Friday, 11 May 2018

मुन्ना-बाबा-माँ।



"मुन्ने को सुला देना"
माँ कह कर के चली गई।
बाबा ने "हाँ" में सर हिलाया,
और मुन्ने को लेटा दिया।।


थपकियाँ दीं, लोरी गाई,
कहे फ़साने, बात करी।
लालच दिया, डाँटा भी लेकिन,
मुन्ने को नींद नहीं आई।।


सो गए लेकर के करवट,
सोचा खुद ही सोएगा।
पर मुन्ना था खुराफ़ाती,
ना सोया, ना सोने दिया।।


लात मारी, बाल खींचे,
उठा-उठा सवाल किए-
"कहाँ गई हैं मम्मी बाबा?"
और "कब तक आएंगी?"


बाबा ने पेशानी पकड़ी,
घड़ी की नब्ज़ टटोली फ़िर,
क्या हुआ है समय के देखें -
"मम्मी कब तक आएगी?"


बैठे रहे बाबा! और मुन्ना,
घर में ग़दर मचाता रहा।
टीवी करता बन्द-चालू और
स्कूली-नज़्में गाता रहा।।


आ गई माँ कुछ ही देर में,
मुन्ना मुस्काया, गले लगा।
बाबा ने पेशानी छोड़ी,
जान में उनके जान आई।।


माँ ने बिस्तर पर दरी बिछाई,
मुन्ने को लेकर लेट गई।
चंद पलों में मुन्ना माँ का,
आँचल ढाँप के सो गया।।


बाबा को नींद नहीं आई फ़िर,
बन्द-चालू टीवी करते रहे।
मुन्ने की दादी को बुलाओ,
बाबा को उनकी माँ चाहिए।।

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