एक
कम नहीं हम पर सितम ख़ुदा-कसम।
फ़िर भी हँस रहे हैं हम ख़ुदा-कसम।।
कोई मानेगा नहीं कि रो रहे हैं,
जब तक ना होंगी आँखें नम ख़ुदा-कसम।।
ग़म के ऊपर ग़म है, ऊपर उसके क्या?
कुछ नहीं बस ग़म ही ग़म ख़ुदा-कसम।।
तफ़्सीर उस एहसास की है ही नहीं कुछ,
महसूस जो कर रहे हैं हम, ख़ुदा-कसम।।
तुम दरीचे से रवि को तक रही हो,
मार्च की दुपहरी में सूरज नरम? ख़ुदा-कसम।।
झूठ लिखने में ज़हन पर ज़ोर पड़े है,
और टूट जाती है कलम, ख़ुदा-कसम।।
खाते-खाते, खा गए हैं कितनी कसमें,
फ़िर भी भूख हुई ना कम, ख़ुदा-कसम।।
दो
लोग सारे कर रहे हैं अच्छी शायरी,
हम अकेले कर रहे हैं कच्ची शायरी।।
बिना सोचे सामईन वाह-वाह कर रहे,
सो शायर भी कर रहा है टुच्ची शायरी।।
आप सच्चे शख़्स हैं तो सच बोलिये -
आप पर लाज़िम नहीं है सच्ची शायरी।।
एक हंसी से कर दे जो घर को शादमां,
रुला दे एक सिसकी पर, है वो बच्ची शायरी।।
दिल नहीं करता किसी की फ़िक्र ओ परवाह?
तो किस तरह होगी बताओ अच्छी शायरी?
तीन
लड़ाओ, के लड़ाने से लड़ती है भीड़।
डराओ, के डराने से डरती है भीड़।।
चंद रुपयों में गई थी, लौट आएगी,
चंद रुपया और फेंको, सस्ती है भीड़।।
वो के जिसके ना-ख़ुदा पल-पल बदलते हैं,
जिसका एक साहिल नहीं, वो कश्ती है भीड़।।
कौन समझाए और कितना समझाए?
समझाने से थोड़ी समझती है भीड़।।
चार
शायरी में अब कहाँ है वो ख़ुमारी वो नशा।
रोने वाले को हँसा दे और हँसते को रुला।।
हैं दहर में कहकशा ओ चाँद, सूरज सैकड़ों।
आप देखें उस ख़ुदा ने जो रचा बे-हद रचा।।
आप पौधे कौन से ले आए मेरे बाग़ में।
पेड़ जो मौजूद था वो भी नहीं बाकी बचा।।
ज़िंदगी अब और मुबहम हो नहीं सकती मिरी,
मुश्किलों में आ रहा है अब मुझे कुछ-कुछ मज़ा।।
बद-दुआ का तो कभी हम पर असर होगा नहीं।
और हुआ तो मान लेंगे पड़ गई कम कुछ दुआ।।
दोस्ती हो, दुश्मनी हो, इश्क़ की हो जुस्तजू,
बे-तहाशा सब करो तुम बे-तहाशा है बजा।।
शेर में कैसे करेंगे कैफ़ियत उन की बयां।
जीस्त की भिक्शा के बदले में मिली जिनको क़ज़ा।।
पांच
बोल ख़ुद से रोना मत हम रो पड़े।
तीरगी में ताक छत हम रो पड़े।।
ख़ुशफ़हम लोगों ने बोला ख़ुश रहो,
मांग उन से माज़रत हम रो पड़े।।
ना-उमीदी कोई अच्छी शय नहीं,
पर लगाकर इस की लत हम रो पड़े।।
इक सुबह इतना हँसे की रात में,
मानकर हँसना ग़लत हम रो पड़े।।
रोना-हँसना, रोना-हँसना क्यों भला?
रोना हो तो रो सतत हम रो पड़े।।
रोने का जब भी सबब पूछा गया,
बोलकर के है आदत हम रो पड़े।।
सच कभी होगा नहीं सो ख़ाब में,
फाड़कर तुम्हारा ख़त हम रो पड़े।।
प्रद्युम्न अपना कौन है? की लिस्ट में जब
प्रद्युम्न ही आया फ़क़त हम रो पड़े।।
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