Thursday 18 January 2018

एक बार कहो तुम मेरी हो | पुनीत कुसुम।


पिछले दिनों इंदौर के आनंद मोहन माथुर सभागृह में "मोजिज़ा-ए-जीस्त" नामक मुशायरे का आयोजन किया गया था। अंजुमन में भोपाल, इंदौर, पटना और दिल्ली से आए मक़बूल और मुमताज़ अदीब-ओ-शायर-ओ-फनकार मौजूद थे। किस्तम से मैं भी शायरों की इस फेहरिस्त में शामिल था। अपने लिखे कलाम या अपनी तहरीरें सुनाने के लिए जब मुझे शमा के सामने बैठाया गया तो मैंने देश-दुनिया के तमाम मगरूर, आज़माती शायरों के लिए एक मुख़्तसर ग़ज़ल अर्ज़ की, जिसका एक शेर कुछ यूँ था -

" जो ख़्यालों में मुमताज़ हैं औक़ात जानेंगे। 
इक दफ़ा गर आसमान के मुख़ातिब हो जाएंगे।।"

उस रोज़ नसीब कुछ इस क़दर मेहरबान था की जिस आसमान की बात मैंने अपने शेर में की थी वो या शायद उसी का कोई अक्स कुछ ही पल बाद मेरे सामने आ कर बैठ गया। उस शख़्स का नाम था पुनीत कुसुम(भैया) उनके द्वारा सुनाए गए मुक्तक और कविताएं मुझ जैसे आम लेखक को मुतासिर, बहुत मुतासिर कर देने के लिए काफी थीं। हो सकता है कुछ लोगों को यह बातें झूठी तारीफ या खुशामद लगें मगर सच यही है। और इस बात का वाहिद सुबूत जो मेरे पास मौजूद है वह है उनकी लिखी यह नज़्म या कविता। माँ हिंदी के सौंदर्य और खूबसूरती को जिस अंदाज़ में यहाँ प्रस्तुत किया गया है वैसा प्रस्तुतीकरण आज कल बहुत कम दिखाई देता है। 

- प्रद्युम्न आर. चौरे


सागर में लाखों सीपी हैं
सीपी में बैठा मोती है
मोती की श्वेत सी काया में
थोड़ा सुकूँ है, थोड़ी ज्योति है
उस ज्योति से मैं सूरज हूँ
और तुम एक सुबह सवेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

मैं कलम चलाना ना जानूँ
मैं रंग सजाना ना जानूँ
अरे छैनी और हथोड़े से
आकार बनाना ना जानूँ
पर मन के कागज़ पत्थर पर
तुम ही खींचीं, तुम ही उकेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

मैं पुण्य करूँ तो स्वर्ग मिले
और पाप करूँ तो नरक मिले
पर भूलके सब जब प्रेम करूँ
तो तू ही चारों तरफ मिले
मेरे जन्मों का तुम कारण हो
कर्मों की हेरा फेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

प्रेम हो जैसे बाग कोई
और दिल जैसे हो एक बच्चा
कानी आँख और सधी गुलेल
और ठाएं निशाना एक सच्चा
मैं डाल से टूटा जामुन हूँ
तुम लटकी कच्ची केरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

तुमने लूटी पूरी धरती
तुमने लूटा अथाह गगन
तुमने लूटा बेकल सा जल
तुमने लूटी आज़ाद पवन
फिर लुट बैठी एक शायर पर
अरे कैसी अजब लुटेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

नभ् के तारों सा टूट टूट
जोगी पिंडों सा फूट फूट
ना पूनम हो, ना अमावस हो
पक्षों चक्रों से छूट छूट
मैं चाँद बनूँ, तुम चाँदनिया
कोई ना रात अँधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

यह जीवन तो है मधुमेह सा
कविताएँ नीम के पत्ते हैं
इन् पत्तो पर जो छंद लिखे
कुछ कड़वे, थोड़े खट्टे हैं
और बीच में जो छुप छुप खाता
तुम वो मिश्री की ढेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

मौसम की जोर जवानी में
आतुर मन की मनमानी में
जो हाथ में हाथ लिए घूमें
उन दिलों की प्रेम कहानी में
मैं जल्दी में होता चुम्बन हूँ
तुम इज़हार में होती देरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

Keep Visiting!

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