आज से अवकाश पे हूँ।
मैं कल की तलाश में हूँ।।
उज्वल जो होगा,सुनहरा जो होगा।
उस कल की आस में हूँ।।
मैं कल की तलाश में हूँ।
मेरी चाहत का होगा।
मेरी मर्ज़ी का होगा।।
जहां पे सब कुछ।
बिना अर्ज़ी के होगा।।
गुनगुनाता यही साज़ हूँ।
मैं कल की तलाश में हूँ।।
आज वही जो कल गड़ रहा है।
उस से ही अवकाश पे हूँ।।
उम्मीदों की ईटें, विचारों की छत है।
सपनो के निवास में हूँ।।
मैं कल की तलाश में हूँ।
प्रत्यक्षता को टालूं।
और कल को बुला लूँ।।
उसी को विचारुं और आज भुला दूँ।
इन खयालों के पास में हूँ।।
मैं कल की तलाश में हूँ।
आज के पीछे कल छुप गया है।
आज अभी है कल कुछ नया है।।
आज को मनाकर कल को बचा लूँ।
आखिर आज का ही इक दास हूँ।।
मैं कल की तलाश में हूँ.....
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