इब्तिदा से शेर हमारे बे-वाह-वाह, बे-दाद रहे।
ना किसी को समझ में आए ना किसी को याद रहे।।
सबको मिल जाती है मुहब्बत ये कहना है लोगों का।
फिर तो सारी दुनिया में हम क्या रहे? अपवाद रहे।।
हमको जो छोड़ा उनने तो फिर किसी को नहीं चुना।
हमको भी बर्बाद किया और खुद भी वो बर्बाद रहे।।
मक्कारों की फ़ेहरिस्त बनी तो ये पहली दिक्कत होगी।
नेता, मुन्सिफ़, चोर, दरोगा, कौन किसके बाद रहे?
नाद उठे गर किसी ज़ुबाँ से तो इतनी गुंजाइश हो।
भले ज़ुबाँ मर जाए लेकिन ज़िंदा उसका नाद रहे।।
कोई मरासिम इस शर्त पर जावेदां रह सकता है।
सच हो उसमें, फ़हमी हो और एतिमाद बुनियाद रहे।।
मर मिटना ही शेवा नहीं है यारो वतन परस्ती का।
जी कर ऐसा काम करो के मुल्क़ ये ज़िंदाबाद रहे।।
खुशियां और गम, दो पहलू हैं, दो पहलू हैं जीवन के।
कोई हरदम थोड़ी दुखी रहेगा, कोई हरदम कैसे शाद रहे।।
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