प्रेम होना आम है, प्रेम पा लेना ख़ास।
-Nirmal Verma |
एक
ये जो तेरे चेहरे की, तबस्सुम है,
इस पे क़ुर्बान ये चांद, और अंजुम है।।
वो जो एक फर्द था वो था ज़माना मेरा,
जो वो नहीं है तो ज़माना गुम है।।
तू मेरी जान-ए-जहाँ थी मेरा सब,
तू नहीं है तो सभी कुछ, गुम है।।
तेरे आने से जो आ गई थी बहार,
आज-कल ना-जाने कहाँ, गुम है।।
पहले हम में, "हम" थे, हम ही यकसर।
आजकल "हम" हम नहीं है, "तुम" है।।
तेरे सिवा इस, ग़ज़ल में कुछ भी नहीं,
तू लफ्ज़, तू ही ख़्याल, तू ही तरन्नुम है।।
ना पीने की नसीहत दे वो रहा है -
जिस के हाथों में सुबू है, खुम है।।
ओ री दुनिया, ओ री मतलबी दुनिया।
हम को तेरा हर तक़ाज़ा मालुम है।।
दो
राही ऐसे अपने हम-राही से मिलता है,
जैसे इलाही से एक सवाली मिलता है।।
मंज़िलें दोनों की फिर एक साथ चलती हैं
दोनों की परछाइयाँ भी साथ चलती हैं
आगे चलकर राह पर एक मोड़ आता है
एक की साँसें दूसरे के खून में चलती हैं
पल दो पल में रूह अपना घर बदलती है
एक के ग़म में दूसरे की आँखें जलती हैं
दोनों घर में एक जैसा फूल खिलता है
फूल जिसका रंग दोनों घर से मिलता है
राही अपनी राह पर चलकर रहेगा तू
तू है नदी, थमना नहीं, बहता रहेगा तू
दुनिया के ज़ुल्म ओ सितम सहने पड़ें तो क्या
तू राही है, हम-राही से मिलकर रहेगा तू
आसमान में बादलों को देखकर पूछो
किस दिशा में जा रहे हैं, किससे मिलने को?
राही हैं हम भी, कहेंगे आसमान से वो,
जा रहे हैं अपने हम-राही से मिलने को.
राही ऐसे अपने हम-राही से मिलता है,
जैसे इलाही से एक सवाली मिलता है।।
तीन(वेब-सिरीज़ मटकीफोड़ के लिए लिखा गीत)
शमा जो बुलाये तो परवाना आए
दरख़्तों की हसरत बारिश बुलाये
हवाएँ करें पतझड़ की खुशामद
ये बे-दारी ख़्वाब बुलाये....
चल पड़ता है पानी उफ़क की तरफ जो
आसमान से कौन बुलाये
सब रातें पुकारे सुबह को
सवेरे रतियाँ बुलाएं
वो मेरे हाल पर रोया भी, मुस्कुराया भी
अजीब शख़्स है, अपना भी, पराया भी,
मैं चाहता हूं ठहर जाए चश्म ए दरया में
लहराता अक्स तुम्हारा और मेरा साया भी
ये इन्तिज़ार सहर का था या तुम्हारा
दिया जलाया भी मैंने
बुझाया भी
शम्मा बुझाकर हुआ रुख़सत परवाना
पतझड़ अब पूछे हवा का ठिकाना
बिना बारिश के मुमकिन कहाँ पेड़ों का आना
आसान है बे-दारी में ख़्वाब बुलाना
बड़ा मुश्किल है मगर भूल पाना....
चार(वेब-सिरीज़ मटकीफोड़ के लिए लिखा गीत)
नींद मेरी कर रही है ख़्वाबखोरी
सपने चखना चाहती है ये चटोरी
ज़ायका लेती है मीठी ख़्वाइशों का
सपने में भी आके सुनाती लोरी
नींद मेरी कर रही है ख़्वाबखोरी।
सुबह ओ शाम मुझ में भागे
ख़्वाबिदा से ये ख़्वाब सारे
मैं सोऊं पर ये जागे,
ख़्वाबिदा से ये ख़्वाब सारे।
मैं चाहूं खुलके सांस भरना
चाहूं कुछ कमाल करना
चाहूं कोहसार चढ़के
समंदर तैर पार करके
जवाबों से ऊब चुका हूँ
मैं चाहूं अब सवाल करना।
नींद मेरी कर रही है ख़्वाबखोरी
सपने चखना चाहती है ये चटोरी
ज़ायका लेती है मीठी ख़्वाइशों का
सपने में भी आके सुनाती लोरी
नींद मेरी कर रही है ख़्वाबखोरी।
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