Even The sight of River Narmada Can Cleanse All Your Sins
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
वादियां सब गूँज उठी और
वृक्ष खड़े प्रणाम कीए।
तवा,गंजाल,कुण्डी,चोरल और
मान,हटनी को साथ लिए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
कपिलधार से गिरकर आई
जीवों को जीवन दान दिए।
विंध्या की सूखी घाटी में
वन-उपवन सब तान दिए।
पक्षियों की ची-ची, चूं-चूं
शेरों की दहाड़ लिए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
सात पहाड़ों से ग़ुज़रे ये
सतपुड़ा की शान है।
प्राकृतिक परिवेश की रानी
पचमढ़ी की जान है।
ओम्कारेश्वर में शिव-शंकर
स्वयं खड़े प्रणाम कीए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
इस बस्ती में आकर
खुद को विकट विपदा में डाल दिया।
इंसानो के वेश में बैठे
शैतानो को पाल लिया।
यहां पग-पग पर पाखंडी बैठे
कर्मकाण्ड के हथियार लिए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
पहले तुझमे झांककर
लोग खुद को देख जाते थे।
मन,जबां की प्यास बुझाने
तेरे दर पर आते थे।
आज किनारों से लौटा हूँ
मट-मैली मुस्कान लिए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
तेरा रोना, रंज-ओ-गम,
हम कुछ भी देख ना पाते हैं।
तेरे आंसू तुझसे निकलकर
तुझमे ही मिल जाते हैं।
कड़वे-कड़वे घूँट दर्द के
तूने घुट-घुट ग्रहण किए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
ढोंग-ढोंग में सबने तुझपर माँ
का दर्जा तान दिया।
हाथ खड़े कर दे वो
जिसने रंचमात्र सम्मान दिया।
रूढ़िवादी बनकर तुझपर
नाजाने कितने आघात किए।
अमरकंठ से निकली रेवा
अमृत्व का वरदान लिए।
यह कविता मिस्सिस्सुआगा (कनाडा) से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका साहित्य कुञ्ज के जून 2016 प्रथम अंक में प्रकाशित की गई। पढ़ने के लिए यहाँ
Bank of Narmada Hoshangabad (MP) |
यह कविता मिस्सिस्सुआगा (कनाडा) से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका साहित्य कुञ्ज के जून 2016 प्रथम अंक में प्रकाशित की गई। पढ़ने के लिए यहाँ
COPY OF SAHITYKUNJ MAGAZINE |
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