The person who thinks about next election is a politician. But the one who thinks about next generation is a statesman.
-B.N BOSE
आठ नवम्बर दो हज़ार सोला कल शाम तक एक आम दिन था. रोज़ की तरह करोड़ों भ्रष्टाचारी अपने जीवन का सम्पूर्ण आनंद उठा रहे थे. मगर सूरज ढलने के कुछ ही समय पश्चात् देश के प्रधानमंत्री ने देश के भ्रष्टाचारी खेमे में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया. लगभग आधे घंटे तक उन्होंने देश को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए उनके कदमो का ब्योरा पेश किया. मगर जिस वक्त उन्होंने यह बयान दिया के "देश में मौजूद समस्त 500 एवं 1000 रूपए के नोट आज रात के बाद से मान्य नहीं होंगे" उसी वक्त से आठ नवम्बर की ये रोज़ ख़ास, बहुत ख़ास बन गई. देश में शायद पहली बार ऐसा हुआ के एक गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार मन ही मन मुस्कुराया और समस्त भ्रष्ट अमीरजादों की आँखें लाल पड़ गई. यह कदम क्यूँ उठाए गए?, उत्तर आप सभी जानते हैं. यही कदम पूर्व में आई किसी सरकार ने क्यूँ नहीं उठाए?, उत्तर आप जानते हैं.
मई 2014 में सत्ता में आने से लेकर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत और फिर इस ऐतिहासिक कदम तक जो एक बात मैंने वर्तमान प्रधानमंत्री के विषय में जानी, वह यह है के वे सही वक्त पर सही कदम उठाना जानते हैं. आम चुनाव में जीतने के बाद उन पर आरोप लगाए गए के उन्होंने लोगों को प्रभावित कर वोट पाने के लिए पूरी मीडिया को खरीद लिया था. यह आरोप कितना सही है यह मैं नहीं जानता. मगर यदि मोदी ने ऐसा किया था तो वो इसलिए क्यूंकि भारत की राजनीति कुछ यूँ हो गई के सत्ता में आने के लिए कई ऐसे कार्य करने पड़ते हैं जो आप खुद से करना नहीं चाहते. एक अन्य बात जो वर्तमान प्रधानमंत्री में ख़ास है, वह है उनकी आक्रामक विचारधारा और फैसला लेने की क्षमता. किसी भी प्रधानमंत्री के लिए सबसे कठिन कार्य होता है किसी भी तरह का फैसला करना. क्यूंकि प्रधानमंत्री का फैसला दुनिया में देश का फैसला माना जाता है. पूर्व में आए किसी भी प्रधानमंत्री (नेहरु को छोड़कर) के पास ऐसे अटल और ऐतिहासिक फैसले लेने की क्षमता थी ही नहीं, और अगर थी तो उन्होंने कभी प्रदर्शित नहीं की शायद. सवाल उठता है पूर्व के राष्ट्राध्यक्षों ने क्यूँ ऐसे फैसले नहीं लिए?, उत्तर कई हो सकते हैं. मगर जो प्रत्यक्ष रूप से नज़र आता है वह ये के शायद उन्होंने कभी सोचा ही नहीं के ऐसा भी किया जा सकता है. वे सिर्फ वार्ताएं करते रह गए, इन्होने घुस कर मार गिराया. वे कर्मचारियों की भर्ती करते रह गए, इन्होने स्वयं झाड़ू उठाई, वे कानून बदलते रह गए, इन्होने मुद्रा ही बदल डाली. मोदी के आदे घंटे के संबोधन में वेसे तो कोई अपशब्द नहीं था मगर नजाने क्यूँ मुझे उनका हर शब्द भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर एक गाली या यूँ कहे के वज्र के समान नज़र आया. हालाँकि इस फैसले से आम लोगों को तकलीफें उठानी पड़ेंगी मगर यह नासूर ही ऐसा है के दवा तो कड़वी ही लेनी होगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी कुछ भी ख़ास नहीं कर रहे, यकीन मानिये वे वही कर रहे हैं जो एक राष्ट्र के प्रधानमंत्री को करना चाहिए. अंत में सभी विपक्षी दलों को मात्र एक नसीहत देना चाहूँगा के कृपया चुनाव प्रचार पे पैसा खरचना बंद करें. क्यूंकि अब देश की जनता को फैसलों की आदत है, फतवों की नहीं.
यह लेख भोपाल से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका सुबह सवेरे में दिनांक 11 नवम्बर को प्राकशित किया गया. इस लिंक पर उपलब्ध-
http://epaper.subahsavere.news/997096/SUBAH-SAVERE-BHOPAL/11-november-2016#page/5/2
http://epaper.subahsavere.news/c/14577101
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