Wednesday, 20 April 2016

घोड़ी तो मैं भी चढूंगा।

यदि किसी व्यक्ति को भारतीय परम्पराओ को कम समय में सम्पूर्ण रूप से जानना हो तो उसे भारतीय समाज में होने वाली शादियों को देख लेना चाहिए।
शादी तय होने से लेकर रिसेप्शन ख़त्म होने तक जितनी भी गतिविधियाँ होती हैं वे सभी किसी न किसी रूप में अद्भुत प्रतीत होती हैं।
कुछ को आप अजीब या अनावश्यक भी कह सकते हैं मगर इन परम्पराओं की उपयोगिता साबित करने के लिए इन्हें तर्क की कसोटी पर इस तरह से कसा गया है के इन्हें तोड़ने का साहस किसी में नहीं होता।
मेने भी अपने इस जीवन में अनेको शादियां,निकाह,ब्याह,मैरिज,वेडिंग देखि हैं और इन सभी में जो बात समान रूप से देखने को मिलती है वह है बारात या प्रोसेशन।
फिल्मो में मेने अक्सर देखा है के लड़कियां अपने सपने में अपने सपनो के राजकुमार को घोड़े पर आते हुए देखती है आश्रय है कोई कभी हाथी या शेर का विचार क्यों नहीं करता।
बहरहाल सभी शादियों में बारात का स्वरुप समान होता है,दूल्हा घोड़ी पर सवार हो जाता है उसके सगे-रिश्तेदार सूट-बूट में आजाते हैं और बैंड,डी जे के शोर गुल में सभी नाचने लगते हैं।
यहां पर किया गया हर डांस अद्भुत ही होता है जीजा की जुगलबंदी से लेकर मामा की मस्ती के नज़ारे यहां साफ़ देखे जा सकते हैं।
असल मज़ा तो तब आता है जब गलियों से गुज़रती इस बारात को निहारने के लिए घरों के अंदर बेठे लोग अपना काम-धाम छोड़कर अपनी बालकनियों या अपने छज्जो पर इक्कठा हो जाते हैं और नाचते लोगों की चुटकियां लेते हैं वो तो अच्छा है के बारात में वधु नहीं होती वरना छत पर खड़े लोग "डांस इंडिया डांस(जोड़ी स्पेशल)" के जज के समान जोड़ी को अंक भी प्रदान कर देते।
इस सबके के बीच घोड़े पर बेठे दूल्हे का मुँह भी देखने लायक होता है कभी मुस्कुराते हुए, कभी थोड़े गुस्से में तो कभी अपने सामने बेठे उस बच्चे को सँभालते हुए परेशानी में।
कुछ भी कहो मगर घोड़ी चड़ते वक़्त गधा भी घोड़ा लगता है अर्थात शादी के वक़्त दूल्हे को आई ऐ एस अफसर की तरह सम्मान दिया जाता है और वो उस सम्मान का हक़दार भी है क्योंकि शादी के पश्चात तो नारी शक्ति का ही सम्मान होना है।
एक बार ठीक ऐसी ही एक बारात में मैं मौजूद था
उप्पर लिखी गई बातों से परे मेरी आँखों को जिस इंसान ने अपनी और आकर्षित किया वो था बारात में मौजूद उस घोड़ी की नाल पकड़कर उसे नियंत्रण में रखने वाला एक बच्चा जो घोड़ी को धीरे धीरे बारात के साथ लेकर चल रहा था हर दिन उसे बस यही काम करना होता होगा,समाज की इस प्रचलित प्रथा को वो हर दिन अंजाम देता होगा।
उसकी आँखों में कुछ बनने के ख्वाब तो होने से रहे
पढ़ने-लिखने का विचार तो घोड़ी के पैरों तले ही रौंदा जा चुका है।
और उसका बचपन वो भी घोड़ी द्वारा चारे के साथ खाया जा चुका है मगर हां एक सपना उस बच्चे की आँखों में साफ़ देखा जा सकता है के-
कुछ भी हो "एक दिन घोड़ी तो मैं भी चढूंगा"

लेख का मर्म जानने के लिए----

विचार अवश्य कीजियेगा☺

#kalam_kudrati

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