Wednesday, 5 August 2020

नीलकंठ।


"वह" जिसकी लिखी किताब आधे दशक के बाद पाठकों के बीच पहुँची थी। "सफ़ल होना चाहता हूँ।" का ख़्याल कब का त्याग चुका था। वह दार्जीलिंग के अपने कॉटेज की बालकनी में, मुंडेर पर बैठी चिड़ियाओं को दाने खिलाने में व्यस्त था के तभी कॉटेज के लाल दरवाज़े पर पीली टीशर्ट पहने एक युवक ने दस्तक दी।

"वह" जो लेखक था एक "नीलकंठ" के इंतज़ार में था और दरवाज़ा खोलने नहीं जाना चाहता था। वह घन्टों से उसके इंतज़ार में वहां आ रहे दूसरे पक्षियों को दाने डाल रहा था और दरवाज़ा खोलने जाना उसे नीलकंठ की एक झलक पाने से महरूम रख सकता था। पीली टीशर्ट वाला युवा था और उसका बर्ताव उसके किसी भी हम-उम्र की ही तरह था - अधीर। वह चंद मिनिट राह ताकने के बाद ही ज़ोर-ज़ोर से लाल दरवाज़े को खटखटाने लगा। वह अपने बायें हाथ से दरवाज़ा पीटता और दाहीने से उसी हाथ में बंधी अपनी नारंगी हाथ-घड़ी को निहारता। वह नीचे फर्श को देखते हुए यह सब कर रहा था। चंद मिनटों में जब दरवाज़ा नहीं खुला तो उसने अपनी आँखें ऊपर की - दरवाज़े पर - जहाँ गुदा हुआ था - "एक शजर को देखिये और सोचिये, इंतज़ार किस तरह से किया जाता है।" वह कुछ पीछे हट गया, कुछ सेकेण्ड विचार किया और फिर दोबारा दुगनी ताकत के साथ दरवाज़े पर अपना हाथ दे मारा - उसने इस बार दाहीने हाथ का इस्तेमाल किया।

इस यकायक उपजे शोर से मुंडेर पर बैठे परिंदे उड़ गए - और मुंडेर सिर्फ़ चावलों से बच गई। "वह" अपने नीले कुर्ते से चावल झाड़ता हुआ दरवाज़े तक गया और उसे खोला - "तुम्हें इंतज़ार करना चाहिए।" उसने पीली टीशर्ट वाले से कहा। "कर ही रहा था सर...देखिये पूरे दस मिनिट हो गए हैं।"  उसने अपनी घड़ी देखि। फिर उसने अपने बैग से वह किताब निकाली जो कि प्रसिद्ध हो गई थी और जिसका लेखक ठीक उसके सामने खड़ा था।

"ये किताब। पिछले महीने पढ़ कर खत्म की, तब से ही आपसे मिलना चाह रहा था। " वह" कॉटेज के भीतर चला गया। युवक उसके पीछे-पीछे अंदर चला गया, वह लगातार किताब के बारे में बोल रहा था। लेखक उसके अंदर आते ही वापस दरवाज़े तक गया और उसे बंद कर दिया। "अरे! एक और नीलकंठ" युवक की आवाज़ से "वह" एकदम ठीठक गया, और धीरे से बालकनी की ओर पलटा। "कहाँ है?" "वह" को मुंडेर पर कुछ गोरैया, दो कबूतर और एक मिट्ठू ही दिखाई दिए। "ये तो है ना, यहाँ देखिए।" युवा ने अपने दोनों हाथों में रखी दो किताबें लेखक की ओर कीं - दो नीलकंठ। -  लेखक की पहली और उस समय तक की अकेली किताब।

लेखक दोबारा मुंडेर के पास, बालकनी में चला गया और आसमान देखने लगा। "किताब में आपका परिचय काफी छोटा है, थोड़ा और होना चाहिए था। खैर अब तो फटाफट बिक रही है तो अगले एडिशन में ऐड करवा दीजियेगा। परिचय में यहां का पता था सो आपसे मिलने चला आया।" पीली टीशर्ट वाला भी मुंडेर के पास आ गया।

लेखक कुछ नहीं बोल रहा था। उसने एक मुट्ठी चावल मुंडेर पर मोतियों से बिखेर दिए। नए चावल, पुराने बचे हुए दानों पर बिछ गए और पक्षियों का झुंड वहां फिर लौट आया। "चलिए ये तो आ गए, अब हम अंदर चलें। मैं भी किताब लिखने का शौक रखता हूँ, मेरी कहानी एकदम आपके ही जैसी है - आपसे सलाह लेने यहाँ आया हूं।" पीली टीशर्ट वाले ने कहा। "तुम्हें इंतज़ार करना चाहिए।" लेखक ने आसमान की तरफ देखते हुए उससे कहा। "हाँ, लेकिन क्या हम अब भीतर चलकर बात कर सकते हैं?" "तुम जाओ, मैं आता हूँ।" "वह" अब भी आसमान में देख रहा था।

पीली टीशर्ट वाला अंदर की ओर मुड़ा और उसके मुड़ते ही नीले आसमान के रंग में रंगी नीलकंठ मुंडेर पर आ कर बैठ गई। उसके उतरते ही आसमान सफ़ेद रंग में लौट गया - जैसे उसका सारा नीलापन उस एक नीलकंठ से ही था। उसके मुंडेर पर आते ही लेखक पीछे हट गया। वह बालकनी के एक कोने में रखी कुर्सी के पीछे जा छिपा और नीलकंठ जो कि नए चावलों के नीचे छिपे पुराने चावल के दानों को खोज-खोज कर खा रही थी, को पालती मारकर देखने लगा। नीलकंठ जैसे-जैसे उसके करीब आती, वैसे-वैसे उसके कुर्ते का रंग और नीला होता जाता। मुंडेर पर (बालकनी में) अब सिर्फ़ नीलकंठ थी। जब वह वहां नहीं थी तब भी एक स्पेस हमेशा से उसके लिए था।

"आप उसके पास क्यों नहीं जाते, वह एक नीलकंठ है।" पीली टीशर्ट वाला चिल्लाया। उसके तेज़ स्वर से नीलकंठ उड़ गई। लेखक पालती मारे वहीँ बैठा रहा। "सॉरी! क्या वह वापस नहीं आएगी?" पीली टीशर्ट वाला डर गया। "वह आएगी।" लेखक आसमान देखते हुए खड़ा हुआ और भीतर जाने लगा। उसका कुर्ता अब फिरसे उस ही रंग में लौट रहा था, जिसमें वह पहले था। "क्या आपको उसे बुलाना आता है?" युवक की आंखें चमक उठीं। "नहीं। मुझे इंतज़ार करना आता है।" लेखक ने कहा - "अच्छा तो तुम किताब लिखना चाहते हो? पहले ये बताओ कि चाय पियोगे?"
Keep Visiting!

2 comments:

For Peace to Prevail, The Terror Must Die || American Manhunt: Osama Bin Laden

Freedom itself was attacked this morning by a faceless coward, and freedom will be defended. -George W. Bush Gulzar Sahab, in one of his int...