Tuesday 15 December 2020

मुहब्बत की नज़्में।


प्रेम इस तरह किया जाए

कि दुनिया का कारोबार चलता रहे

किसी को ख़बर तक हो कि प्रेम हो गया

ख़ुद तुम्हें भी पता चले

किसी को सुनाना अपने प्रेम की कहानी

तो कोई यक़ीन तक करे


-गीत चतुर्वेदी


इस तस्वीर को मैंने पहली बार फेसबुक पर तब देखा था जब मानव कौल ने अपनी किताब "तुम्हारे बारे में" के पोस्टर को पहली बार सबके सामने रखा था. फिर दूसरी बार किताब को अपने हाथ में लिए हुए इसी तस्वीर को कुछ मिनिट तक निहारा था. आज तीसरी बार जब इसे यहाँ ब्लॉग पर लगाया तो देखा कि बादलों, पहाड़ों और पेड़ों के बीच अपनी गर्दन झुकाए मानव खड़ा हुआ है. इसपर आश्चर्य करते हुए ही एक विचार बगल में रखी अधूरी कविताओं की डायरी से बाहर आया और लैपटॉप पर लद गया. वह यह है कि कितनी ही बार प्रेम हमारे ठीक सामने होता है, लेकिन ठीक उस समय हम अपनी धुन पर सवार कुछ और ही तलाश कर रहे होते हैं. "प्रेम की तलाश" हमेशा हमारे चेतन मन में नहीं रहती, अक्सर वह अवचेतन में हमारी राह तकती ठहरी रहती है. एक लम्बा ठहराव उसे अलसा देता है और फ़िर वह वहीँ झपकी लेने लगती है. ऐसे में एन वक़्त पर जब हम उसे अपने चेतन में आवाज़ देते हैं, वह उठ नहीं पाती. अपना प्रेम हासिल कर लेने को इसलिए ही चमत्कार, जादू, करिश्मा, मोजज़ा, अद्भुत संयोग आदि की संज्ञाएँ दी गई हैं. क्योंकि यह तब ही होता है जब प्रेम ठीक उस समय आपके सामने आए जब कि आप उसकी तलाश कर रहे हों. अब प्रेम आपसे कब मुख़ातिब हो जाए यह आप नहीं जानते और ना कभी जान सकेंगे. इसलिए बेहतर है कि प्रेम की तलाश कभी बंद ना की जाए, उसे जारी रखा जाए, इस उम्मीद में कि कभी ना कभी वह ज़रूर होगा जिसे सब चमत्कार, करिश्मा, जादू, मोजज़ा या अद्भुत संयोग कहते हैं। मैंने प्रेम या अपने प्रेमी, अपने माशूक को हमेशा ऐसे देखा है जैसे कोई नन्हा बच्चा बड़ों के कपड़ों को देखता है और उन्हें पहनना चाहता है. वह यह शायद जानता भी हो कि जिन कपड़ों की चाह उसे है वे उसे फिट नहीं आएँगे और इसलिए संभवतः उसे कभी मिलेंगे भी नहीं लेकिन इसके बावजूद वह उन्हें पाने, हासिल करने की ज़िद नहीं छोड़ता. मुझे फ़लक से भी बे-इंतहां मुहब्बत है, लेकिन बकौल जौन एलिया फ़लक हक़ीक़त नहीं है, हसरत है

एक

प्रेम जीने के लिए,

प्रेम करना आवश्यक है

प्रेम पाना नहीं

दो।

जो लिखी जाती हैं सिर्फ़ किसी को 
प्रभावित करने के मक़सद से,
खोखली होती हैं वे सब कविताएं।

तीन

तुम अपना प्रेमी हार भी सकते हो,
लेकिन अपना प्रेम? 
कभी नहीं हार सकते

चार

जब विवाह को मान लिया गया 
प्रेम का पर्याय,
ठीक तब कहा गया कि -
प्रेम एक बार ही होता है

पांच

रेलवे-स्टेशन पर 
वह मुझे छोड़ने आई।

उसने मुझे 
रेलवे-स्टेशन पर छोड़ा।

छोड़ दिया उसने मुझे
रेलवे-स्टेशन पर।

छह

प्रेम से वंचित व्यक्ति
उसे संचित करना सीखता है,
वह कभी प्रेम बांटना नहीं सीख पाता

सात

प्रेम झूठा हो सकता है
लेकिन प्रेम की कल्पना
कभी झूठी नहीं हो सकती
मैं, प्रेम की कल्पना में डूबा हुआ व्यक्ति हूँ

आठ

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

सोचा है तुम को इतनी बार मैंने,
जितनी बार हुए हैं इस जग में सवेरे
ख़ूबसूरत हो तुम, ये सच है लेकिन सच!
मेरे तसव्वुर में तुम और भी हसीं हो।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

रोज़गार है एक पर उसके अलावा
रोज़ तुम्हें याद करने, का अमल करता हूँ,
पाया नहीं अब तक फ़िर भी ताज्जुब है -
मैं तुम्हें खोने से खूब डरता हूँ।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

अब ये के तुम सब के दिल में बसी हो,
कोई और नहीं जँचता, तुम बे-कसी हो।
पीछे तुम्हारे हैं रंग सारे, सब रागें,
तुम बस हमारा ही ख़्वाब नहीं हो।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

भेजा नहीं तुमको इज़हार बस है,
लिख कर रखा है जां, तैयार सब है।
"तुम आओगी, आएगा "बस।" - ये रट है
तुम तक नहीं पहुंचा, तुम्हारा ये ख़त है।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

तुम में तुम्हारी अलग है एक ख़ुशबू,
इत्र से तुम्हारे सुगंध महकती हैं।
कुछ जादू सदा से है, सदा में तुम्हारी,
तुमसे ही मिलकर गौरैया चहकती हैं।

सुबह कोहरे में बनती श्वेत छवि हो तुम,
शाम शफ़क़ की तस्वीर तुम ही हो
सबकुछ हो तुम लेकिन शिकवा तो ये है -
कि तुम हमारी तक़दीर नहीं हो।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ।
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

उपमाएं सारी, ब-कमाल-प्यारी,
बे-चैनी, बे-दारी, ये नज़्मकारी,
तेरे लिए ही तो सबकुछ है जारी।
तुम नहीं फ़िर भी हो सकती हमारी?
तुम नहीं फ़िर भी हो सकती हमारी।

मैं तुमसे ज़्यादा मिला नहीं हूँ,
पर मैंने तुमको चाहा बहुत है।

नौ

किसी राह के मोड़ पे
तुम हमको मिल जाओ
तो क्या हो?
सोचो, सोचो!

हम देखें तुम्हें,
तुम देखो हमें,
नज़रों में बातें हो
थम जाए अर्श
थम जाए फ़र्श
और इश्क़ की बारिश हो

बारिश का रंग हो गुलाबी,
गुलाबी बिजलियाँ हों
नीले आसमान में फ़ूल खिलें
सड़कों पर तितलियां हों

यूँ तो होने को ये कभी होता नहीं
पर हो तो? 
तो क्या हो?
सोचो, सोचो!

किसी राह के मोड़ पर
तुम हमको मिल जाओ
तो क्या हो?
सोचो, सोचो!

एक राह तेरी
एक राह मेरी
दोनों जाके जहाँ मिलें,
है जगह वहीं,
जहां ख़्वाब खिलें
रंग, फ़ूलों पे चढ़ता हो

किनारा गिरे, लहरों पर और
दरया, कोहसार चड़े
रात को सूरज दस्तक दे
और दिन में चाँदनी हो

यूँ तो होने को ये कभी होता नहीं
पर हो तो, 
तो क्या हो?
सोचो, सोचो!

किसी राह के मोड़ पर
तुम हमको मिल जाओ
तो क्या हो?
सोचो, सोचो!

दस

ओ समंदर।
ओ रे समंदर।
क्या है तेरे अंदर?
राज़ बता।।

ये, ठंडी हवा
ये, गीली फ़िज़ा
ये, मौज ए सबा
ये, दिलकश समा।।

आते कहाँ से?
राज़ बता।

ये अतरंगी से बादल
ये सतरंगी नज़ारे
ये मद्धम मद्धम बारिश
ये चाँद ओ सितारे....

ये नीला नीला अम्बर
ये सूरज की शुआएं
ये रँगीली सी बहार
ये पीली सी ख़िज़ाएँ...

ये, नदियां, झरने, पर्वत
ये, परिंदों की परवाज़ें
ये, तितलियों की रंगत
और तुम्हारी ये अदाएँ......

आते कहाँ से?
राज़ बता...
राज़ बता...

ग्यारह

बात तुमसे करते हुए एकाग्रचित्त
 कई बार रह जाता हूँ 
मैं उत्तर से वंचित,
रहता हूँ फ़िर भी इस बात से आनंदित - 

कि उत्तर का आनंद,
उत्तर की प्रतीक्षा में है

बारह

तुमसे बात ना करना ऐसा है,
जैसे "तुमसे बात ना करना"

मेरे पास कोई अन्य उपमा
कोई और रूपक है नहीं,
जो ये बता सका सबको कि
कैसा है?

तुमसे बात ना करना

Keep Visiting!

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