Monday, 16 May 2016

मुझे शक है इन शंकराचार्यों पर।

इस लेख में लिखी गई सभी बातें मैंने अपने विचारों के आधार पर लिखी हैं जिन्हें मज़बूती प्रदान करने के लिए कुछ तथ्य एवं तर्क भी प्रस्तुत किए हैं।

वाक चातुर्य में श्रेष्ठ और दर्शनशास्त्र के स्वामी महागुरु आदि शंकराचार्य ने पूर्वकाल में चार पीठों की स्थापना की थी।
ये चारों मठ भारत की चारों दिशाओं में स्थित हैं।
पूर्व में जगन्नाथ पुरी में है पुरी पीठ, पश्चिम में द्वारका में स्थित है शारादा पीठ, उत्तर में बद्रीनाथ में है ज्योतिष पीठ और दक्षिण के श्रीनगेरि में है सारादा पीठ।
शंकराचार्य के सभी शिष्यों में से श्रेष्ठ चार को इन चार पीठों का प्रमुख बनाया गया इनका काम था लोगों को उपदेश देना,सार्थक जीवन जीने का मार्ग बताना और धर्म का प्रचार करते हुए उसे जीवित रखना।
चूँकि ये सभी आदि शंकराचार्य के शिष्य थे इसीलिए इन्हें भी शंकराचार्य की उपाधि दी गई।
कालान्तर में सभी पीठों के प्रमुखों ने अपने उत्तराधिकारी चुनना आरम्भ कर दिया जिसके परिणामस्वरुप आज भी ये चारों पीठ भारत में मौजूद हैं। माना जाता है के शंकराचार्य की उपाधि कड़ी तपस्या के पश्चात् मिलती है और इसे पाने वाले लोग स्वयंसिद्ध होते हैं।
गीता के दूसरे अध्याय के छप्पनवे शलोक में कहा गया है के-
"दुःखेषवनुद्विग्नमनः सुखेषुविगतस्पृहः
वितारागभयक्रोधः स्थितधिमुुर्रनिरुच्यते।।"

अर्थात जिसके लिए सुख और दुःख समान अवस्था है जो क्रोध, लोभ, भय से मुक्त है, जो स्थिर बुद्धि वाला है वही सिद्ध पुरुष कहलाता है।
उपरोक्त श्लोक को पढ़ने के बाद मुझे संदेह है के वो लोग जो आज हमारे शंकराचार्य बने बैठे हैं क्या उनका रवैया,उनके कर्म,उनकी भावनाएं उस पद के लिए उपयुक्त हैं। हालही में हुई घटनाओं, तथ्यों, और हिंदुओं के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ गीतोपनिषद के तर्कों को पढ़ने के बाद ये संदेह और अधिक गहरा जाता है।
कुछ ही दिन पूर्व ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपने ऊलजुलूल बयानों के कारण सुर्ख़ियों में रहे उन्होंने राजनीतिक मुद्दों पर बातें की जिससे यह सिद्ध हुआ के सांसारिक माया का असर उनके सर चढ़कर बोल रहा है साथ ही उन्होंने क्रोध में आकर एक पत्रकार को चाटा जड़ दिया जिससे उनकी सिद्धि का अनुमान लगाना हर किसी के लिए आसान हो गया।
सिंहस्थ में पधारे इन सभी शंकराचार्यों के बीच अब वर्चस्व की लड़ाई आरम्भ हो चुकी है।
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती का कहना है के परम्परा के अनुसार वही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य हैं।
खुद को शंकराचार्य बताते हुए वे स्वरूपानंद सरस्वती के खिलाफ पर्चे भी बटवा रहे हैं।
वहीं स्वरूपानंद जी का कहना है के मेरे पास कोर्ट के आदेश की कॉपी है जिसे देखना है देख लें।
आश्रय होता है के समस्त विश्व के हिंदुओं को उपदेश देने वाले कोर्ट के उपदेश का हवाला दे रहे हैं।
इसी तरह पुरी पीठ में भी समान मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है स्वामी अधोक्षजानंद खुद को पुरी पीठ का शंकराचार्य बता रहे हैं और स्वामी निश्चलानंद सरस्वती उनके खिलाफ मुकदमा चलवाने की बात कर रहे हैं।
अब सोचिए जिनका काम जनसामान्य की समस्याओं को सुलझाना है वे खुद ही उलझे हुए हैं।
जिनका काम सभी प्रकार के क्लेश मिटाना है वे स्वयं क्लेशों में फंसे हुए हैं।
कौन असल शंकराचार्य है और कौन नकली ये तो मैं नहीं जानता मगर हाँ इतना ज़रूर जानता हूँ के जिन शंकराचार्यों का वर्णन हमारे ग्रंथों व् पुराणों में है इनमे से वह कोई भी नहीं।
स्मरण रहे भगवा ओढ़ लेने से एवं भागवत का पाठ कर लेने से कोई साधु नहीं बनता अपितु जीवन को भगवा वस्त्र के समान स्पष्ट एवं शुद्ध बनाकर और गीता के उपदेशों को जीवन में उतारकर ही परमसिद्धि की प्राप्ति होति है।
अन्धविश्वास रुपी सागर से निकलना मुश्किल है मगर निकलना ही होगा।
भौतिक ईश्वर और आध्यात्मिक ईश्वर में अंतर समझ पाना कठिन है मगर समझना ही होगा।
इस विचारविहीन संसार में अपने विचार रखना घातक है,कठिन है पर रखना तो होगा।

#कलम_कुदरती

ये लेख 18 मई 2016 को भोपाल से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका सुबह सवेरे में प्रकाशित किया गया।

इन लिंकों पर उपलब्ध- 

http://epaper.subahsavere.news/m/812334/SUBAH-SAVERE-BHOPAL/18-May-2016#issue/5/1

http://cache.epapr.in/812334/a240c852-0405-4a32-8a4a-8fe145c569f3/1400x2184-700x728/2x3.png

No comments:

Post a Comment

For Peace to Prevail, The Terror Must Die || American Manhunt: Osama Bin Laden

Freedom itself was attacked this morning by a faceless coward, and freedom will be defended. -George W. Bush Gulzar Sahab, in one of his int...