इस कविता का मुख्य उद्देश्य बच्चों के मन में मौजूद आस्था को जगाकर उन्हें ये बतलाना है के ईश्वर प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं करता, नज़र नहीं आता मगर उसके नियम कायदे गाहे-बगाहे मनुष्य के समक्ष उद्घाटित होते रहते हैं। इस कविता की भाषा सरल एवं स्पष्ट है। इसमें पाठक को अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं पढ़ेगी।
यह मुख्य तौर पर बाल-साहित्य की कविता है और हो सकता है के साहित्य के शौक़ीन लोगों ख़ास न लगे। इस कविता में आसान भाषा के प्रयोग से मैं एक गहन चिंतन से भरी बात कह रहा हूँ। यदि आप समझ सकें तो मैं अपने आपको कृतज्ञ समझूँगा।
एक रात मैं सोच रहा था -
क्या भागवान हैं होते?
स्वप्न आया उसी रात एक,
मुझको सोते-सोते।।
एकाएक मेरी सोच का,
हो गया विनाश।
जब पता चला मुझको के मैं,
पहुंचा हूँ कैलाश।।
वहां किसी को ना पाकर
मैं लगा बीनने कंकर।
उठी जो गर्दन तो क्या देखा?
सामने शिव-शंकर.
मैंने सोचा अरे बाप रे!
मैं कहाँ आ गया भाई।
शिव शंकर बोले सोच तेरी,
तुझे यहां ले आई।
मैं घबराया , सकपकाया।
खुद को शिव के चरणों में पाया।।
जब शिव ने मेरा हाथ थामा।
लगा जैसे ब्राह्मण घूम आया।।
मैंने बोला माफ़ी प्रभु।
बेकार है मेरी सोच।।
भगवन बोले पूछ सवाल।
मत कर अब संकोच।।
मन में थे कई सारे बवाल।
सोचा अब कर डालूं सवाल।।
मेरी गुस्ताखी को करना माफ़।
इन प्रश्नो से होगा सबकुछ साफ़।।
यदि आपके आशीर्वाद सर्वत्र होते हैं।
तो क्यों आज भी लोग ज़मीन पे सोते हैं।।
क्यों आज भी लोग मांग रहे हैं भीख।
क्यों भूल रहे हैं आज हम आपकी दी हुई सीख।।
गलत कृत्य के अच्छे।
अब अंजाम होते हैं।।
जेब में जिनके छूरी है।
मुँह में राम होते हैं।।
जगह जगह पर हो रहा है,
नाम आपका इस्तेमाल।
ढ़ोंगी सारे मज़े में हैं और,
सच्चों को है हाल, बेहाल।।
छा रहा है प्रभु! जगत में,
झूट, दिखावा, आडम्बार।
कब निकलेंगे शास्त्र आपके?
कब मिटेगा दुराचार?
ऐसे कुछ सवाल अनेक,
उनसे मैंने कर डाले।।
शिव जी बोले निःसंदेह।
तुम व्यक्ति हो निराले।।
मैं दिखाता हूँ मनुष्य को।
केवल उसकी राह।।
कब चलना है, कैसे चलना है।
ये है उसी की चाह।।
मैं बता दूँगा तुमको,
है कौन सा वृक्ष सही।
मगर चढ़ना तुमको ही है,
मैं चढ़ाऊंगा नहीं।।
किसी को दुखी करने में।
मुझे नहीं आता मज़ा।।
कभी भी मिले पर ज़रूर मिलेगी।
हर इक पाप की सज़ा।।
हाँ में मदद करूँगा।
तुझमे ही कहीं रहूँगा।।
सबल-प्रबल तू राह पकड़
मैं पग-पग साथ रहूँगा।।
भक्त बनो, भक्ति करो।
पहले अपने काम की।।
फ़िर कहना अल्लाह-हू-अकबर।
या जय-जय श्री राम की।।
सुनकर उत्तर प्रभु के
दूर हुए सब भ्रम।
यदि गलत है कोई यहां
तो वो हैं हम स्वयं।।
लौटने के वक़्त हुआ,
मैंने कहा सलाम,
प्रभु मुस्काए और बोले
वस्सलाम वत्स वस्सलाम।।
कुछ इस तरह समाप्त हुई,
मेरी सारी बात,
किसी मंत्री-नेता साथ नहीं
स्वयं शिव-शंकर के साथ।।
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