अमिताभ बच्चन एवं ऋषि कपूर अभिनित "वन ज़ीरो टू नॉट आउट" सिनेमाई पर्दे पर प्रदर्शित की जा रही है। गुजरात के प्रसिद्ध रंगकर्मी, कवि और लेखक सौम्य जोशी के प्ले "102 नॉट आउट" पर आधारित इस फिल्म का निर्देशन उमेश शुक्ला का है जो इससे पूर्व "ओह माई गॉड" जैसी रोचक फिल्म रच चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि यह फिल्म ऑस्ट्रेलियन रचना "दी मेन हू स्यूड गॉड" पर आधारित थी।
फिल्म "102 नॉट आउट" उसी कहानी को कहती नज़र आती है जिसे ऋषिकेश मुख़र्जी ने "आनंद" में और निखिल आडवाणी ने "कल हो ना हो" में कहने का प्रयास किया था।
सम्पूर्ण कहानी बेशक अलग है लेकिन जीवन जीने की कला सिखाने या जीवन खुलकर जीने की सलाह देने का काम तीनों ही फिल्मों ने किया है। राजकुमार हिरानी की "मुन्ना भाई" का एक सब-प्लाट इसी तर्ज़ का है।
फिल्म में अमिताभ बच्चन ऋषि कपूर से कहते नज़र आते हैं कि - "मैं मौत से पहले एक बार भी मरना नहीं चाहता"। गौरतलब है कि फिल्म "आनंद" में राजेश खन्ना का संवाद कुछ इसी तरह का है। वे कहते हैं की "यदि मरने के डर से जीना छोड़ दिया तो मौत किसका नाम है"। याद आता है रिग वेद का कथन "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" अर्थात सत्य एक है अलग-अलग ज्ञानी लोग उसकी व्याख्या मुख़्तलिफ़ तरीकों से करते हैं।
फिल्म दो-तीन परतों से मिलकर बनी है और इसकी एक परत राजेश खन्ना की ही फिल्म "अवतार" से मेल खाती है।
सिनेमा घूम-फिरकर एक ही कहानि भिन्न-भिन्न रोचक करीनों और पात्रों के माध्यम से कई बार कहता आया है और कहता रहेगा। काबिल-ए-गौर बात तो यह है कि आज ही के दिन फिल्म "पिकू" जिसका निर्देशन "अक्टूबर" जैसी कविता रचने वाले शूजित सिरकार ने किया था प्रदर्शित की गई थी। इस फिल्म में भी बच्चन साहब "बुज़ुर्ग" की भूमिका में थे लेकिन किरदार एकदम प्रथक था।
"102 नॉट आउट" के अमिताभ "पिकू" के अमिताभ के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकते हैं। "102 नॉट आउट" एक उल्लेखनीय, मज़ेदार, यादगार और मुतासिर करने वाली पिक्चर है।
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