Saturday 18 July 2020

हम तब जगेंगे जब हमारे जबड़े टूटेंगे।



मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में जन्में और कई वर्षों तक प्रदेश के ही जबलपुर में कार्यरत रहे हिंदी साहित्य के जाने-माने और प्रतिष्ठित व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का कथन है – “जिस समाज में लोग शर्म की बात पर हँसे, ताली पीटें, उस समाज में क्या कभी कोई क्रांतिकारी हो सकता है?” इस प्रश्न का उत्तर परसाई जी के इसी कथन में है, लेख के अंत में मैं उस उत्तर से आपका तआरुफ़ करवाऊंगा।

याद कीजिये मार्च के शुरूआती दिन जब मध्यप्रदेश के 22 कांग्रेसी विधायक अचानक से गायब हो गए थे। इनमें से छह - इमरती देवी, तुलसी सिलावट, महेंद्र सिसोदिया, गोविन्द सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तौमर और प्रभुराम चौधरी प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे। पूर्व लोकसभा सांसद और अब भाजपा से राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में इन सभी 22 विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफे देकर प्रदेश की सरकार को गिरा दिया और मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। फलस्वरूप सिंधिया जी सांसद बनाए गए और इस्तीफा देने वाले मंत्री बड़ी उठा-पटक के बाद दोबारा मंत्री बना दिए गए।

इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस दुखी हुई, भाजपा मुस्कुराई और जनता हँसी – खूब हँसी। इस बात पर हँसी की देखो कैसे इधर से उधर हो गए और फिर मंत्री पद पा लिया, वाह, कमाल हो गया! जनता ने गुस्सा जाहिर नहीं किया क्योंकि उसने यह स्वीकार कर लिया की राष्ट्र में नेतातंत्र ही चलता है और हमारी(जनता) की कोई बखत, कोई बिसात, कोई औकात नहीं है। और ऐसा सब स्वीकार कर लेने वाली जनता वाकई कभी क्रांतिकारी नहीं हो सकती।

कांग्रेस के खिलाफ अपनी बात रखते हुए बंगलौर में बैठे मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत प्रेस कांफ्रेंस में कहते हैं कि – मुझे एक बंदूक का लाइसेंस तक बनवाने में बढ़ी परेशानी होती थी। वाकई? यह तर्क थे एक मंत्री के। एक मंत्री जिसे जनता की आवाज़ सुनने के लिए जनता ने ही विधायक चुना था। और इनकी प्राथमिकता क्या है? बंदूक ला लाइसेंस बनवाना। शर्मनाक है, है ना? लेकिन इस बात पर हमने क्या किया? हम हंस दिए और अपने काम में लग गए। ऐसे जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है और अब लगातार कांग्रेसी विधायकों का पलायन भाजपा की ओर हो रहा है। पहले बड़ा मल्हेरा से प्रद्युम्न सिंह लोधी और अब नेपानगर से विधायक सुमित्रा कास्डेकर ने कांग्रेस को त्याग कर भाजपा का दामन थाम लिया है। विधानसभा में अब कांग्रेस के 90 और भाजपा के 107 विधायक हैं। इन दोनों ही इस्तीफों पर प्रदेश की लगभग हर पान की दुकान, चाय की टपरी, चौक-चौराहों आदि पर बैठी जनता ने हल्का सा गुस्सा और निराशा ज़रूर दिखाई लेकिन फिर “यही तो राजनीती है।” कहकर ठहाका लगा दिया। शार्ट टर्म मेमोरी लॉस से पीड़ित तटस्थ जनता यह भूल गई की यह वही सुमित्रा हैं जो कुछ ही दिन पहले प्रदेश में कांग्रेस के सरकार आने के दावे कर रहीं थीं और इन्हें अपने दल में शामिल करने वाली इसी भारतीय जनता पार्टी ने 5 जून को इनपर(सुमित्रा देवी) नकली नोट काण्ड में शामिल होने का आरोप लगाया था। इनसे पहले भाजपा में गए प्रद्युम्न सिंह लौधी वही हैं जो 2018 में हुए विधानसभा चुनावों के एन पहले कांग्रेस में आए थे और जो कमलनाथ के इस्तीफे पर फूट-फूट कर रोए थे। जनता यह सबकुछ भूल गई और वर्षों पूर्व लिखे गए प्रदेश के ही व्यंग्यकार को सही साबित कर दिया(साहित्यकारों का सम्मान तो मध्यप्रदेश में ही है।) हरिशंकर परसाई ने कहा था – “अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में। कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मन्त्र पढ़ने लगता है।”

मध्यप्रदेश ही नहीं वरन देश के हर राज्य में अब इस तरह के घटनाक्रम दिखाई पड़ते हैं जिनमें मतदाता की एहमियत घटी हुई मालूम होती है। कर्नाटक में दर्जन भर विधायक एकाएक गायब हो जाते हैं तो गोवा में रातों रात सरकार पलट जाती है। हाल फिलहाल में हम राजस्थान में ऐसी ही घटनाक्रम देख रहे हैं जहाँ कोरोना महामारी से लड़ने के बजाए नेता अपने अहम की लड़ाई लड़ रहे हैं और हर तरह से जनता को ही घायल कर रहे हैं। आश्चर्य है कि जनता अपने ज़ख्मों पर भी हंस रही है। “जो कौम भूखी मारे जाने पर सिनेमा में जाकर बैठ जाये, वह अपने दिन कैसे बदलेगी?” परसाई कह गए हैं।

हरयाणा के मानेसर में ठहरे कांग्रेसी विधायकों से पूछताछ करने राजस्थान पुलिस हरयाणा जाती है, और हरयाणा पुलिस उन्हें रोक देती है। जब वह उन्हें अंदर(होटल में) जाने देती है तब तक अंदर रुके हुए विधायक नदारद हो जाते हैं। हम मूक दर्शक बने यह सब देख रहे हैं और ठिठोली कर रहे हैं। देश के सत्ताधीश को चाणक्य बता रहे हैं और “राजनीती भी क्या चीज़ है........हाहाहाहा” का जाप कर रहे हैं। 

हम नीचे बैठे यह सब ताकते, हम ऊपर बैठे हुए लोगों के नियन्त्रण में हैं और इसलिए तन्त्र कहलाते हैं। ऊपर बैठे लोग राज करते हैं और इसलिए राज कहलाते हैं। वर्तमान परिपेक्ष में राजतन्त्र की यही परिभाषा सटीक है। लोकशाही हलवाई की दुकान में रखी वह बालूशाही है जिसकी कीमत हमारी ज़द से बाहर है। हम अफ़्फोर्ड ही नहीं कर सकते

खैर जिस प्रश्न को शुरू में अनुत्तरित छोड़ा था, उसका उत्तर यह है –  “जिस समाज में लोग शर्म की बात पर हँसे, ताली पीटें, उस समाज में क्या कभी कोई क्रांतिकारी हो सकता है? होगा शायद! पर तब ही होगा जब शर्म की बात पर हंसने वालों के जबड़े टूटेंगे।”

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1 comment:

  1. It's a matter of shame, that we are aware but don't react properly to things. Some people would have ignored such a great article as well!

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