मैं गलत का विरोधी हूँ, किसी दल का नहीं। पाठक अपने विवेक से काम लें।
नर्मदा किनारे बसे
मध्यप्रदेश के 24 जिलों
में 6 करोड़
पौधे लगाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश सरकार ने एक विश्व रिकॉर्ड
अपने नाम कर लिया। प्रदेशभर में पिछले एक महीने से इस अचानक आई हरित-क्रांति की
रूप रेखा तैयार की जा रही थी। सफल कार्यक्रमों के अंतर्गत होशंगाबाद, डिंडोरी, जबलपुर समेत सभी 24 जिलों में विभिन्न राजनीतिक
एवं प्रशासनिक शख्सियतों ने पौधे लगाकर विश्व को पेड़ लगाने एवं पेड़ बचाने का संदेश
दिया। गौरतलब है कि प्रदेश में इस तरह का यह कोई पहला कार्यक्रम नहीं है। पूर्व
में भी ऐसे कई आयोजन होते रहे हैं और इनका असर ना के बराबर रहा है। आज का दौर
बहकाने का दौर है। सरकार चार रूपए के काम को चार सौ का बताने में माहिर है और इसी
जुमले का प्रयोग कर वह जनता को भ्रमित कर रही है। 2016
में आई बेहद मनोरंजक फिल्म निल बटे सन्नाटा निर्देशक अश्विनी अय्यर
की पहली फिल्म थी. विभिन्न तरह के छोटे-मोटे काम कर मुफ्लिसी में जी रही चंदा सहाय
(स्वरा भास्कर) अपनी बेटी को शिक्षित करना चाहती है मगर बेटी पढ़ना नहीं चाहती वो
समझती है कि वह भी अपनी माँ की तरह बाई ही बनेगी. सारे रास्ते बंद हो जाने पर चंदा
स्वयं अपनी बेटी के स्कूल में दाखिला लेती है और कुछ ही दिनों में अपनी बेटी से आगे
निकल जाती है. यह सब अप्पू (चंदा की बेटी) को पसंद नहीं आता और वह अपनी माँ से स्कूल
छोड़ने की दरख्वास्त करती है. चंदा अप्पू से वादा करती है की अगर परीक्षा में वो
उससे अधिक नंबर लेकर आती है तो वह स्कूल छोड़ देगी. अप्पू यह चुनौती स्वीकार कर लेती
है और आखिर अपनी माँ को परीक्षा में मात दे देती है. चंदा इस हार को अपनी जीत
मानती है, वह समझती है की अप्पू अब होशियार हो गई है और पढ़ने में ध्यान देने लगी
है. मगर उसे झटका तब लगता है जब उसे यह पता चलता है की अप्पू ने पढाई सिर्फ उसे स्कूल
से बाहर करवाने के लिए की थी. यह जानकार वह अपना वादा तोड़ देती है और स्कूल जाना चालू
रखती है. वर्तमान में जनता चंदा की भूमिका में है जिसे लग रहा है की सरकार उसके
हित में काम कर रही है मगर असल में अप्पू के किरदार में मौजूदा सरकार तो किसी अन्य
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबकुछ कर रही है.
वृक्षरोपण एक प्रक्रिया है
जिसका अर्थ मात्र पौधे लगाना नहीं है वरन उनका संरक्षण करना भी है। देशभर में अपने
इस कदम का प्रचार करने की अपेक्षा प्रदेश सरकार को पौधों के संरक्षण के प्रति सचेत
होना चाहिए। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी को “एक राष्ट्र एक कर” के नारे
के साथ राष्ट्रभर में लागू कर दिया गया। इस फैसले को ऐतिहासिक फ़ैसला बताते हुए
सरकार ने अपनी महानता का प्रचार बख़ूबी किया। काबिल-ए-गौर बात है कि 2010 में जब
यूपीए सरकार यही बिल पारित करवाना चाहती थी तो मध्यप्रदेश और गुजरात की राज्य-सरकारों
ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था। मगर अब खारिज करने वालों ने ही इसे पारित कर
दिया है। जीएसटी को लागू कर उसका धड़ल्ले से प्रचार किया जा रहा है बजाय इसके की
उससे जुड़ी जानकारीयां लोगों तक सुचारू रूप से पहुंचाई जाए। कुछ दिन पूर्व ही
प्रदेश सरकार ने रेत उत्खनन पर पूर्ण रोक लगाई थी मगर हाल ही में आई खबरों के
अनुसार उत्खनन का काम बे-तक्कलुफ जारी है। केंद्र और प्रदेश सरकारें श्री गणेश
करने में तो माहिर हैं एवं उसका प्रचार करना भी जानती हैं। मगर अपने द्वारा शुरू
किए गए कामों को आगे बढ़ाने एवं उसे समाप्त करने में असमर्थ नज़र आती हैं। बकौल शरद
जोशी "सरकार और समाज के पास काम को आरंभ करने के लिए भगवान गणेश हैं मगर उसे
आगे बढ़ाने एवं समाप्त करने के लिए उन्हें संभवतः दो देवता और चाहिए"।
उपरोक्त लेख भोपाल से प्रकाशित होने वाले अखबार सुबह सवेरे में दिनांक 10/07/2017 को प्रकाशित किया गया।
यहाँ उपलब्ध -
http://epaper.subahsavere.news/1275388/SUBAH-SAVERE-BHOPAL/10-july-2017#page/5/1
Keep Visiting!
No comments:
Post a Comment