Friday, 11 May 2018

हम क्यूँ किसी की नक़्ल बनें?



सभी की तरह क्यूँ बद-अक्ल बनें?

है बेहतर के हम लोग बे-अक्ल बनें।।


हम क्यूँ लिखें दूसरों की तरह?

हम क्यूँ किसी की नक़्ल बनें?


मुसव्विर है कौन तख़य्युल से बड़ा?

सोचे जिसे उसकी शक्ल बनें।।


मुहब्बत में कैसी दानिशवरी?

मुहब्बत में कुछ कम-अक्ल बनें।।


चाहिए उन्हें हम जैसा कोई,

हम कैसे ख़ुद ही के हम-शक्ल बनें?


साथ हैं सभी सो नक़ाब में हैं।

अकेले में बैठें तो अस्ल बनें।।

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