रोहित शेट्टी द्वारा
निर्देशित और अजय देवगन एवं अन्य कई नामी-गिरामी कलाकारों से सजी फिल्म गोलमाल अगेन बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है. दिवाली के ठीक एक दिन बाद परदे पर आई इस फिल्म ने चार
दिनों में ही 100 करोड़ का जादुई आंकड़ा पार कर लिया है और इसके साथ ही भारतीय दर्शकों
ने एक बार फिर अपनी गज़ब की सिनेमाई समझ का परिचय पेश किया है. इस गोलमाल के निर्देशक
को 1979 में आई उत्पल दत्त और अमोल पालेकर अभिनित एवं हृषिकेश मुख़र्जी द्वारा निर्देशित
गोलमाल अवश्य देखनी चाहिए. लगे हाथ वे सई परांजपे की चश्म-ए-बद्दूर और कुंदन शाह
की जाने भी दो यारों भी देखें.
फ़िल्मी क्षेत्र के मशहूर निर्देशक द्वारा रचे गए तर्कहीनता के इस महोत्सव के बीच सिनेमाई परदे पर आई नवान्तुक निर्देशक अद्वैत
चन्दन की फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार किसी ज़ख्म पर लगे मरहम की तरह है. बड़ी ही
खूबसूरती से रची गई इस फिल्म की कहानी कई छोटी-छोटी हिकायतों को अपने भीतर समेटने
में कामयाब हुई है. फिल्म बरोड़ा की एक ऐसी लड़की(इन्ज़िया मलिक) की कहानी है जो
गायिका बनना चाहती है मगर अपने अब्बू की छोटी सोच के चलते अपने सपनो को पूरा नहीं
कर पा रही.
इन्ज़िया मलिक (ज़ायरा वसीम) अपनी माँ नजमा मलिक (मेहर विज), अपने पिता फारूख(राज
अर्जुन), अपनी दादी और अपने छोटे भाई गुड्डू के साथ बरोड़ा में रहती है और बाहरवी
कक्षा की पढाई कर रही है. अपनी बेटी के सपनो को पूरा करने के उद्देश्य से
नजमा अपना हार बेचकर उसे एक लैपटॉप देती है जिसके सहारे इन्ज़िया अपने कुछ वीडियोज
बनाकर यू-ट्यूब पर अपलोड कर देती है. अपनी पहचान छुपाने के लिए वो इन वीडियोज में
बुरखा पहने रहती है. कुछ ही समय में इन्ज़िया के वीडियोज सोश्यल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं और कई बड़े-बड़े लोगों से उसे बधाइयाँ मिलने लगती हैं. फ़िल्मी संगीत के
मशहूर संगीत-निर्देशक शक्ति कुमार इन्ज़िया के इस वीडियो से प्रभावित होकर उसे
मुंबई बुलाते हैं. इन्ज़िया के मुंबई जाने से लेकर अपने सपनो को हासिल करने तक की
कहानी बेहद रोमांचक और दिल खुश कर देने वाली है.
फिल्म में अभिनय आला दर्जे का है. ज़ायरा वसीम से लेकर मेहर
विज तक और राज अर्जुन से लेकर तीर्थ शर्मा तक सभी ने मंझे हुए कलाकारों की तरह काम
किया है. मौके-मौके पर ज़ायरा वसीम की हल्की मुस्कुराहटें दर्शकों (विशेष तौर पर
लड़कों) को खुश कर देती है. शक्ति कुमार के किरदार में नज़र आए आमिर खान ने एक बार
फिर अपनी अदाकारी से सभी को प्रभावित कर दिया है. अपने द्वारा निभाए गए आजतक के सभी
किरदारों से हटकर उन्होंने इस बार एक ऐसे संगीत-निर्देशक का किरदार अदा किया है जो
बाहर से नालायक और बद-तमीज़ मालूम होता है मगर भीतर से एकदम पाक है. इस किरदार के ज़रिये
इंडस्ट्री में तैयार किये जा रहे तर्कहीन और बेकार संगीत पर भी व्यंग्य किया गया
है.
एक अड़ियल और गुस्सेल बाप एवं समझदार माँ से लेकर माँ-बेटी तक
सभी के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला गया है. चिंतन(तीर्थ शर्मा) और इन्ज़िया(ज़ायरा वसीम) की
मासूम प्रेम-कहानी को पेश करते हुए निर्देशक फिल्म को संतुलित बनाए रखने में कामयाब हुए हैं. एक द्रश्य
में गुड्डू (इन्ज़िया का छोटा भाई) अपनी बहन के टूटे हुए लैपटॉप को टैप और गोंद के
माध्यम से वापस जोड़ देता है. इस बात से अनजान इन्ज़िया गुस्से में उसे वापस तोड़
देती है. मगर जब उससे सच्चाई पता चलती है तो वह रो पड़ती है और अपने भाई को गले लगा
लेती है. यह द्रश्य फिल्म की मार्मिक क्षमताओं को उजागर करते हुए निर्देशक की कमाल
सोच का परिचय दे जाता है. अद्वैत चन्दन पूर्व में धोभी घाट और तारे ज़मीन पर जैसी
दिलकश फिल्मों में सहायक निर्देशक की भूमिकाओं में रहे हैं और बीते कई दिनों से वे
आमिर खान को मैनेज भी कर रहे थे. लेखन और निर्देशन अव्वल दर्जे का है जिसके लिए
निर्देशक बधाई के पात्र हैं.
फिल्म के अंतिम द्रश्य में नजमा अपने शौहर फारुख के रवैये
से तंग आकर उसे तलाक दे देती है और इन्ज़िया और गुड्डू को लेकर एक अवार्ड शो में
पहुँच जाती है जहाँ इन्ज़िया को सर्वश्रेष्ठ गायिका के अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया
गया होता है. समारोह में अवार्ड किसी और गायिका को दिया जाता है मगर इन्ज़िया के गाने से
प्रभावित विजेता अपना अवार्ड उसे देने का फैसला करती है और इन्ज़िया को मंच पर
आमंत्रित करती है. इन्ज़िया अपनी जगह से उठकर मंच तक जाती है और उसके करीब पहुँचते
ही अपना बुरखा उतार कर फेंक देती है. पूरी दुनिया अचानक से उभरी इस सीक्रेट सुपरस्टार को सम्मान की
नज़रों से देखती है और अंततः फिल्म दर्शकों की आँखें नम कर जाती है. इन्जिया का बुरखा उतार फेंकना
असल में उन सभी बंधिशों को उखाड़ फेंकना था जो उसे या उस जैसी अन्य लड़कयों को आगे बढ़ने या अपने सपने पूरे करने से रोकती हैं. इस बेहद खूबसूरत और मार्मिक फिल्म में किसी भी तरह का मैजिक नहीं है क्योंकि मानव संवेदनाओं से सराबोर यह फिल्म लॉजिक से भरपूर है.
कई परतों से बनकर तैयार हुई अद्वैत चन्दन की यह अद्वतीय फ़िल्म
सिनेमाई परदे पर ज़रूर देखि जानी चाहिए क्योंकि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं
है.
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