भारतीय क्रिकेट के अनमोल रत्न और भारत के गौरव सचिन रमेश तेंदुलकर को जब क्रिकेट का भगवान कहा गया तो उनका खेल देख चुके किसी भी व्यक्ति को असमंजस नहीं हुआ क्योंकि वे इस तमगे के हकदार थे। क्यूँ?
सिर्फ इसलिए क्योंकि वे क्रिकेट में एक अव्वल दर्जे के खिलाड़ी रह चुके हैं। नहीं, आज अगर सचिन का वर्चस्व समस्त विश्व में है तो उसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है सहज, सरल व् शांत स्वाभाव का होना।
सिर्फ इसलिए क्योंकि वे क्रिकेट में एक अव्वल दर्जे के खिलाड़ी रह चुके हैं। नहीं, आज अगर सचिन का वर्चस्व समस्त विश्व में है तो उसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है सहज, सरल व् शांत स्वाभाव का होना।
मैदान में विरोधियों की दो टुक सुनने के बावज़ूद भी ये खिलाड़ी सदैव शांत रहा और अपना जवाब अपने बल्ले से देना ही उचित समझा शायद इसीलिए उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। महानता का एक कारण यह भी रहा के इस व्यक्ति ने सदैव अपनी सीमाओं में रहकर बात की और अपने क्षेत्र के विषय में ही अपने विचार रखे। क्रिकेट जगत में इस वक्त कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो सचिन के रिकार्ड्स तोड़ने में सक्षम हैं मगर उनके समान सरलता और सहजता पाना मुमकिन होगा ये कठिन है।
यदि हम भारतीय मनोरंजन के दूसरे सबसे समृद्ध क्षेत्र (सिनेमा जगत) की और रुख करें तो हम जानेंगे के यहां कई लोगों को सचिन से संज्ञान लेने की आवश्यकता है। सिनेमा जगत के कुछ दिग्गजों ने हमेशा ही ऊलजुलूल बात करके खुद को समाज के कटघरे में पाया है। अपने कर्मो व् संवादों से लगातार इन्होंने नैतिक मूल्यों का शिकार किया है कुछ ने तो "ब्लैक बक" का भी।
कुछ लोगों ने अपने कर्मो का प्रायश्चित करने हेतु इंसानियत का हवाला देते हुए संस्थाएं भी खोल रखी हैं जिनका उद्देश्य मानव कल्याण से प्रथक ही कुछ है और जो प्रत्यक्ष है,और प्रत्यक्षता को प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। कुछ वक्त पूर्व शाहरुख साहब कहते हैं के भारत असहिष्णु है फिर आमिर साहब देश छोड़ने की इच्छा जाहिर करते हैं। अपने बयानों से खुद को नीचे गिरता देख ये कहते हैं के हमे गलत समझा गया।
अब गलत को गलत समझा जाए तो इसमें गलत क्या है? मगर गलत पर यदि गलती से भी पर्दा डाला जाए तो हाँ यह गलत है।
हाल ही में सल्लू मियां ने अपने गरल समान शब्दों से एक असंवेदनशील बयान दिया जिसकी उपेक्षा सम्पूर्ण भारतवर्ष में हुई। स्वयं उनके पिताजी ने माफ़ी मांगी मगर उनके कान में जूं तक नहीं रेंगी। ऐसी टिप्पणियॉ कर मैं किसी से उसके अधिकार नहीं छीन रहा मगर बस ये कह रहा हूँ के अधिकार का वाजिब इस्तमाल किया जाए तो बेहतर है।
राजनीति भी बयानबाजी के इस चक्रव्यूह से अछूती नहीं है वरन यहां तो उसका प्रभाव सबसे अधिक है।
सुब्रमणियम स्वामी जी के रघुराम राजन पर किये गए मौखिक हमले ऐसे गंदे वस्त्रों के समान थे के उन्हें जहां रखा जाए वे वहां गंदगी फैला दें। कुल मिलाकर इन सभी बातों का सार यह है के अपने क्षेत्र में महानता हासिल कर चुके इंसान को अपने क्षेत्र में ही रहकर श्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए क्योंकि श्रेष्ठ बचे ही कितने हैं?
सुब्रमणियम स्वामी जी के रघुराम राजन पर किये गए मौखिक हमले ऐसे गंदे वस्त्रों के समान थे के उन्हें जहां रखा जाए वे वहां गंदगी फैला दें। कुल मिलाकर इन सभी बातों का सार यह है के अपने क्षेत्र में महानता हासिल कर चुके इंसान को अपने क्षेत्र में ही रहकर श्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए क्योंकि श्रेष्ठ बचे ही कितने हैं?
अपना दायरा समझना और उसमे रहना कठिन है मगर रहना ही होगा। अपने में मौजूद कुछ अवांछित विचारों को अपने तक रखना कठिन होगा मगर रखें तो बेहतर है और रखना ही होगा।
यह लेख भोपाल से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका सुबह सवेरे में दिनांक 27 जून 2016 को प्रकाशित किया गया। इस लिंक पर उपलब्ध-
Keep Visiting!
No comments:
Post a Comment