Saturday, 1 September 2018

स्त्री : आज ही जाना।



राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित मकबूल फिल्म "मुन्ना भाई एम बी बी एस" के एक द्रश्य में एक जापानी शख्स मुंबई के धारावी इलाके में तस्वीर लेता दिखाया गया है। इस ही द्रश्य में एक संवाद है जिसमें तस्वीर लेता जापानी कहता है कि उसे तस्वीरों के लिए गरीब और भूखे भारत की तलाश है। पता चलता है कि विदेशी भारत में उसकी विविधता, खूबसूरती, जमाल आदि से अधिक उसकी गरीबी, भुखमरी और उसकी अंधश्रद्धा भरी गतिविधियों में दिलचस्पी रखते हैं। यह अनुमान काफी हद तक सही भी है। यहाँ मूर्तियाँ दूध पीतीं नज़र आती हैं तो इंसानों को माता आती हैं। यहाँ बलात्कार और क़त्ल जैसे संगीन अपराध नदी में डुबकी लगाकर धो लिए जाते हैं और बड़ी बड़ी बीमारियाँ का इलाज तांत्रिकों द्वारा कर दिया जाता है।

1990 के दशक में भारत के कर्नाटक और आंध्र राज्यों में इसी तरह की एक अफवाह से हडकंप मच गया था। खबर थी कि एक चुड़ैल जिसे वहां के लोगों द्वारा स्त्री नाम दिया गया था गाँव में भटकती है और कुंवारे मर्दों को उठा ले जाती है। कथा है कि वह ऐसा अपनी अधूरी मुहब्बत को हासिल करने के लिए करती थी। चुड़ैल से बचने के लिए लोग अपने घर के बाहर कन्नड़ में "नले बा" लिख देते थे जिसका अर्थ होता है "कल आना" या "ओ स्त्री कल आना" यह लिखा हुआ पाकर स्त्री लौट जाती थी।

इस ही अफवाह या कहानी को आधार बनाकर नवीनतम निर्देशक अमर कौशिक ने एक हॉरर कॉमेडी फिल्म "स्त्री" का निर्माण किया है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर के करीब बसे चंदेरी इलाके में सेट की गई यह फिल्म निर्देशक की पहली फीचर फिल्म है और इससे पूर्व एक शॉर्ट बनाने के अलावा वे "आमिर" और "घनचक्कर" जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर से ताल्लुकात रखने वाले निर्देशक अमर को यह कहानी चंदेरी से ही मिली थी और इसलिए उन्होंने इसकी शूटिंग वहीँ की। वे बताते हैं कि अपने कॉलेज के दिनों में वे एक दफा चंदेरी आए थे और उन्होंने वहां कुछ ऐसा महसूस किया था जो उनके साथ आज तक है।

चार रातों में समेट कर बनाई गई इस फिल्म की कहानी विक्की(राजकुमार राव) और उसके दो दोस्तों बिट्ट्टु (अपारशक्ति खुराना) और जना(अभिषेक बैनर्जी) के इर्द गिर्द घूमती है। शाहिद, ओमर्टा, काई पो चें, बरेली की बर्फी और नाजाने कितनी ही बेहतरीन फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके राजकुमार राव यहाँ भी अपनी छाप छोड़ने से नहीं चुके। अब वे उस फेहरिस्त में आ चुके हैं जिसमे इरफ़ान खान और के के मेनन जैसे अदाकार शोभा पाते हैं। विक्की के दोस्तों  का किरदार निभाने वाले अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बैनर्जी ने भी अपनी उपियोगिता साबित की है। गाँव के इकलौते पड़े लिखे और जानकार शख्स के किरदार में पंकज त्रिपाठी और विक्की के पिता के रूप में अतुल श्रीवास्तव मज़ेदार दिखाई दिए हैं। श्रद्धा कपूर का किरदार फिल्म का मुख्य आकर्षण है और सारा दिमाग उस ही को समझने में लगता दिखाई देता है। बहुत छोटे से रोल में दिखाई दिए विजय राज़ ज़हन में रह जाते हैं और अंत तक याद रहते हैं।

आंचलिक भाषा के प्रयोग ने फिल्म के संवादों को अधिक दमदार और दिलसोज़ बना दिया है। विक्की और उसके दोस्तों के दरमियान रचे गए कुछ द्रश्य काफी रोचक और गुदगुदाने वाले हैं। इन्हीं की वजह से यह फिल्म हॉरर से हॉरर कॉमेडी की श्रेणी में चली जाती है। फिल्म का अंत थोड़ा परेशान करता है और दर्शक अचानक खुद को कई सारे सवालों से घिरा पाता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में आज भी इस तरह की अफवाहें ज़ोरो पर हैं और आज भी घरों के बाहर लाल स्याही में "स्त्री कल आने" जैसे जुमले लिखे पाए जाते हैं। इंसान अगर अपने जीवन में आने वाली हर समस्या के लिए भी इस ही तरह लिख पाता तो पूरा का पूरा दरवाज़ा ही सूर्ख हो जाता। वर्तमान समय में राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व अपने दरवाज़ों के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा चुके हैं "ओ सवाल, कल आना" इस ही फिल्म का एक संवाद है "अंधभक्ति बहुत बुरी चीज़ है, कुछ भी बन जाओ लेकिन भक्त मत बनो"

बहरहाल एक बेहद मुख्तलिफ उन्वान पर आधारित यह फिल्म एक बार ज़रूर देखि जा सकती है और समझ ना आने की स्थिति में दूसरी बार भी।

Keep Visiting!

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