भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर 2013 में इंडस्ट्री के चार जाने-माने निर्देशकों ने मिलकर एक फिल्म की रचना की जिसका नाम रखा गया "बॉम्बे-टॉकीज़"। लगभग 2, सवा 2 घंटे की यह फिल्म असल में चार लघु कथाओं का अनोखा समावेश थी और सिनेमा को समझने वालों की नज़र में बेहद सफल भी। फिल्म में दिखाई गई चारों कथाओं की पृष्टभूमि सिनेमाई दृष्टि से ही नहीं वरन आम लोगों के नज़रिये से भी मार्मिक और ज्ञानवर्धक थीं।
Poster Of The 2013 Film Bombay Talkies. |
दिबाकर बैनर्जी द्वारा निर्देशित लघु फिल्म "स्टार" एक ऐसे कलाकार की कहानी थी जो अदाकार बनना चाहता है, अदाकारी का शौक रखता है मगर एक मौके से भी महरूम है। एक दिन शहर के किसी इलाके में चल रही शूटिंग को देखने के लिए वो भीड़ में खड़ा रहता है के तभी फिल्म-यूनिट में से कोई उसे अपने पास बुलाकर एक सीन करने का आमंत्रण देता है और थोड़ा हिचक कर वह व्यक्ति उस आमंत्रण को स्वीकार कर लेता है। दरसल शूट किये जा रहे दृश्य में उसका काम बस इतना रहता है की उसे सड़क पर चल रहे मुख्य-कलाकार से अनजाने में टकराना है और सॉरी बोलते हुए निकल जाना है। दृश्य को करने से पहले व्यक्ति के भीतर का अदाकार जाग जाता है और वह निर्देशक से सीन में कुछ बदलाव करने को कहता है। वह समझाता है की इस दृश्य में उसे एक चश्मा दिया जाए और साथ ही अखबार भी ताकि जब वह टकराए तो दृश्य बेहतर नज़र आए। निर्देशक उसकी बात मान लेती है। दृश्य पूरा होने के बाद व्यक्ति अपनी उजरत लिए बिना ही वहां से चला जाता है क्योंकि उसके मन में अपने काम को सम्पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ करने की ख़ुशी रहती है। प्रस्तुत दृश्य असल में कक्षा दंसवी की अंग्रेजी की किताब के एक पाठ से लिया गया था जिसके लेखक थे मशहूर निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे।
Poster Of The Short Story Written By Satyajit Ray Patol Babu Film Star. |
Panchtantra Stories |
फिल्म जगत के साथ ही साहित्य में भी एक के एक बाद कई ऐसी कहानियां पढ़ने में आती हैं जो कहीं न कहीं पूर्व में लिखी किसी कहानी से मेल खाती हुई नज़र आती हैं। दरअसल साहित्य और सिनेमा में एक अनूठा सम्बन्ध है जो कालजयी और अनहद है। साहित्य से सिनेमा है और सिनेमा से साहित्य। भारतीय साहित्य की अनमोल रचनाओं में से एक पंचतंत्र की कहानियां सदियों बाद आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे तीसरी शताब्दी में थीं। अनेक हिकायतों से भरपूर पंचतंत्र असल में पांच किताबों का संग्रह है जिन्हें मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया था। जन श्रुतियों और जानकारों की माने तो इन पांचों किताबों की रचना आचार्य विष्णु शर्मा ने तीसरी शताब्दी में की थी। किताबों में मौजूद सभी अफ़साने भारतीय परम्पराओं और मानवीय मूल्यों पर आधारित हैं। सभी कहानियों के किरदार मूल रूप से पशु-पक्षी ही रहे हैं चाहे फिर वो खरगोश द्वारा फैलाई गई दुनिया के ख़त्म होने की कहानी हो या बन्दर और मगरमच्छ की कहानी। उल्लू से लेकर लोमड़ी तक और नेवले से लेकर शेर तक अनेक जानवरों को किरदार बनाकर कहानियों की रचना की गई है।
भारत कहानियों का देश है, यहाँ हर रोज़ एक नया अफसाना लिखा जाता है। हिकायतों से सराबोर इस देश को दरकार है अच्छे और ईमानदार अफसानानिगारों की चाहे फिर वो अदीब हों, शायर हों, सुखनवर हों या फिर निर्देशक।
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