Friday, 27 May 2016

आपके पाठक कौन हैं?


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

-कबीर दास जी

फ़िल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे एवं मैनेजमेंट गुरु एन रघुरामन विगत कई वर्षों से दैनिक भास्कर नामक रोज़नामे में कॉलम राइटिंग(स्तम्भ-लेखन) का कार्य कर रहे हैं। चौकसे साहब फ़िल्म के किस्सों, गीतों व कलाकारों से संज्ञान लेकर राजनीति एवं जीवन मूल्यों पर कटाक्ष करते हैं। वहीं रघुरामन अपने एवं कुछ महान लोगों के जीवन में आए दृष्टान्तों सेे मैनेजमेंट फंडे बतलाते हैं।

दोनों ही लेखक अपने लेखन से पाठकों को अपनी और आकर्षित करने में सक्षम हैं एवं देश कि 30-40 प्रतिशत जनता इनके लेख पढ़ना अपना शौक नहीं ज़िम्मेदारी समझती है। जैसा कि मैंने कहा प्रकाश जी फिल्मो पर एवं रघु जी मैनेजमेंट पर लिखते हैं मगर इसका अर्थ कतई यह नहीं के केवल फ़िल्मी लोग ही प्रकाश जी को पढ़ते हैं एवं केवल एम.बी.ऐ के छात्र रघु जी को। इसका सीधा सादा सा निमित यह है के एक लेख में केवल उसके शीर्षक की व्याख्या नहीं की जाती अपितु/बल्कि उसमे विभिन्न तथ्यों, तर्कों एवं विचारों का समावेश किया जाता है।

आश्चर्य है के प्रकाश जी पिछले कई वर्षों से राजनीति पर,राजनेताओं पर एवं, राजनीतिक पार्टियों पर व्यंग्य कर रहे हैं मगर क्या उनके कटाक्ष वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पढ़े जाते हैं या पूर्व पन्तप्रधान मनमोहन जी ने कभी पढ़े होंगे? ठीक इसी प्रकार रघुरामन जी के मैनेजमेंट फंडे क्या रघुराम राजन द्वारा पढ़े जाते होंगे?

लेकिन एक बात तो निश्चित है कि मोदी जी एवं रघुराम राजन ने अपनी युवावस्था में अवश्य एसे कई सारे लेख पढ़े होंगे एवं वे किसी न किसी लेखक/कवि/अदीब के नियमित पाठक रहे ही होंगे। साथ ही खुद एन रघुरामन और जयप्रकाश जी ने अपने समय में अपरिमेय साहित्य को अपने अंतर्मन में स्थापित किया होगा, जिसके फलस्वरूप आज वे दोनों प्रसिद्द लेखक बने हुए हैं। स्पष्ट होता है के आपके(युवा लेखकों के) पाठक वो नहीं जो किसी प्रसिद्द एवं उच्च पद पर पदस्थ हैं अपितु आपके पाठक आपके आसपास के लोग हैं, आपके मित्र हैं, आपके जानने वाले आपके रिश्तेदार हैं। जो शायद आपके लेखन से, आपके विचारों से, आपके तर्कों से प्राभावित होते हों और उसी के सहारे कालान्तर में सफलता प्राप्त करें। 

लेखन अपने ही लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए भी किया जाता है। और  फिर शनैः शनैः/धीरे-धीरे ही सही एक समस्त पाठक वर्ग आपका अपना हो जाता है। अपनों को अपना नियमित पाठक बनाना मुश्किल है मगर बनाना ही होगा। इस बृहत्तर/विविध समाज में मौजूद मुख्तलिफ़/विभिन्न पाठकों को अपने लेखन से मुतासिर/प्रभावित करना कठिन है मगर करना तो होगा।

Keep Visiting!

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