Sunday, 29 May 2016

क्यूँ है ना।

भ्रमित है तू, क्यूँ है ना।
व्यथित है तू, क्यूँ है ना।।

क्या तुझे कल सताता है।
या फिर कल बुलाता है।।
भूत में फंसा है तू।

या भविष्य डराता है।।

क्या हर एक कदम पे तू।

डगर से डगमगाता है।।

क्या अपने स्वप्न में खुद को।
गहन निंद्रा में पाता है।।

कैद है तू खुद में ही।
तुझे तुझमे नहीं रहना।।
तू खुल के उड़ना चाहता है।
क्यूँ है ना, क्यूँ है ना।।

हर दम संग में तेरे।
तेरा अतीत रहता है।।
उसको याद कर-कर के।
तू भयभीत रहता है।।

तू उभरना चाहता है।
आगे बड़ना चाहता है।।
तू चाहे नदी सा बहना।
क्यूँ है ना, क्यूँ है ना।।

अनहद संभावनाएं। 

तुझमें वास करती हैं।।

बाहर आने के अनवरत।

प्रयास करती हैं।।

खल्क की ख्वाइशों की तेग।
तेरे सपनो पे यूँ चल गई।।
तेरे लक्ष्य को शायद।
तेरी ही कमी खल गई।।

तू सपने बुनना चाहता है।
खुद की सुनना चाहता है।।
तुझे भ्रम में नहीं रहना।
क्यूँ है ना, क्यूँ है ना।।

तराशे जा तू अब खुद को।
तमगों की फ़िक्र ना कर।।
हासिल करते जा सबकुछ।
सफलता का जिक्र ना कर।।

तेरा तमगा तेरा पैसा।
वहां कुछ काम ना आएगा।।
तू कुदरत से है, कुदरत का है।
कुदरत में मिल जाएगा।।

तू बस खुश रहना चाहता है।
व्यथित, आतंकित नहीं।।

चल बेबाक कह दे अब।

तू चाहे मदमस्त ही रहना।।

क्यूँ है ना, क्यूँ है ना।

कलम कुदरती।

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