Friday, 4 March 2016

हमे बक्श दे।

If Someone is gay and He Searches for Lord and has Good Will, Who am I To Judge .

-Pope Francis


Inspired By The Incident Of AMU (Aligarh).........

ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

तेरी क्यारी में, फुलवारी में,
तेरे बाग़ में, गुलज़ार में,
ये नफ़रतें जो बोई हैं...
सिसकी है तू, घबराई है..
मैं जानता हूँ रोइ है....

जो है ये बारिश बेवक़्त की
शायद! तेरे ही अश्क़ हैं.....
ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

कुछ भेद हैं छोटे बड़े,
कुछ रत्न तूने सब में गड़े...
हम सौदाई हैं, जो फ़र्क़ करें,
किस राह जाने चल पड़े,

जो गुज़र गये हिम्मत हार के
वो भी तेरे ही अक़्स थे,
ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

सब ख़ास हैं, सब दानिश-गर....
सब अपने हैं, समझे अगर,
तूने रचा सबको अलग....
तुझसे हैं सब, सब तुझ तलक,

तेरे खेल को समझ सकें,
इतना दक्ष करदे हमे,
ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

तेरे उसूलों से अनजान हैं।
ये समाज अब पहचान है।।
तेरे नियम हम समझ सकें
तू निर्णय निष्पक्ष दे।

ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

आसमान में मेघ कितने,
हर रूप हर आकार के,
बागबां में फ़ूल ढ़ेरों, 
हर रंग हर प्रकार के....

हैं घड़े सब मुख़्तलिफ़,
तेरी माटी के, तेरे प्यार के....
ऐ! कुदरत, ओ! कहकशा,
चल मान जा,
हमे बक्श दे.....

I spent two decades here. I love my University. I have always loved it and will continue to do so no matter what. But I wonder if they have stopped loving me because I am gay.

—Proffesor Ramchandra Siras, 2010

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