Sunday 2 May 2021

खेला समाप्त | बंगाल चुनाव 2021



अजय देवगन अभिनित और उन्हीं की निर्माता कम्पनी के बैनर तले बनी फिल्म “तानाजी” भारतीय दर्शकों द्वारा खासी पसंद की गई थी. यह फिल्म मराठा साम्राज्य के गौरव, लड़ाकू और बहादुर योद्धा “तानाजी” के जीवन पर आधारित थी. इतिहास में झांकने पर हमें नज़र आता है कि छत्रपति शिवाजी "सिंहगढ़" का किला जीतना चाहते थे और यह मुश्किल काम उन्होंने तानाजी को सौंपा था. रणनायक तानाजी ने अपनी शक्ति और युक्ति से सिंहगढ़ का किला तो फतह कर लिया, लेकिन यह करते-करते वे स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गए. यही वह घटना थी, यही वह मंज़र था जिसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस मशहूर मराठी कहावत को पहली बार शब्दबद्ध किया था – 

“गढ़ आला, पण सिंह गेला.”

पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए ऐतिहासिक और रोमांच से भरपूर चुनावों के नतीजे हमें फ़िर इसी कहावत की ओर ले जाते हैं. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और बंगाल की “दादा” ममता दीदी के नेतृत्व में तृणमूल ने बंगाल में जीत की हैट-ट्रिक लगा दी है और 214 सीटें जीतकर बंगाल की विधानसभा में अपना दबदबा कायम रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की तथाकथित चाणक्य नीति, भाजपा के अन्य नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, स्टार प्रचारकों और कोबरा मिथुन चक्रवर्ती के भाषणों एवं रैलियों का सामना अकेले करने वाली ममता बैनर्जी ने पूरे राष्ट्र को सूचित कर दिया है, कि “खेला” कैसे खेला जाता है. 

लेकिन बंगाल के इस महासंग्राम में, तृणमूल की सेनापति अपना ही चुनाव हार गयीं. तृणमूल के शुरूआती नेताओं में से एक सुबेंदु अधिकारी, जो कुछ महीनों पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे, ने बेहद ही करीबी और नाटकीय मुकाबले में उन्हें नंदीग्राम सीट पर लगभग 2000 वोटों से हरा दिया. चुनाव पांच राज्यों में हुए थे, नतीजे पांच राज्यों के आने थे और आए भी. लेकिन जिस दिन ममता बैनर्जी ने ये एलान किया कि वे नंदीग्राम से अपने ही पुराने सिपहसलार के खिलाफ चुनावी खेला खेलेंगी, उसी दिन से नंदीग्राम इस चुनावी जंगल का “सिंह” बन गया था. और इसलिए जो नतीजे आए हैं, वे साफ़ तौर पर यह कह रहे हैं कि – “गढ़ आला, पण सिंह गेला.”

हालाँकि अगर चुनाव से पहले बनी स्थितियों पर गौर करें तो हम पाएँगे कि ममता दीदी का यह फैसला वाकई बहुत अहम् था और बंगाल की उनकी जीत में इस फैसले की भूमिका भी बहुत बड़ी है. याद करिये उस वक़्त को जब एक के बाद एक तृणमूल के विधायक, मंत्री, सांसद भाजपा में शामिल होते जा रहे थे. मुकुल रॉय, सुबेंदु अधिकारी, कल्याण घोष, राणा चटर्जी, रबिन्द्र नाथ घोष, दिनेश त्रिवेदी आदि भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की मौजूदगी में मोदी-शाह कैंप का दामन थामते जा रहे थे और इसी बीच गृहमंत्री अमित शाह, बंगाल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष आदि पूरे आत्मविश्वास के साथ कहने लगे थे – “अबकी बार 200 पार, अबकी बार 200 पार.”

यही वह वक़्त भी था जब 21 दिसम्बर 2020 को तृणमूल के आधिकारिक राजनीतिक सलाहकार और रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक ट्वीट किया – उन्होंने कहा कि अगर बंगाल में भाजपा “डबल डिजिट” क्रॉस कर जाती है, तो वे राजनीतिक रणनीति बनाने का अपना काम ही त्याग देंगे. भले ही उस समय भाजपा के नेताओं ने किशोर की इस बात को कैमरे के सामने नज़रअंदाज़ किया हो, लेकिन कैमरे के पीछे, बंद कमरों में उनके आत्मविश्वास को इस दावे से ठेंस ज़रूर पहुंची होगी.

इसके बाद आया 5 मार्च का वह दिन जब तृणमूल के घबराए हुए कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम ममता दीदी ने कर दिखाया. और भाजपा के दावे में अंतिम कील ठोंक दी. उन्होंने कहा – “मैं 9 मार्च को नंदीग्राम जा रही हूँ. 10 मार्च को में हल्दिया में अपना नामांकन दाखिल करुँगी.” ममता का ये हिम्मती फैसला, जिसमें उन्होंने अपनी सेफ सीट भवानीपुर को छोड़ने की घोषणा भी कर दी, तृणमूल के कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी बनकर आया और इस ही की दम पर उन्होंने दुगुनी ताकत से नारा लगाया – “बाँगला निजेर मेयेकेई चाय.” अर्थात “बंगाल अपनी ही बेटी को चाहता है.”

आज अगर हम यह कहें कि गढ़ जीतने के लिए तृणमूल अध्यक्षा ने सिंह की बली चढ़ा दी तो शायद हम कुछ भी ग़लत नहीं कह रहे. जैसा की तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सांसद डेरेक ओ ब्र्यान ने नतीजों के दौरान ट्वीट कर कहा कि – “बड़ी लड़ाई जीतने के लिए आपको कुछ न कुछ त्यागना ही पड़ता है."

अब बात 2016 के विधानसभा चुनावों में मात्र 3 सीट जीतने वाली और अब 2021 में 76 सीटों पर कमल खिलाने वाली भारतीय जनता पार्टी की. 24 मार्च 2021 को जब गृहमंत्री अमित शाह “अबकी बार 200 पार.” के अपने नारे को लोगों के सामने रख रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल में एक सभा को संबोधित करते हुए कह रहे थे “2 मई, ममता दीदी गई.” और अगर आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि बीते हर चुनाव में भाजपा इसी एक रणनीति से चुनाव लड़ती है. 

“हम, हम हैं बाकी सब पानी कम हैं.” की रणनीति, प्रतिद्वंदी का मनोबल मुकाबले से पहले ही तोड़ देने की रणनीति और अपने कार्यकर्ताओं को अति-आत्मविश्वास से भरकर “फूल्स पैराडाइस” में रखने की रणनीति. यह बात मैं धरातल पर रहकर कह रहा हूँ क्योंकि हवा में बात करने से कैसी शिकस्त मिलती है इसका नमूना आप सब ने देख ही लिया है. आप हरयाणा और महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों की तुलना चुनाव पूर्व किये गए भाजपा के दावों से कर सकते हैं. आप झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और फिर अब बंगाल के चुनावों में किये गए भाजपा के दावों का मिलान असल में आए परिणामों से कर के देख सकते हैं. आप ख़ुद समझ जाएंगे कि भाजपा किस तरह हाइप बनाकर मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करती है कि – “क्यों पड़े हो चक्कर में, कोई नहीं है टक्कर में.” और जब यह कोशिश ना-कामयाब होती है तब बंगाल जैसे नतीजे सम्पूर्ण देश के सामने होते हैं.

6 अप्रैल 2021 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने आवाज़ लगाई थी – “दीदी, ओ दीदी.” 2 मई 2021 को मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने बंगाल जीतकर उस आवाज़ का जवाब दे दिया. गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस में निहित है – अहंकार अति दुखद डमरुआ // दंभ, कपट, मद, मान नहरुआ. बोलिए, सियावर रामचन्द्र की जय!

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...