kulbushan jadhav |
मुद्दा अलग, तथ्य अलग, तर्क अलग मगर युद्ध वही, भारत विरुद्ध पकिस्तान। याद रहे हिंदू विरूद्ध मुस्लिम नहीं, भारत बनाम पाकिस्तान। कथित तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच चार युद्ध हुए हैं ( 1947,1965, 1971 और 1999) मगर असल में युद्ध कभी समाप्त ही नहीं हुए। भारत की आज़ादी से लेकर आज तक युद्ध जारी हैं और सतत, अनवरत चल रहे हैं।
तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट ऐटली ने फरवरी 1947 में इस बात की घोषणा की के जून 1948 तक इंग्लैंड भारत को गुलामी से मुक्त कर देगा। हुआ भी ऐसा ही। 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद तो हुआ मगर साथ ही विभाजित भी हो गया। कारण कई थे, हिंदू-मुस्लिम दंगों से लेकर कुछ शीर्ष नेताओं के लालच ने चाणक्य के अखंड भारत की स्थापना के स्वप्न को एक बार फिर वैसे ही धूमिल कर दिया था जैसे पूर्व के राजा-रजवाड़े करते आए थे।
इन कारणों के अलावा अंग्रेजी हुकूमत भी भारत में तेज़ी से फ़ैल रही इस साम्प्रदायिकता के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार थी। भारत आज़ाद होते हुए भी कैद था। सब कुछ टूट रहा था, ये पता लगा पाना लगभग नामुमकिन था के देश बन रहा था या बिखर रहा था। महान साहित्यकार रविन्द्रनाथ टैगोर ने 1941 में अपनी मृत्यु के तीन माह पूर्व कहा था "भाग्य का चक्र किसी दिन अंग्रेज़ जाति को बाध्य करेगा कि वह अपने भारतीय साम्राज्य से हाथ धो ले। लेकिन वह अपने पीछे किस तरह का भारत, कितनी बुरी बदहाली छोड़ जाएंगे?, जब उनके सदियों पुराने शासन का सोता अंततः सूखेगा तब कितना कूड़ा-करकट और कीचड़ वे अपने पीछे छोड़ जाएंगे".
राष्ट्रकवि दिनकर ने भी अपने समय में ही कह दिया था के "समर शेष है", अर्थात युद्ध समाप्त नहीं हुआ है, वो लगातार चल रहा है और चलता रहेगा। जिसके जीते-जागते उदाहरण हमारे सामने हैं।
भारतीय जल सेना के पूर्व जवान कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सेना ने 2016 में हिरासत में लिया था। कहाँ और क्यों के दो उत्तर हैं एक भारत का और दूसरा पाकिस्तान का। सत्य क्या है?, झूठ क्या? मैं नहीं जानता। गत सोमवार को पाकिस्तानी अदालत ने जाधव को बलूचिस्तान में अस्थिरता फैलाने के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई है। जिसका विरोध भारतीय सरकार से लेकर नागरिक तक सभी कर रहे हैं। इस फैसले से हर राष्ट्रवादी का दिल आहात तो ज़रूर हुआ होगा क्योंकि 26/11 हमले में पकड़े गए आतंकवादी अजमल कसाब को सभी पुख्ता सबूत होने के बावज़ूद भी भारत ने 11 साल की बड़ी गहन और प्रगाड़ जांच के बाद फांसी की सज़ा सुनाई थी। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व कुछ ऐसी ही घटना सरबजीत सिंह नामक एक व्यक्ति के साथ भी घटी थी जिसे पाकिस्तानी सेना ने रॉ का एजेंट बताकर फांसी की सज़ा सुनाई थी। मगर भारतीय सरकार और लोगों का विरोध बढ़ता देख उसकी फांसी को लगातार टाला जा रहा था। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल ही रहा था के अचानक 2013 में विस्मित कर देने वाले तरीके से सरबजीत की जेल में ही मौत हो गई थी।
समझ नहीं आता के जब भारत के वीर सैनिकों ने पड़ोसी मुल्क के घर में घुसकर कुछ जनाबों को मौत के घाट की आखिरी सीढ़ी तक घसीटते हुए मारा था तब ये शूरवीर और तीज-तर्रार पाकिस्तानी सेना कहाँ थी? बहरहाल यह मुद्दा अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँच चुका है और आदत-अनुरूप भारत ने पहला सक़्त कदम उठाते हुए आपसी बातचीत बंद कर दी है। सभी दलीलों और प्रयासों के बीच मुझे इस बात का डर भी है के अंतर्राष्ट्रीय दवाब बढ़ता देख पाकिस्तान अपनी आदत-अनुसार कुलभूषण के साथ वही सलूक न करे जो उसने सरबजीत के साथ किया था।
एक बार फिर दोहराता हूँ के कौन गलत है?, कौन सही मैं नहीं जानता। हाँ मगर इतना जानता हूँ के किसी भी फैसले से यदि इंसानियत कुचली जाती है तो नुकसान दोनों देशों का है। भारत कभी भी पकिस्तान के खिलाफ नहीं था। वो हमेशा से उनके खिलाफ था जिन्हें यह पड़ोसी मुल्क हमेशा से आसरा देता आया है, वो खिलाफ था आतंक के, ज़ुल्म के और अत्याचार के। क्योंकि आतंकवादी और देह्शत्गर्द किसी देश के नहीं बल्कि मानवता के विरोधी हैं। अगर भारत में मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में हमले हुए हैं तो पाकिस्तान के पेशावर में स्कूलों और कॉलेजों पर भी हमले हुए हैं। पाकिस्तान के सत्ताधीशों को यह समझना होगा और जो अगर उनसे यह ना हो सका तो अंजाम बुरे होंगे। किसके लिए?, मेरी माने तो सब के लिए। क्योंकि युद्ध से कभी किसी भला ना हुआ है, और ना होगा। बस नुकसान हुए हैं, हमारे में भी होंगे। मगर इससे आपकी हालत क्या हो जाएगी, आप बेहतर जानते हैं।
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