Friday, 18 January 2019

प्रेरणा।



प्रसिद्ध लेखक और विचारक मार्क ट्वेन ने कहा था के “जिस तरह खुद को शारीरिक रूप से शुद्ध रखने के लिए हम स्नान करते हैं ठीक उसी प्रकार खुद को मानसिक तौर पर तरो-ताज़ा रखने के लिए हमे सदेव किसी ना किसी चीज़ से प्रेरित रहना चाहिए। संसार में प्रेरणा का सबसे लोकप्रिय स्रोत है किताबें या अध्ययन. विवेकानंद, कलाम साहब, गुलज़ार साहब, मार्क ट्वेन, माखनलाल चतुर्वेदी, निराला, पन्त, प्रेमचंद, वर्ड्सवर्थ, नेरुडा आदि नजाने कितने महान छोटे-बड़े (वास्तव में सब समान हैं) को पढ़कर हम प्रेरणा रुपी सागर में जीवन पर्यंत भी डुबकी लगाएं तो भी हर दिवस हमे कुछ नया सीखने एवं जानने को मिलेगा। किताबें प्रेरित होने का या ज्ञानार्जन करने का अच्छा माध्यम है। सत्य है, मगर सम्पूर्ण नहीं।

वास्तव में प्रेरणा (motivation) तो गली-गली में है। बिलकुल उस इश्वर के समान, बिलकुल उस अदृश्य पवन के समान हमारे चारों ओर। बस उसकी एक खासियत है के इश्वर और पवन से उलट उसे देखा जा सकता है। और जब देखा जा सकता है, तो सिर्फ पढ़ें क्यूँ? सुबह-सुबह सड़क के किनारे मुंडेर पर फुदकती गौरैया या शाम को नुक्कड़ पर हँसते खिलखिलाते युवा बुज़ुर्ग, अंडे की दुकान के पास अपने दादा से क्रिकेट के विषय में वार्तालाप करते बच्चे या रात को ना सोने पर नवजात को दी जाने वाली माँ की नसीहत, किराने की दुकान के बाहर अपने पिता का हाथ छोड़ कुत्ते के साथ खेलता नन्हा बालक या अपने कमरे से बाहर अकेला इन सब को निहारता हुआ एक युवा. इन्ही सब में, छोटी-छोटी, साधारण सी लगने वाली बातों में ही तो छुपी होती है प्रेरणा। और हमें आसानी से मिल भी सकती है मगर हम कठिनाइयों के आदि हो चुके हैं।

समझना कठिन है पर समझना होगा के कुछ चीज़ें आसान होती हैं, कुछ खोज बड़ी साधारण सी होती हैं, कुछ रास्ते सीधे-सीधे होते हैं और मंजीलें उन्ही पर कहीं आगे जाकर मिल सकती हैं, अगर हम चलते रहें, बिना गुमराह हुए।

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