Saturday, 7 May 2016

द्वंद्व।


अपने स्कूल के दिनो में आप सभी ने हिंदी तो पढ़ी ही होगी और यदि हिंदी पढ़ी होगी तो व्याकरण भी पढ़ी होगी और व्याकरण पढ़ते वक्त समास तो निश्चित तौर पर  पढ़ा होगा। हिंदी में मुख्य रूप से छह प्रकार के समास होते हैं जिनमें से एक होता है द्वंद्व समास, इसमें वह शब्द जो एक दूसरे से कई माइनो में अलग हैं उन्हें एक साथ रखा जाता है उदाहरण के तौर पर "भाई-बहन","पापा-मम्मी" आदि। यहां साफ तौर पर देखा जा सकता है के एक दूसरे से भिन्न होकर भी ये शब्द हमेशा एक दूसरे के साथ ही प्रयोग में लिए जाते हैं और शायद इसलिए इन्हें द्वंद्व समास कहा जाता होगा।

क्योंकि इस संसार में जब-जब विचारों में मतभेद हुआ है जाने-अनजाने में द्वंद्व का जन्म हुआ ही है। महात्मा गांधी और भगत सिंह, दोनों की विचारधाराओँ में ज़मीन आसमान का फर्क था। एक जहां नरम दल से थे वहीँ दूसरे गरम दल से मगर फिर भी समय की अनोखी मांग पर दोनो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साथ आए नतीजा ये निकला के आज भी भारत में लोग दो गुटों में बटे हुए हैं। कुछ का कहना है "अहिंसा परमो धर्मः" तो कुछ  कहते हैं के- "कितने फ़ासी पर झूले कितनो ने जान गंवाई थी क्यूँ झूठ बोलते हो साहब के चरखे से आज़ादी आई थी"।
अन्ना हज़ारे ने जब जन लोकपाल आंदोलन की शुरुआत की तो देशभर से लोग उनके समर्थन में खड़े नज़र आए, विशाल जनसमर्थन उनके आंदोलन की सफलता को बयां कर रहा था मगर अचानक केजरीवाल साहब ने एक नई पार्टी बनाने का प्रस्ताव रख दिया जिसे अन्ना ने सिरे से नकार दिया और द्वंद्व की स्थिति पैदा हो गई, परिणामस्वरुप अन्ना और केजरीवाल में दूरियां बड़ गई।

केवल राजनीतिक मामलों में ही नहीं बल्कि सामाजिक और पारीवारिक मामलों में भी सोच,अनुभव और विचारों का समान न होना ही द्वंद्व का निमित है। आप जीवन में कुछ अलग करना चाहते हैं मगर आपके माता-पिता कई बार आपका समर्थन करते हुए नज़र नहीं आएंगे। उनके अनुसार आप आसान राह पर चलें आसान राह से मेरा तात्पर्य उस ढर्रे से है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। पहले पढ़ाई फिर नोकरी फिर बच्चे और अंततः चार धाम यात्रा। यहां आप गलत नहीं क्यूंकि आप तो इस बृहत्तर समाज में अपनी अलग पहचान बनाने हेतु लीक से हटकर चलना चाह रहे हैं मगर यकीन मानिए आपके माता-पिता भी उनकी जगह सही हैं। 

उदाहरण के तौर पर एक माँ जिसने अपने पति को लगातार पैसों के लिए परेशान देखा हो जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया हो और अपने परिवार को सदैव सम्मान से वंचित पाया हो वो कभी नहीं चाहेगी की उसकी संतान भी वो सब कुछ सहे। गलत कोई नहीं मगर विचार अलग-अलग और विचारों में अंतर अर्थात द्वंद्व।

हम सब द्वंद्व से भरा हुआ जीवन जीते हैं कुछ पल-पल में आते हैं तो कुछ आने वाले पलों को निर्धारित करते हैं। सवाल ये है कि क्या हम एक ऐसा समाज बना पाएंगे जहां द्वंद्व ना हों यदि मुझसे पूछे तो कतई नहीं क्योंकि इस द्वंद्व नाम के वृक्ष की जड़ हैं विचार जो मन से उभरते हैं और इंसान उन विचारों के अनुसार ही कार्य करता है। व्यक्ति कुछ भी छोड़ सकता है मगर विचार करना नहीं।

अब इसे उस ईश्वर की नीति कहें या नियति,संयोग कहें या सुयोग मगर एक ऐसा संसार जहां द्वंद्व या मतभेद ना हो की कल्पना करना भी नादानी होगी।  मैं तो यही कहूँगा कि द्वंद्व और कुछ नहीं बल्कि विचारों का मंथन है जिसके पश्चात अमृत की प्राप्ति होती है बस हमे ध्यान रखना होगा के यह मंथन, यह कुंभ सार्थक हो।

अपने मत की रक्षा करते हुए दूसरे के मत का सम्मान करना कठिन है पर करना ही होगा, सार्थक द्वंद्व और निरर्थक द्वंद्व में अंतर समझना कठिन है पर समझना ही होगा। इस विचारविहीन समाज में विचार करना कठिन है पर करना तो होगा।

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