Tuesday, 23 February 2016

काश! कर्तव्यों का भी ख्याल रखा होता।


ठीक 9 फरवरी से लेकर आज तक मेरी नज़र जेएनयू घटनाक्रम पर बनी हुई है इस घटना ने मुझे ये सवाल पूछने पर मजबूर कर दिया के आखिर क्या ज़रूरत पड़ गई थी के मुझ जैसे कुछ युवा छात्रों ने भारत विरोधी नारे लगा दिए,भारतीय संसद पर हमला करने वाले अफज़ल गुरु के पक्ष में और भारतीय न्यायपालिका के विरोध में एक कार्यक्रम का आयोजन कर दिया जिससे पूरे देश में अस्थिरता फ़ैल गई,राजनैतिक सरज़मी गरमा गई और तो और विपक्ष एक बार फिर सत्ताधारी सरकार पर बेवज़ह चढ़ बैठा और इस मुद्दे को और भड़का दिया।
शायद इसका जवाब तो सिर्फ उन 5-6 युवाओं के पास ही है जिन्होंने इस मुद्दे का सूत्रपात किया था
मगर क्या ये सही है??
सोचिये आप सवाल खड़े कर रहे हैं तो किसके खिलाफ भारतीय न्यायपालिका के खिलाफ जहां का सिर्फ एक उसूल है चाहे 100 दोषी छूट जाँय एक निर्दोष को सज़ा नहीं होनी चाहिए और आप उस इंसान के पक्ष में खड़े हैं जिसने भारतीय संविधान के मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन पर हमला किया था। मैं नहीं जानता आप लोग ये सब क्यों कर रहे हैं शायद सुर्खियां बटोरने के लिए या शायद आप भारतीय राजनीति में अपना एक स्थान बनाना चाह रहे हैं यदि हाँ तो ऐसा करके आप एक राजनीतिज्ञ बनेंगे एक राजनेता नहीं या कहीं आप अपने अभिव्यक्ति के अधिकार का इस्तमाल तो नहीं कर रहे यदि हाँ तो आप भी उसी बिमारी से पीड़ित हैं जिससे कुछ समय पहले भारत को असहिष्णु कहने वाले बुद्धिजीवी पीड़ित थे।

गत रविवार सभी चार आरोपियों के साथ उमर खालिद विश्विद्यालय परिसर में लौट आए और छात्रों को संबोधित किया जहां कथित तौर पर उमर खालिद ने बयान दिया की "मेरा नाम उमर खालिद ज़रूर है मगर में आतंकवादी नही हूँ" चलिए माना के आप आतंकवादी नहीं मगर भाईसाहब आप भारतीय तो हैं। शायद आप यह भूल रहे हैं कि जिस संविधान ने आपको अधिकार दिए हैं उसी संविधान ने आपको कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी दी हैं और एक भारतीय होने के नाते आपको उन्हें निभाना होगा। मैं यहां बैठकर आपकी मनोस्थिति या आपकी योजना का पता तो नहीं लगा सकता मगर फिर भी एक युवा और एक भारतीय होने के नाते ज़रूर कहूँगा के आप जो भी कर रहे हैं उससे हमारे देश को,उसके मान,उसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँच रहा है और मेरी नज़र में ये सरासर गलत है।

बहरहाल उमर खालिद व् अनिबर्न भट्टाचार्य ने गत मंगलवार पुलिस के सामने समपर्ण कर दिया है आशा है के अब वो बेबाक और बेफिक्र तरिके से पुलिस को अपनी बात बताएँगे और शायद इसी से सभी प्रकार के बयानों, विचारों,बातों और गुलमतों पर पूर्णतः अंकुश लग जाएगा।

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