Monday, 17 April 2017

बारिश।



नीलम सा नीला आसमान सारा,
सियाह नज़र क्यूँ आ रहा है?
ये अब्र बेचैन हो रहे हैं,
हर कोई भागा जा रहा है।

आग सी गर्म कल थी हवाएं,
आज ठंडी हो गई हैं।
गौरैया को ये पैग़ाम देदो,
पगली अब तक सो रही है।।

शाख़ों से पत्ते झड़-झड़ा कर,
रहगुज़ार ढँक रहे हैं...
सब परिंदे चहक रहे हैं,
गली-मोहल्ले महक रहे हैं....
मौसम के इस खेले को शजर सब,
आँख मीचे तक रहे हैं।

महताब तो जागा नहीं है,
आफ़ताब भी अब सो रहा है?
हाँ यही सब हो रहा है...
पर, मगर क्यूँ हो रहा है?

भाँप जो कुछ माह पहले,
आकाश में कहीं उड़ गयी थी...
अब वही इन छोटे-छोटे बादलों में,छन रही है।☁
ज़रा गौर से आसमान देखो
उसके पीछे बारिश बन रही है।।


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