Thursday 14 March 2019

भाषणप्रधान, प्रधानमंत्री।



साल 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही माननीय मोदी जी लगातार भाषणों में मसरूफ़ रहे हैं। क्या देश, क्या विदेश हर जगह विशाल जन-सभाएं करने और उनमें तालियां बटोरने की ब-कमाल कला कोई भारत के प्रधानमंत्री से सीखे। देखा जाए तो यह कोई बहुत नई बात नहीं है। भारत की राजनीति का नक्शा कुछ इस ही तरह का है। जब भी कोई युवा/युवती या स्कूली छात्र/छात्रा अपने स्कूल या अपने विश्वविद्यालय में एक अच्छा भाषण देता/देती है तो लोग यह कहकर उसकी सराहना करते हैं कि “एक अच्छा नेता बनने के गुण हैं तुम में” हम ये मान बैठे हैं कि अच्छा बोलने वाला ही अच्छा नेता हो सकता है और इसी सोच के चलते 2014 में हमने हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री को देश की बागडोर सौंप दी थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में जनता को एक सन्देश ये भी दिया है कि उन्हें मुद्दों पर केवल भाषण देना ही पसंद है| वह सवालों से कतराते हैं और शायद यही वजह है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में एक भी प्रेस-कांफ्रेंस नहीं की हैं। जिस तरह के इंटरव्यू उन्होंने दिए वे किसी से नहीं छिपे हैं। लेकिन इन साढ़े चार सालों में उन्होंने दर्जनों प्रेस-शोज़ और भव्य-इंटरव्यू ज़रूर किये हैं। अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर से लेकर ब्रिटेन के वेम्बले स्टेडियम तक मोदी जी ने ना-जाने कितने लोगों से मन की बातकी। अफ़सोस की लोगों के “मन की बात” उन्होंने बहुत कम सुनी।
अगर हम हमारे प्रधानसेवक के भाषणों को गौर से सुने एवं देखें और उनका आकलन करें तो पाएंगे कि वे अपना वक्तव्य देते हुए लगभग हर दस-पन्द्रह मिनिट के बाद एक पंच लाइन या बॉलीवुड की ज़ुबान में एक तड़कता-फड़कता मसाला डायलॉग मारते हैं। ऐसा करने के बाद वे कुछ देर के लिए ठहर जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि “बस यहां तालियां बजेंगी और मोदी, मोदी, मोदी के नारे अपने एक निश्चित म्यूजिक के साथ प्ले होंगे” ऐसा हो जाने के बाद वे अपनी बात फिर शुरू करते हैं। यह झूठ नहीं है। मेरी इस बात का सत्य जानने के लिए आप मोदी जी का हालिया प्रेस-शो देख सकते हैं। बीते दिनों सूरत में आयोजित “न्यू इंडिया यूथ कॉन्क्लेव” में युवाओं को संबोधित करते हुए मोदी जी कहते हैं कि – “2014 से पहले अखबारों में हर रोज़ घोटालों की हेडलाइन्स आती थीं, अब नहीं आतीं, तब आता था कोल घोटाला, 2G घोटाला , ये G कहाँ तक जाता है हम सब जानते हैं” यह कहने के ठीक बाद वे थम कर जनता की ओर देखने लगते हैं। वे ठीक-ठीक जानते हैं कि अब जनता को बोलना है, उन्हें नहीं। बिल्कुल इसी तरह 2016 में मोरादाबाद में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मोदीजी ने अपना सबसे अधिक प्रभावशाली डायलॉग बोला था हम तो फकीर आदमी हैं जी, झोला लेकर चल पड़ेंगेये कहने के बाद उन्होंने जनता को तालियां बजाने और मोदी, मोदी, मोदी चिल्लाने का पूरा अवसर दिया और फिर अपना अभिभाषण आगे बढ़ाया। अब सेल्फ-ऑब्सेशन नाम की भी कोई चीज़ होती है।
एक अच्छे वक़्ता की तरह मोदी जी वक़्त वक़्त पर ज़रूरत अनुसार अपना वॉइस मॉड्यूलेशन भी बदलते हैं। जैसे उरी हमले की बात करते हुए वे अचानक अपनी आवाज़ धीमी कर लेते हैं। विपक्षियों पर हमला करते हुए ज़ोर से, पूरे जोश के साथ बोलते हैं और अपनी सफलताओं को सुनाते हुए मुस्कुराते हैं। वे जनता से सवाल पूछते हैं और जवाब का इंतज़ार करते हैं। अजीब विडंबना है, नई?
इसके ठीक विपरीत। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के भाषण फीके होते हैं। ऐसा मैं नहीं, जनता या आपकी सहूलियत के लिए भक्त, कहते हैं। अब क्या कहें वे ठहरे पप्पू, मोदीजी जैसी कला उनमें कहाँ। राहुल गांधी के वक्तव्यों का अगर हम आकलन करें तो पाएंगे कि वे बोलते हुए ज़्यादा रुकते नहीं हैं। लगातार बोलते जाते हैं। जब कभी उनकी किसी बात पर जनता ताली बजाती है तो वे उन्हें रोक कर कहते हैं “रुकिए, पहले पूरी बात सुनिए” बीते दिनों दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में युवाओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने बार-बार अपनी इस खामी का परिचय दिया। मैं फिर झूठ नहीं बोल रहा। आप सब उस भाषण को देखने के लिए स्वतंत्र हैं। 
राहुल गांधी लोगों को तालियां बजाने से रोक कर बात करते हैं और मोदी जी तालियों का पर्यापत आनंद लेते हैं। इस सब से यह तो सिद्ध हो गया कि राहुल गांधी को और कुछ आता हो या ना होता हो लेकिन भाषण देने की कला तो उनमें नहीं है। इसलिए वर्तमान में इस देश में आला दर्जे के भाषणकर्ता केवल एक हैं परम श्रद्धे माननीय श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी। और उनके अलावा इस देश में जितने अच्छे वक़्ता हैं वो सब अपने-अपने विश्विद्यालयों में डिबेट-डिबेट खेल रहे हैं।


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