Saturday 21 September 2019

हिदायत : A Cat Story



पिता जी और मेरे बीच खामोशी कभी नहीं आई। हमारे बीच वह स्पेस, वह वक्फा कभी बना ही नहीं कि जिसमें मौन अपनी जगह बना सके। हम जब भी साथ होते, किसी ना किसी मौज़ू, चाहे फिर वह घर कि ज़रूरत का हो या फिर देश की सियासत का, पर बातचीत ज़रूर करते। हम सिर्फ कुछ सेकेण्ड के लिये रुकते और उस कुछ सेकेण्ड के स्पेस में माँ की किचन से आती आवाज़ सरक आती.

अक्सर इब्तिदा में कुछ ना सूझने और मौन को बढ़ता देख पिता जी मेरे बालों से बात की शुरुआत करते। मेरे बालों का छोटा होना उनके दिल की खुशी से डायरेक्टली प्रोप्रोर्श्नल है। खाली है तो बाल कटवा लेवे कहते और बात शुरु कर देते। अभी तो कटवाए थेमैं कहता और पिता जी को आँखें बड़ी करके देखने लगता। "लग तो नहीं रहा कि अभी कटे हैं" वे कहते। "मेरे बाल हैं, मुझे पता है कब कटे और कब नहीं" आवाज़ में चिढ आ जाती और उसके साथ ही आता पिता जी का मुस्तकिल बयान - "हओ भाई तुझे जो दिखाए वो कर" लगता जैसे बात यहीं खत्म हो गई लेकिन वह ख़त्म नहीं होती और ना कभी हो पाएगी। बालों पर सन्वाद के बाद लगभग हर पिता कि तरह वह अपनी ज़िन्दगी के अनुभव मेरे साथ साझा करते और समझाइशों, हिदायतों और नसीहतों की एक तवील फ़ेहरिस्त तरतीब से मेरे मुकाबिल रख देते। "जाहे विधी रखे राम्, तही विधी रहिये" , "बीती तही बिसार दे, आगे कि सुधी लहि" , "जीवन में जब भी शून्य पर आओ तो हमेशा हिम्मत और मेहनत से उसके ऊपर जाने की कोशिश करना क्यूंकि शून्य के नीचे सबकुछ नकारात्मक होता है”

पिता जी की इन कुछ ज़हीन, गहरी और मददगार समझाइशों मे एक बड़ी अजीब हिदायत यह थी की - बिल्ली वैसे तो इंसानों से डरती है लेकिन अगर कभी तुम अकेले एक बिल्ली के साथ एक अन्धेरे, बन्द कमरे में फंस जाओ तो कभी खुद की इन्सानी ताकत या हिम्मत दिखाने की छिछली कोशिश मत करना क्योंकि इस मामले में कोशिश करने वालों की हार भी हो सकती है एक बन्द, अन्धेरे कमरे में, जहाँ सिर्फ तुम और तुम्हारे साथ एक बिल्ली हो....बिल्ली तुम से डर तो सकती है लेकिन इस ही डर में वह तुम्हारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है।वे कहते। उनकी बाकी सभी नसीहतों की तरह यह बात भी मैंने हिफ्ज़ कर ली थी लेकिन इसे अमल में बहुत वक़्त के बाद लिया।

आप जैसे-जैसे अपने पैतृक घर से दूर रहने लगते हैं वैसे-वैसे आप खुद को बड़ा, निडर और बहादुर समझने लगते हैं। जितनी घर से दूरी, उतने बड़े आप। और फिर आप उन सब कामों को करने से परहेज़ करने लगते हैं जिन्हें करने से आपको अपने छोटे होने का एहसास होता हो। मिसाल के तौर पर पिता जी के कह्ने पर तुरन्त बाल कटवा लेना, कुछ भी करने से पह्ले घर वालों की इजाज़त लेना, लाइट चालु करके सोने की ज़िद करना, सब के साथ एक ही कमरे में सोना इत्यादि, इत्यादि।

मैं लगभग छह महीने के लम्बे अंतराल के बाद अपने छोटे से, दो मंज़िला घर में पहुंचा था। दिन में हम सब घर के नीचे वाले हिस्से में रहते क्योंकि डाइनिंग रूम और किचन नीचे था और रात में ऊपर क्यूंकि बेड रूम और घर का लॉकर ऊपर के हिस्से में बना हुआ था। पिछले चार पांच साल के अकेलेपन और किताबों की सोहबत ने मुझे कम मात्रा में ही सही लेकिन बागी(वामपंथी समझना आपकी मूर्खता होगी) बना दिया था और इसलिए मैंने अपने जीवन की पहली जाहिर बगावत अपने घर में ही की। ऐज़ दे से “चैरिटी बिगिन्स ऐट होम” या कि “गांधी पैदा हो तो अपने घर में हो”

मैंने एलान कर दिया कि अब से मैं घर के नीचे वाले हिस्से में सोऊंगा। अकेला, दरवाज़ा लगाकर, लाइट बंद करके क्यूंकि अब मैं बड़ा हो गया हूँ। बड़ापर मैंने बड़ा ज़ोर दिया। माँ और पिता जी हैरान रह गए, चौंक गए और कुछ देर चुप रहने के बाद दोनों एक साथ धीरे से बोले- ठीक है, "ठीक है?, बस" अब मैं हैरान रह गया। मेरी सभी मांगें बड़ी आसानी से मान ली गई थीं। बहुत ही सस्ता महसूस कर रहा था। “ इतना हल्का आन्दोलन, छी, लानत है!" एक पल के लिए लगा जैसे भगत सिंह और लेनिन साथ में आकर मुझे जीभ चिढ़ा रहे हों।

खैर मैंने एक गद्दा, एक चादर, एक तकिया और अपना बिखरा पड़ा विरोध उठाया और नीचे चला गया। मैंने गद्दा बिछाया, लाइट बन्द की और वेंटिलेशन से झांकते चान्द को देखते हुए मन हि मन गाने लगा ग़ज़ब की है रात देखो ज़रा, ये अकेलापन देखो ज़रा, हम हैं अकेले तुम भी अकेले, पर डर तो लग रहा है....कसम से...

गद्दे पर तकिया फेन्क कर मैं कुछ पल के लिये उस पर बैठा और फिर चादर में चेहरा ढांप के सो गया। अंदाज़न तीन बजे किचन से आती आवाज़ की वजह से मैं जाग उठा। मैंने चादर हटाई और बिस्तर पर लेटे-लेटे ही अनुमान लगाने लगा कि आखिर यह आवाज़ किसकी हो सकती है? चोर? चोर हो नहीं सकता क्योंकि दरवाज़ा अन्दर से बन्द है और कोई दूसरा रास्ता है नहीं। भूत, आत्मा में मैं नही मानता लेकिन फिर भी हनुमान चालिसा पढ़ लो। मैंने १० मिनट की हनुमान चालिसा पांच मिनट में ख़त्म कर दी लेकिन फिर भी आवाज़ें आना बन्द नहीं हुईं।

इस सब का एक ही मतलब था। वह आ गई थी। अपने काले धारिदार शरीर और अपनी मासूम “मियाऊं” की आवाज़ के साथ वह आ गई थी. और इस वक़्त वह किचन में थी। कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था और चारों ओर अन्धेरा पसरा पड़ा था। एकाएक पिता जी की कही बात झिन्गूरों की आवाज़ को काटते हुए मेरे ज़हन में प्रवेश कर गई और भीतर कहीं टकराकर गूंजने लगी - एक बन्द, अन्धेरे कमरे में, जहाँ सिर्फ तुम और तुम्हारे साथ एक बिल्ली हो....बिल्ली तुम से डर तो सकती है लेकिन इस ही डर में वह तुम्हारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है।” 

मैंने फटाफट अपनी चादर उठाई और उसे तानकर बिस्तर पर लेट गया। “अगर यह बिल्ली अन्दर आई है तो बाहर भी निकल ही जाएगी” मैंने सोचा। खुली आँखों से मुझे सिर्फ चादर दिखाई दे रही थी और कानों के ज़रिये मैं बिल्ली को अपने करीब आते सुन पा रहा था। अचानक एक ज़ोर की आवाज़ आई। मैंने चादर को हल्का सा ऊपर उठाकर देखा तो वह बिल्ली टीवी पर बैठी थी। अपने चारों पैर समेट कर वह एकदम सीधे बैठी हुई थी। लगता था जैसे कोई शील्ड या ट्रॉफी जिसके माथे पर दो चम्कीले हीरे जड़े हुए हैं, टीवी पर रखी हो। वह बार-बार ऊपर, परदे की रॉड को देख रही थी और मियाऊं-मियाऊं की आवाज़ में कुछ बड़बड़ा रही थी।

कुछ देर बाद अचानक उसने एक लम्बी छलांग लगाई और जाकर परदे की रॉड पर लटक गईफिर वह उस पर चढ़ी और कलाबाज़ियां दिखाते हुए वेंटिलेशन में पहुँच गई। वह वेंटिलेशन में ऐसे जा अटकी जैसे मेरी जान मेरे हलक में अटकी हुई थी। अब वेंटिलेशन के उस तरफ चाँद था, इस तरफ बिल्ली थी और बिल्ली के ठीक नीचे सहमा हुआ मैं। चादर से बाहर झांकती मेरी आँखों को बिल्ली ने वेंटिलेशन में बैठे-बैठे देख लिया। और कुछ देर के बाद मुझसे नज़र फेरते हुए वह बाहर कूद गई।

मेरी जान में जान आ गई। अब में दोबारा हिम्मत को अपने अंदर महसूस कर पा रहा था. अपनी पसीने भरी पेशानी को चादर से पोंछकर मैं उठा और सबसे पहले जाकर लाइट चालु कर दी। इसके बाद मैंने दरवाज़ा खोला और फिर चादर ओढ़कर सो गया। एक ही झटके में मैं वापस छोटा हो गया था, बहुत छोटा. उस बन्द, अन्धेरे कमरे में, एक खौफज़दा माहौल के बीच उस रात मैंने जिस “मियाऊं” की आवाज़ को ना केवल सुना बल्कि शरीर के भीतर मौजूद उस जगह पर महसूस भी किया जहाँ से डर पैदा होता है. का इन्सानी ज़बान में अगर कुछ तर्जुमा होगा तो वह ये होगा कि – “डरते हो?  वो भी एक बिल्ली से?  अभी छोटे हो। बड़े कब होगे?”  और मेरी नज़र में इस सवाल का जवाब यही है कि शायद, शायद कभी नहीं क्योंकि मेरे पिता जी ने मुझे हिदायत दी है कि – “एक बन्द, अन्धेरे कमरे में, जहाँ सिर्फ तुम और तुम्हारे साथ एक बिल्ली हो....बिल्ली तुम से डर तो सकती है लेकिन इस ही डर में वह तुम्हारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है।

Keep Visiting!

3 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. Tumhari kissagoi ka ye andaaz bahut hi umda hai Pradumn bhai...tumhari likhai me pathak ko aakhir tak baandh ke rakhane ki anokhi kabiliyat hai..Jo ki sb me nhi hoti.
    Apne Pitaji ki beshkimati hidaytein sajha krne ke liye bahut shukriya.

    ReplyDelete
  3. Bohot khoob pradumn bhai, pitaji k dwara di gai salah zindagi me kab kaha kaam aa jaye ye tumne bohot hi khoobsurat andaaz m baya kiya hai. Bohot hi umda.

    ReplyDelete

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...