Sunday 7 July 2019

राहुल-मोह में अंधी कांग्रेस।



महाभारत काल में हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र थे। जन्म से अंधे धृतराष्ट्र को राजा पाण्डु की मृत्यु के बाद राज गद्दी पर बैठाया गया था। वे चाहते थे कि उनके बाद उनका ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन राज सिहांसन पर विराजमान हो।  अपनी इसी इच्छा या कहें ज़िद की वजह से उन्होंने लगातार पाण्डु-पुत्रों अर्थात पांडवों के साथ अन्याय किया। उन्होंने सत्य और असत्य, सही और गलत में तर्क करना ही छोड़ दिया। धृतराष्ट्र की इस ही हरकत को आज लोग "पुत्र-मोह" कहते हैं। कहा जाता है कि धृतराष्ट्र पुत्र मोह में अंधे हो गए थे और इसलिए उन्हें अपने पुत्रों के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं देता था। वर्तमान में यही स्थिति कांग्रेस पार्टी की हो गई है। 

23 मई को चुनावी नतीजों में बुरी तरह हारने के बाद 25 मई को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसे कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद से उनके अध्यक्ष रहने पर संशय बना हुआ था। लेकिन बीते दिनों खुद राहुल गाँधी ने एक चार पेज का खत ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी कि वे अब कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हैं। पार्टी जल्द नया अध्यक्ष चुने। 

वहां राहुल गाँधी ने इस्तीफा दिया और यहाँ कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता उनके समर्थन में खड़े हो गए। सैकड़ों युवा, बुज़ुर्ग, दिग्गज, छुटभैय्ये कांग्रेसियों ने राहुल गाँधी से इस्तीफा वापस लेने की मांगें की, भूख हड़ताल की, नारे लगाए। और तो और जब अपने ऊपर चल रहे मुकदमों में पेशी के लिए राहुल गाँधी पटना और मुंबई पहुंचे तो वहां भी उनका ज़ोर-शोर से स्वागत करते हुए कार्यकर्ताओं ने उनसे अपना इस्तीफा वापस लेने की अपील की। हालाँकि मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि राहुल गाँधी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा ना देते हुए पार्टी को और मज़बूत करने  दिशा में काम करना चाहिए था। लेकिन अब, जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है तो कांग्रेस पार्टी को यह समझना चाहिए कि उन्हें मनाने में वक़्त बर्बाद ना किया जाए और जल्द से जल्द नए अध्यक्ष की पदस्थापना हो।

राहुल-मोह में अंधी हो चुकी कांग्रेस धीरे धीरे अपने विधायक, अपने कार्यकर्ता, अपने समर्थक खोती जा रही है और उसे इस बात का आभास तक नहीं हो रहा। बीते दिनों गुजरात में हुए राज्यसभा चुनावों में पार्टी के दो विधायकों अल्पेश ठाकोर और धवल जाला ने क्रॉस वोटिंग कर कांग्रेस में अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। बीते शनिवार कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के 13 विधायकों ने वहां के विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंपकर कर्नाटक सरकार को अल्पमत में लाकर खड़ा कर दिया। उत्तरप्रदेश महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तो वहीँ मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देओरा ने भी अपनी अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ दी है। ऐसे में कांग्रेस पर आया संकट, टलने के बजाए और गहराता जा रहा है। और यह बात किसी सी छिपी नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषक और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता योगेंद्र यादव ने 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस पर यह जुमला कसा था कि कांग्रेस को मर जाना चाहिए। मैं योगेंद्र यादव की इस बात से इत्तेफाक रखते हुए यह तो नहीं कहता लेकिन हां यह ज़रूर कहता हूँ कि "कांग्रेस मर रही ही"। मर रही है अपने स्वयं के भीतर उपजे द्वेष, जलन, चाटुकारिता, चापलूसी, मोह आदि की आग में "गुट" "गुट" कर। कर्नाटक सरकार को खतरे में लाने का आरोप जहाँ कांग्रेस के ही नेता सिद्धारमैया पर लग रहा है तो वहीँ मिलिंद देओरा के इस्तीफे पर कांग्रेस के ही नेता संजय निरुपम तंज़ कस रहे हैं। यही हाल मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार का भी है। 

अपनी आज तक की सबसे बुरी और दयनीय स्थिति में भी कांग्रेसी नेता अपनी ट्रेडमार्क हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे। रस्सी जल गई मगर बल नहीं गए। 

आगामी महीनों में झारखंड, हरयाणा और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं। तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की हालत खस्ता है तो वहीँ दूसरी ओर सत्ताधारी बीजेपी ने चुनावी बिगुल बजा दिया है। जेपी नड्डा पार्टी के नए कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किये जा चुके हैं। चुनावी बैठकों का दौर आरम्भ हो चुका है। पार्टी का सदस्य्ता अभियान शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में ज़ोर-शोर से चल रहा है। कांग्रेस को अपने विरोधी घटक से संज्ञान लेते हुए जल्द से जल्द एक नए, युवा, और राष्ट्रीय पकड़ रखने वाले नेता को पार्टी की बागड़ोर सौंप देनी चाहिए क्योंकि अब "वक़्त है बदलाव का।"

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