Sunday, 15 May 2016

कवि-निकेतन।


यह लयबद्ध कविता समर्पित है उन तमाम शौरा ओ नज़्म ओ अफ़साना निगारों को जिन्हें पढ़कर मैंने कविताओं से, साहित्य से, लेखन से प्रेम करना सीखा है।


जहां विचारों की विविधता और
ख्यालों का सम्मान है।
जहां भाषाओं का सम्मेलन और
शब्दों की आवाम है।।
जहां सोने के सिक्कों से ज़्यादा
अल्फ़ाज़ों का दाम है।
कवियों के मन में वो बसता
कवियों का इक धाम है।।

जहाँ हर सदी के कलमकार का,
होता साक्षात्कार है।
जहां मीरा का प्रशासन है और
कबीरा की सरकार है।।
जहां परसाई के व्यंगों से लगता,
हर ज़ुबां पर ताला है।
जीवन का यथार्थ बताती
मृदुभाव मधुशाला है।।

जहां वर्ड्सवर्थ के वर्णन से 
कुदरत भी शर्मा जाती है।
जहां दिनकर की, दुष्यन्त की अग्नि,
 हर मन में ज्वाला भड़काती है।
जहां भवानी के भावों से,
सब मंगल हो जाता है।
बंजर मन भी सतपुड़ा का,
घना जंगल हो जाता है।।

जहां निराला की रचनाएं
ह्रदय पर कब्ज़ा करती हैं।
मेघ बन-ठन जाते हैं
और बारिश भी बातें करती है।।
फ़ैज़ की बातों से हर दिल में,
दायम इश्क़ एक बहता है।
बशीर, जौन के शेरों का
हर दिल पर जादू रहता है।।

जहां ग़ालिब का बाज़ीचा है
और सब उनके अत्फाल हैं।
जहाँ नज़्मों से दिन कटते हैं,
और ग़ज़लों से साल हैं।
जहां इंशा ने ज़ोर-शोर से,
एक ही हुक्म लगाया है,
सब माया है, सब माया है
सब माया का जाया है।।

जहां शुक्ल, पन्त, निर्मल वर्मा,
महादेवी दिल में छाई हैं
माखन की कविता के आगे,
कोयल भी रोइ-गाई है।।
गुलज़ार के नग्मों से गूंजे 
जहां कूचे-गलियारे हैं।
साहित्य रुपी रत्नाकर में 
डूब चुके जहां सारे हैं।।

जहां अल्हड़ बीकानेरी की
अल्हड़ता सब पर भारी है।
अनुभवों से सिंचित होती
अनुभूति की क्यारी है।।
काल्पनिक सी उस जगह का 
कविनिकेतन नाम है।
कवियों के मन वो बसता
कवियों का इक धाम है।।

जहां गीता से पहले होते
गीतांजलि के दर्शन हैं।
संवेदना ज़र्रे-ज़र्रे में,
कविता कण-कण में है।।

शब्दों की शमशीर तानने का
मैं भी अभिलाषी हूँ।
उस "कविनिकेतन" के कमरों का,
मैं भी एक निवासी हूँ।।
उस "कविनिकेतन" के कमरों का,
मैं भी एक निवासी हूँ।।

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