरुआत है.

आज ही ट्विटर पर अपने एक दोस्त निशांत सिंह ठाकुर का एक ट्वीट पढ़ा, जिसमें उन्होंने अम्बेडकर को उद्धृत/कोट करते हुए लिखा है - "We must stand on our own feet and fight as best as we can for our rights. So carry on your agitation and organize your forces. Power and prestige will come to you through struggle. - B. R. Ambedkar."

भारतवर्ष के समस्त किसानों को, कृषि-कानून वापसी की बधाई, और प्रजातंत्र में प्रजा का विश्वास बढ़ाने के लिए सादर धन्यवाद.

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