Monday, 14 November 2016

जी करता है मर जाएं।

ख़ुद में रहना कठिन है, मगर उनके लिए जो एक अरसे से खुद ही के भीतर रहते हुए खुद को निखारने में लगे हुए हैं यही अवस्था सुकून वाली है। हालांकि कुछ हद तक कठिनाई तो उन्हें भी होती है मगर एक सर्जक के लिए वो ज़रूरी भी है। महलों में प्रेम कथाओं का जन्म हो सकता है, मगर मानव-जीवन एवं उसके मन से जुड़ी प्रत्यक भावना के सजीव चित्रण के लिए कठिनाई और अभाव वाला जीवन अर्थात आम आवाम का जीवन आवश्यक है। 
चाय की गुमठी पर बैठकर लेखक वो पाता है जो उसे होटल ताज में प्राप्त नही होगा और वो भी निशुल्क। 
अत्यधिक विचारों का एक ही समय पर आ जाना अस्थिरता को जन्म देता है और हम विचलित हो उठते हैं। यह कविता उसी मन की आवाज़ है और एक सच्चा सर्जक ही इस बेचैनी को समझ सकता है क्योंकि ये मेरा दावा है की इस मनोस्थिति से उसका सामना कभी-न-कभी अवश्य हुआ होगा।

नोट - नकारात्मक लेखन के लिए क्षमा मगर ख्याल सिर्फ सकारात्मक नहीं हो सकते। समंदर में लहरें सिर्फ ऊपर नहीं जाती, ज्ञात रहे!




जब मन बहुत अकेला हो,
भीतर में घुप्प अँधेरा हो.
आशाओं की किरणों को,
जब असमंजस के मेघ निगल जाएं.
जी करता है मर जाएं, जी करता है मर जाएं

जब दरख़्त छाँव ना दे पाए,
दरिया ना प्यास बुझा पाए.
फूलों से खुशबु गायब हो,
और कोयल भी कर्कश हो जाए.
जी करता है मर जाएं, जी करता है मर जाएं

जब खुद की नासमझी पर,
खुद का ही दिल झल्ला जाए.
दुखी, विवश सी आँखें ये,
अपना दुखड़ा ना रो पाएं.
जी करता है मर जाएं, जी करता है मर जाएं

जब अल्फाज़ों के धुएं में,
दम एहसासों का घुट जाए.
लेश-मात्र इस जीवन का,
जब अस्बाब समझ में ना आए.
जी करता है मर जाएं, जी करता है मर जाएं

मुस्तक़बिल का कुछ पता ना हो, 
और माज़ी याद से ना जाए,
देख-देख इन दोनों को,
जब वर्तमान घबरा जाए...
जी करता है मर जाएं, जी करता है मर जाएं



नोट - यह सिर्फ़ मेरे ख्याल हैं जिन्हें मैंने इमानदारी से वैसा का वैसा लिख दिया है। ये ना तो कोई सन्देश है ना ही नसीहत। हमे जीवन हमने नहीं दिया अलबत्ता इसे ख़त्म करने का अधिकार हमारे पास नहीं है। 





No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...