बोलिये, अपनी ज़ुबाँ पर, ताला ना कीजिये।
ज़मीर पर अपने यूँ पर्दा डाला ना कीजिये।।
है ज़िन्दगी वाकई सहल, मुबहम ना कीजिये।
बे-वजह की दुश्मनी पाला ना कीजिये।।
मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...
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