Wednesday, 25 September 2019

हिम्मत-ए-हिमा।



किसी ज़माने में स्कॉटलैंड का राजा रॉबर्ट दी ब्रूस हुआ करता था। रॉबर्ट एक शांतिप्रिय और बहादुर सम्राट था और उसके राज में पूरा स्कॉटलैंड खुशी, समृद्धि और विकास के मार्ग पर अग्रसर था। स्कॉटलैंड की इसी प्रगति को देखते हुए इंग्लैंड के राजा ने अपनी विशालकाय सेना के साथ स्कॉटलैंड पर हमला बोल दिया। राजा रॉबर्ट ने अपनी बहादुरी के बल पर छोटी सेना होने के बावजूद इंग्लैंड से लड़ाई लड़ी। लेकिन लगातार छह हमले झेलने के बाद वह हताश हो गया और हार मानकर देश के बाहर एक छोटी से गुफ़ा में जाकर रहने लगा। एक रोज़ गुफा में यूँ ही बैठे हुए, उसने एक मकड़ी को अपना जाला बनाते हुए देखा। मकड़ी बार-बार एक पत्थर पर जाला फेंकती लेकिन हर बार जाला छोटा रह जाता। जब वह छह बार असफल हो गई तो राजा रॉबर्ट ने मन ही मन कहा - "कोशिश छोड़ दो। मेरी हालत भी तुम्हारी ही तरह है।" लेकिन मकड़ी हिम्मत नहीं हार रही थी। आखिरकार सांतवी बार में वह अपने अमल में कामयाब हो गई। इस छोटी सी घटना से प्रभावित होकर राजा रॉबर्ट वापस अपने देश लौटा, अपनी सेना एकत्रित की और पूरी शक्ति के साथ इंग्लैंड पर हमला कर उसकी सेना को अपने देश से खदेड़ दिया।

आती हैं राहों में परेशानी कई।
यूँ ही नहीं होता करिश्मा कोई।।

एक महीने के भीतर पाँच स्वर्ण पदक जीत कर देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने वाली भारतीय स्प्रिंट धावक हिमा दास की तुलना अगर कुछ पल के लिए राजा रॉबर्ट से की जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आसाम के नौगांव जिले के ढ़िंग गांव में जन्म लेने वाली हिमा दास बचपन से ही खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में लग गई थीं। एक बहुत ही साधारण किसान परिवार में, रंजीत और जोनाली दास की पांचवी सन्तान के रूप में हिमा का जन्म 9 जनवरी, 2000 को हुआ था। हिमा का परिवार खेती, किसानी कर बड़ी मुश्किलात से अपना जीवन बसर करता था और ऐसे हालात में हिमा का अपने सपनों के बारे में सोचना भी दुश्वार था। फिर भी स्कूल और घर के कामों से कुछ वक्त बचाकर हिमा अपने शौक को, अपनी खेल की रुचि को थोड़ा सा जी लेती थीं। वह अपने पिता के छोटे से 2 बीघा खेत में फुटबॉल खेला करतीं और अपने आप को बेहतर, और बेहतर बनाने की कोशिश में लगी रहतीं। याद आती हैं शिव मंगल सिंह सुमन की प्रसिद्द पंक्तियाँ - 

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।

जवाहर नवउदय विद्यालय में पढ़ते हुए, अपने एक पी.टी. टीचर की सलाह पर हिमा ने फुटबॉल छोड़ स्प्रिंट रेसिंग में अपना ध्यान लगाना शुरू किया। अगर हम इतिहास खंगालें तो पाएंगे कि संघर्ष के दिनों में हिमा के पास दौड़ने के लिए अच्छे जूते तक नहीं थे। लेकिन जुनून, हौसला, उमंग और सपने थे। हिमा के शुरुआती कोच निपुन दास ने जैसे बहुत पहले ही हिमा में एक सुनहरे धावक को देख लिया था, उन्होंने एक चमचमाता भविष्य भांप लिया था। अब्दुल कलाम कह गए हैं कि "जब एक विद्यार्थी तैयार हो जाता है तब एक शिक्षक प्रकट हो ही जाता है" निपुन ने हिमा को जिला स्तर पर होने वाली 100 और 200 मीटर की दौड़ में भागने की सलाह दी। हिमा ने कमज़ोर और घटिया स्तर के जूते पहनकर उन दौड़ों में भाग लिया और दोनों ही में स्वर्ण पदक हासिल किए। निपुन दास यह देख प्रसन्न तो हुए ही लेकिन साथ में हैरान भी रह गए। हिमा का सफ़र अब शुरू हो चुका था। सफ़र आसमान का, आसमान में उड़ान का। गौरतलब है शायर शकील आज़मी का यह शेर कि - 

परों को खोल, ज़माना उड़ान देखता है,
ज़मीन पर बैठकर क्या आसमान देखता है।।

हिमा की रफ़्तार और प्रतिभा को देखते हुए निपुन उन्हें आगे की तैयारी के लिए गुहाटी लेकर चले गए और उन्हें 200 मीटर और फिर 400 मीटर की स्प्रिंट दौड़ के लिए तैयार करने में जी-जान से लग गए। यह वह समय था जिसके बाद समाज, धर्म, जाती, पूर्वाग्रह आदि किसी भी चीज़ की ज़ंजीर हिमा को बांध कर नहीं रख सकी। जान निसार अख्तर का मुतासिर करने वाला यह शेर ज़हन में कौंध उठता है कि -

देख ज़िदां से परे रंग ए बहार, जोश ए चमन,
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर ना देख।। 

ढिंग जैसे बहुत ही छोटे से गाँव से ताल्लुकात रखने वाली हिमा के नाम वर्तमान में 400 मीटर स्प्रिंट दौड़ का राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। जो कि उन्होंने जकार्ता, इंडोनेशिया में सन 2018 के एशियाई खेलों के दौरान बनाया था। हिमा ने 400 मीटर की स्प्रिंट दौड़ को मात्र 50 दशमलव 79 सेकेंड्स में खत्म कर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था। किसी वक़्त में जिस धावक के पास दौड़ने के लिए ठीक-ठाक जूते भी नहीं थे उसे सन 2018 में एडिडास जैसी नामचीन कम्पनी ने साइन कर लिया। सच तो कहते हैं - "दुनिया उम्मीद पर कायम है" और हिमा को उम्मीद थी। सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जो उन्हें देखने की हिम्मत और उन्हें जीने का हौसला रखते हैं। हिमा के पास हिम्मत, हौसला और सपने तीनों थे। महफुज़ूर रहमान आदिल का कलाम है कि -

मत बैठ आशियाँ में परों को समेटकर,
कर हौसला कुशादा फ़ज़ा में उड़ान का।।

इस ही हिम्मत और हौसले की बिनाह पर हिमा ने आई. ए. ए. एफ. विश्व यू20 चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया और ऐसा करने वाली पहली भारतीय धावक बन गईं। 2 जुलाई 2019 को पोलैंड में आयोजित "पोज़नन एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स" में हिमा ने 200 मीटर की दौड़ को मात्र 23 दशमलव 65 सेकेंड में खत्म कर स्वर्ण पदक हासिल किया। इसके बाद 7 जुलाई 2019 को उन्होंने पोलैंड में ही आयोजित होने वाले "कुटनो एथलेटिक्स सम्मेलन" में 200 मीटर का स्वर्ण पदक जीता। और इस तरह 2 जुलाई को शुरू हुआ हिमा का यह स्वर्ण सिलसिला 20 जुलाई को जाकर चेक गणराज्य में खत्म हुआ जहां उन्होंने 400 मीटर की दौड़ को करिश्माई तौर पर सिर्फ 52 दशमलव 9 सेकेंड में पूरा कर, एक महीने के अंदर अपना पांचवा स्वर्ण पदक हासिल किया।

हिमा दास उन करोड़ों हिंदुस्तानी युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं जो कि अपने सपनों को जीने से डरते हैं, उन्हें पूरा करने की मेहनत से बचना चाहते हैं या फिर हार मानकर अपना सफ़र जारी रखना बन्द कर देते हैं। हिमा सिखाती हैं कि कोई भी परेशानी, रुकावट, मजबूरी आपकी हिम्मत और आपकी शिद्दत से बड़ी नहीं हो सकती। इसलिए कोशिश जारी रखिये, सफ़र थमना नहीं चाहिए और मंज़िलों की खोज चलती रहनी चाहिए क्योंकि अकबर हैदराबादी साहब कह गए हैं कि -

कोई चले उम्र भर, कोई सिर्फ़ कदम।
कहाँ है मन्ज़िलों की हद, नज़र नज़र की बात है।।

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