Monday 1 October 2018

गुफ़्तगू : मोनिशा कुमार गम्बर।


मैं कोशिश करती हूँ, कोशिश करती हूँ कुछ अच्छा, कुछ बेहतर करने की।

- मोनिशा कुमार गम्बर।

मशहूर बॉलीवुड निर्देशक महेश भट्ट "बाहिर" को लॉन्च करते हुए।

पिछले दिनों अपना जन्मदिन मनाने वालीं जानी-पहचानी लेखिका मोनिशा कुमार गंबर से मेरा मरासिम काफी पुराना है। और इसलिए उनके जन्मदिन के ही मौके पर मैं खुद को उनका इंटरव्यू लेने से रोक नहीं पाया। आइये जानते हैं कुछ बातें उनके लेखन, उनकी किताबों और उनके जीवन के बारे में जो ना केवल आपको इंस्पायर करेंगी बल्कि आपको शिक्षित भी करेंगी।

किताब की लॉन्चिंग के दौरान।

सवाल - वैसे तो आज से पहले भी कई बार आपसे यह सवाल पूछा गया होगा लेकिन इस बातचीत को एक शुरुआत देने के लिए मैं दोबारा आपसे पूछना चाहूँगा कि आखिर वह कौनसी चीज़, घटना या बात थी जिसने आपको लिखने की प्रेरणा दी?

जवाब - देखिये जैसा कि आप जानते ही हैं, मैं पूरी तरह एक कॉर्पोरेट बैकग्राउंड से ताल्लुकात रखती हूँ। अपना काम करते हुए मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी कोई किताब भी लिखूंगी। दरअसल जब मैं अपने ऑफिस में कुछ प्रोजेक्ट्स से जुड़ी प्रजेनटेशन या प्रपोज़ल तैयार करती थी तो उन्हें पढ़कर मेरे पति अक्सर मुझसे कहते थे कि मुझे किताब लिखनी चाहिए क्योंकि मेरे द्वारा तैयार किये गए प्र्पोज़ल्स में भी एक रचनात्मकता और कहानी होती थी। मैं अक्सर उनकी बात को हंसकर टाल देती थी लेकिन मुझे लगता है कि मेरे लेखिका होने के पीछे अगर किसी का सबसे बड़ा हाथ है तो वे मेरे पति ही हैं। मैं विप्मी किड्स नामक किताबों से बहुत ज़्यादा प्रभावित थी और उस जैसा कुछ लिखना चाहती थी लेकिन थोड़े मैच्योर फॉर्म में। इसलिए आप देखेंगे कि मेरे लेखन में सिम्प्लिसिटी है। ऐसा नहीं है कि मैं कठिन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकती लेकिन बस मुझे यह पसंद नहीं। आसानी से जो बात लोगों तक पहुंचे वही सबसे बेहतर है। और लगभग हर लेखक या फनकार को यह बात समझनी चाहिए।

जहाँ तक मेरी पहली किताब की बात है तो इसकी शुरुआत मैंने अपनी बेटी को देखकर की। वह अपनी टीनऐज में प्रवेश कर रही थी और मैं उसे काफी कुछ बताना चाहती थी। इसलिए मैंने "सिक ऑफ़ बींग हैल्दी" लिखी। इस किताब में तारा का जो किरदार है वह बहुत हद्द तक मेरी बेटी से प्रभावित है। तारा बहुत बुद्धिमान है, समझदार है लेकिन अपने मोटापे की वजह से उसमें हीन भावना जन्म ले लेती है। वह जिस लड़के से प्यार करती है वह किसी और लड़की को पसंद करता है जो की बहुत खूबसूरत है। सम्पूर्ण किताब इसी कहानी को बताते हुए युवाओं को बहुत कुछ सिखाने और समझाने के इरादे से लिखी गई है। सीधी भाषा में कहूँ तो इस किताब की टार्गेट ऑडियंस युवा ही हैं, खास तौर पर युवा लड़कियां, जो अक्सर अपने लुक्स, अपने चेहरे, अपने शरीर को लेकर चिंतित रहती हैं। किरदारों की बात करूँ तो सभी मेरी ज़िन्दगी से, मेरे आसपास से उठाए हुए हैं। मैं इतने तरह के लोगों से मिलती जुलती हूँ कि मुझे किरदारों को खोजना नहीं पड़ता, वे खुद मेरे पास चले आते हैं। इसके बाद जब यह किताब सफल हुई और लोगों ने, पाठकों ने इसे सराहा तो फिर मैंने इसका सिक्वल या इसकी दूसरी किश्त "डाईंग टु लिव" लिखी जो कि थोड़ी सीरियस किताब है। यह आत्महत्या जैसे संगीन और संवेदनशील मुद्दे की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। हालाँकि इसकी भाषा और अंडरटोन "सिक ऑफ़ बींग हैल्दी" की ही तरह है। सरल और स्पष्ट।

दोस्तों और परिवार के प्यार और आशीर्वाद, इश्वर की कृपा और पाठकों के विश्वास की वजह से मेरी दूसरी किताब भी सफल हुई। और इस सफलता ने मुझे ऊर्जा और आत्मविश्वास से भर दिया। मैंने हमेशा माना है कि मैं एक बोर्न राइटर नहीं हूँ लेकिन जिस चीज़ ने मुझे हमेशा आगे बढ़ने में मदद की वह है मेरी इमानदारी। ईमानदारी लेखन के प्रति, ईमानदारी पाठकों के प्रति, ईमानदारी अपने किरदारों के प्रति और ईमानदारी अपने खुद के प्रति। दोनों किताबों की सक्सेस के बाद मैंने "बाहिर" लिखी जो कि वयस्कों को टारगेट करती है। मैंने अपने जीवन का लम्बा वक़्त मध्य पूर्व के देशों में बिताया है और इसलिए कई ऐसी महिलाओं से मिली हूँ जो एक अच्छे जीवन की तलाश में अपना सबकुछ छोड़कर यहाँ आती हैं। कई सफल  होती हैं तो कुछ असफल भी। मुझे दिल से लगा कि एक कहानी किसी महिला इमिग्रेंट पर लिखी जानी चाहिए और मैंने लिखी।

सवाल - एक बात जो मैंने आपकी किताबों में देखि वह यह की आपकी तीनों किताबों का मुख्य किरदार एक लड़की या महिला है। ऐसा क्यों?

जवाब - जी, देखिये मैं अपनी किताबों के ज़रिये कोई बोल्ड या बड़ा स्टेटमेंट नहीं देना चाहती और ना ही कोई क्रान्ति लाना चाहती हूँ। अपने मुख्य किरदारों को लड़की रखने के पीछे कोई छिपा हुआ मकसद नहीं है। बस यह कि मैं खुद एक औरत हूँ और लड़कियों की परेशानियों और उनके नज़रिये को बेहतर समझती हूँ इसलिए मेरे सारे मुख्य किरदार लड़की या महिला हैं। इस बारे में बस इतना ही कहूँगी कि यह मेरे लिए आसान था।

पहली किताब : सिक ऑफ़ बींग हैल्दी।

सवाल - हिंदी, उर्दू की समझ होने के बावजूद आपने अंग्रेजी को अपनी अभिव्यक्ति की भाषा चुना। क्यों?

जवाब - इस बात में कोई दोराह नहीं कि मुझे हिंदी और उर्दू दोनों ही ज़बानों की समझ है लेकिन मैं किसी भी भाषा में पारंगत या अफ़ज़ल होने का दावा नहीं करती। चाहे फिर वह हिंदी हो, उर्दू हो या अंग्रेज़ी हो। अंग्रेज़ी को  इसलिए चुना क्योंकि बचपन से ही इस भाषा की तरफ ज़्यादा ध्यान दिया। इस ही में पढ़ा, इस ही में सोचा और इस ही में लिखा। हालांकि जिस भाषा का इस्तेमाल मैंने किताबों में किया है वह बेहद सरल, सहल, स्पष्ट और समझने में आसान है। रोज़मर्रा के जीवन में, बातचीत में उपयोग होने वाले अलफ़ाज़ ही किताबों में इस्तेमाल हुए हैं और इस ही बात को मेरे पाठकों ने खूब सराहा भी है। जैसा कि मैंने बताया मैं चाहूँ तो क्लिष्ट और मुबहम ज़बान का इस्तेमाल कर सकती हूँ लेकिन मुझे उसका कोई फायदा नज़र नहीं आता। और जैसा कि रस्किन बॉन्ड ने कहा है "its not simplicity for what i am striving, its clarity" इसके अलावा मैं बताना चाहती हूँ कि यह मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी किताबों का हिंदी तर्जुमा हो।

सवाल - एक लेखिका के तौर पर सोश्यल मीडिया को कितना महत्वपूर्ण मानती हैं?

जवाब - एक तरह से देखा जाए तो सोश्यल मीडिया बहुत ही अच्छी चीज़ है अगर उसका इस्तेमाल समझदारी से किया जाए। इसके ज़रिये आप देश-दुनिया के लोगों, घटनाओं से जुड़े रहते हैं साथ ही आप देख, समझ पाते हैं कि आपके पाठकों का आपके लेखन के प्रति रुझान क्या है। ज़्यादातर समीक्षक और आम पाठक सोश्यल मीडिया पर ही किताब के बारे में अपनी राय देते हैं इसलिए इसपर बने रहने ज़रूरी हो जाता है। सोश्यल मीडिया का किताब की सफलता पर कितना असर होता है यह मुझे नहीं पता लेकिन हाँ इसके ज़रिये अपने पाठकों से एक जुड़ाव बरकरार रख पाती हूँ। अंत में यही कहूँगी के अगर आप किसी चीज़ से बच नहीं सकते तो बेहतर है कि उसे एन्जॉय करें।

 दूसरी किताब : डाईंग टू लिव।

सवाल - वर्तमान में युवा किस तरह का कंटेंट पसंद कर रहे हैं?

जवाब - युवा पाठकों की बात करूँ तो उन्हें लव स्टोरीज़ या एक तरह से जिसे हम पल्प फिक्शन कहते हैं, वह बहुत ज़्यादा पसंद आता है और मार्किट ऐसी किताबों से भरा पड़ा है। मिथ और धर्म सम्बन्धी किताबें भी आजकल बहुत प्रचलन में हैं और इन्हें भी काफी पाठक मयस्सर हैं। मैं निजी तौर पर पल्प फिक्शन को ज़्यादा पसंद नहीं करती। कुछ किताबों अच्छी होती हैं लेकिन कुछ मुझे बेहद निराश करती हैं। मैं वास्तविक और अमली कहानियां लिखना ज़्यादा पसंद करती हूँ जो युवाओं को इंस्पायर करें, उन्हें मोटिवेट करें और साथ ही शिक्षित भी करें। ऐसा करते हुए मैं इस बात का भी ख्याल रखती हूँ के कहीं वे ज़्यादा बोरिंग ना हो जाएं इसलिए उनमें एंटरटैनिंग एलिमेंट्स डालने की पूरी कोशिश करती हूँ। मैं आशा करती हूँ कि ऐसी किताबों का वक़्त भी बहुत जल्दी आएगा और लोग चाव से इस तरह का साहित्य पढ़ेंगे।

सवाल - परिवार और लेखन में तालमेल कैसे बैठा पाती हैं?

जवाब - मुझे नहीं लगता कि मैं कोई बहुत महान काम कर रही हूँ। कई औरतें हैं जो मुझसे कई कई गुना ज़्यादा काम करती हैं और उतनी ही सफल भी हैं। जहाँ तक तालमेल की बात है तो ऐसा कुछ निर्धारित नहीं है। बस यह कि मुझे अपनी प्राथमिकताएं, अपनी प्रायॉरिटीज़ पता हैं। मुझे मालूम है कि कब क्या करना है। जब मैं लिखती हूँ तो सिर्फ लिखती हूँ और कुछ नहीं करती। मैं यह बिलकुल नहीं मानती कि मैं जो भी कर रही हूँ या जो भी करती हूँ वह सबकुछ सही है लेकिन हाँ मैं कोशिश करती हूँ, कोशिश करती हूँ कुछ अच्छा करने की, कुछ बेहतर करने की। और अंततः अगर आप अपने काम के प्रति समर्पित हैं तो तालमेल बन ही जाता है।

तीसरी किताब : बाहिर।

सवाल -  क्या किसी भी किताब के बेस्ट-सेलर होने का मतलब उसका अच्छा होना है?

जवाब - नहीं, बिलकुल नहीं। इस बात को ऐसे समझें कि कई ऐसे नेता हैं जो भारी वोट के अंतर से जीत हासिल करते हैं लेकिन वे भ्रष्ट होते हैं। कई फ़िल्में हैं जो तीन तीन सौ करोड़ का बिज़नेस करती हैं लेकिन एक फिल्म के रूप में बिलकुल भी अच्छी नहीं होती। आजकल युट्यूब पर आप देखेंगे कि कितने ऐसे लोग हैं जिनके चैनल पर मिलियन्स सब्सक्राइबर्स हैं, लाखों व्यूज़ हैं लेकिन ईमानदरी से उनका कंटेंट फूहड़ता से बढ़कर और कुछ नहीं है। तो किताबों के साथ भी यह बात है। कुछ किताबों का प्रमोशन बहुत अच्छा होता है, मार्केटिंग, एडवरटाइजिंग एजेन्सीज़ जी तोड़ मेहनत करके उसका हाइप क्रिएट करती हैं और फिर इसलिए लोग किताब खरीद भी लेते हैं और वह बेस्ट-सेलर हो जाती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह किताब साहित्यिक तौर पर अच्छी ही होगी। कुछ किताबों के सिर्फ ब्लर्ब या सारांश पढ़कर ही मुझे समझ आ जाता है कि लेखक को कुछ मालूम नहीं है। हालाँकि कुछ बेस्ट-सेलर्स, वाक़ई में भी बहुत अच्छी और पढ़ने लायक होती हैं। कुछ ऐसी किताबें भी हैं जिनकी ब-मुश्किल पांच सौ कॉपीज़ बिकती हैं लेकिन वे बहुत ही अच्छी होती हैं।

सवाल - अपने पाठकों के लिए अगली किताब कब ला रही हैं?

जवाब - दो किताबें जो मैंने शुरू करी थीं कुछ कारणों की वजह से उन्हें पूरा नहीं कर पाई हूँ। दोनों ही किताबें डिस्लेक्सिया और चाइल्ड-एब्यूज़ जैसे संवेदनशील मुद्दों को लेकर हैं और इसलिए मैं इन्हे और वक़्त लेकर पूरा करना चाहती हूँ। इसलिए फिलहाल तो लेखन से ब्रेक लिया हुआ है। "बाहिर" का हिंदी तर्जुमा या अनुवाद बहुत जल्द आने वाला है और जहाँ तक अगली किताब की बात है तो उसमें अभी एक साल तो निश्चित है।

सवाल - युवाओं के लिए कोई सीख?

जवाब - जैसा कि मैं लगातार कह रही हूँ। मैं नहीं मानती कि मैं किसी को कुछ भी सिखाने या पढ़ाने के लिए सही व्यक्ति हूँ। जो कुछ भी मुझे लगता है या मैं मानती हूँ वह सब किताबों में है। चूँकि आपने पूछा है तो बस यही कहूँगी कि अपने काम के प्रति समर्पित और ईमानदार रहें। पता करें कि आखिर आप ज़िन्दगी से चाहते क्या हैं। अगर पता ना भी कर पाएं तो इट्स ओके बस अपना काम करते रहें। जैसा कि रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने कहा है "लाइफ गोज़ ऑन" शांत रहें, समझदारी से काम लें, पैसों के पीछे ना भागें। पैसा वाक़ई खुशियां नहीं खरीद सकता। बाकी तो ज़िन्दगी आपकी है, आप ही को तय करना है कि इसे कैसे जिया जाए। तो सभी को बहुत शुभकामनाएं। खुद पर विश्वास रखें, ख़ुदा पर विश्वास रखें, विश्वास रखें कि सब अच्छा होगा।

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