Sunday, 20 May 2018

चाचा विधायक हैं हमारे।



1895 में पेरिस के एक सभागृह में अगस्त ल्युमिअर और लुइस ल्युमिअर नाम के दो भाइयों ने कुछ तस्वीरों को एक साथ जोड़कर उनका प्रदर्शन एक फिल्म के रूप में किया। इस ही घटना को वैश्विक सिनेमा की शुरुआत माना जाता है। अठारह सो नब्भे के दशक में शुरू हुआ ये माध्यम उन्नीस सौ दस के दशक में भारत पहुंचा।

अंग्रेज़ शासित भारत के बॉम्बे प्रांत में जन्मे धुंडिराज गोविन्द फाल्के जिन्हे पूरा मुल्क दादा साहब फाल्के के नाम से पहचानता है ने पहली भारतीय फिल्म "राजा हरिश्चंद्र" का निर्माण 1912 में किया, जिसका प्रदर्शन 1913 में मुंबई में किया गया। तफ्सील से पढ़ें तो पता चलता है की दादा साहब लीथोप्रिन्टिंग नाम की प्रक्रिया को सीखने के लिए जर्मनी गए थे। वहां से एकत्रित हुए अपने अनुभवों और साइलेंट फिल्म "दी लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट" से प्रभावित होकर उन्होंने भारत की पहली सिनेमाई संरचना तैयार की थी। ज्ञातव्य है की इससे पूर्व उन्होंने मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा के लिए भी काम किया था। इस ही राजा रवि वर्मा पर "रंगरसिया" नामक फिल्म का निर्माण भी हुआ था जिसमे रणदीप हुड्डा मुख्य भूमिका में थे। हालाँकि इस फिल्म ने दर्शक से ज़्यादा विवाद बटोरे थे।

1912 से लेकर अब तक भारत अनगिनत फिल्मों का निर्माण कर चुका है। आंकड़ों की माने तो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री हर साल कम से कम 1600 फिल्मों का निर्माण करती है। इसमें से आधी से ज़्यादा तो कभी रिलीज़ ही नहीं हो पातीं लेकिन फिर भी लेखक-निर्देशक रुकते नहीं। वे सतत, अनवरत कहानियां कहते रहते हैं। सवाल है की क्या ये कहानियां लोगों द्वारा सुनी भी जाती हैं या नहीं? कुछ सालों पहले तक इसका जवाब निश्चित ना था लेकिन आज ऐसा नहीं है। एकल सिनेमा-घरों और मल्टीप्लेक्सों के अलावा अब अमेज़न, नेटफ्लिक्स, एरोज़ नॉव, ऐ.एल.टी बालाजी आदि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं। इस माध्यम की शुरुआत यूट्यूब से हुई थी और आज लगभग हर बड़ा फिल्म निर्माता फिल्म-वितरण के इस क्षेत्र में उतरने को आतुर हैं। डिजिटल प्लेटफार्म के सक्रीय हो जाने से आए दिन निर्माता नए-नए वेब-शोज़ ला रहे हैं। एकता कपूर, विक्रम भट्ट और फरहान अख्तर जैसे जाने-माने नाम अब स्टोरी-टेलिंग के इस माध्यम में इन्वेस्ट कर रहे हैं।

वेब-शोज़ की इसी लय में अब एक और नाम जुड़ गया है। देश के नामी स्टेण्ड-अप कॉमेडीयन और परफ़ॉर्मर ज़ाकिर खान द्वारा तख़्लीक़ किया गया शो "चाचा विधायक हैं हमारे" युवाओं द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। शो की कहानी रॉनी नाम के एक बे-रोज़गार लड़के की है जो दिल्ली से आई.पी.एस की पढाई छोड़कर अपने शहर इंदौर लौट आया है। अपने क्षेत्र के एक विधायक का उपनाम उसके उपनाम के साथ मिलता है और इसलिए वह सबसे कहता फिरता है की उसके चाचा विधायक हैं। अपने ऊपर लगे इस टैग की वजह से वह अपने कई काम निकलवा लेता है और साथ ही कई लोगों की मदद भी करता है। रॉनी के इस सफर में उसका साथ देते हैं उसके दो दोस्त क्रान्ति(कुमार वरुण) और अनवर(व्योम शर्मा) इस कहानी के पैरेलल में रॉनी की प्रेम-कहानी भी चलती रहती है। जिसका डाला जाना आवश्यक रहा होगा। दरअसल प्रेम-कहानियों में भारतीय दर्शकों का मन लगा रहता है। ज़ाकिर खान से पहले उन्ही के पेशे से ताल्लुकात रखने वाले बिसवा कल्याण रथ और विपुल गोयल भी वेब शोज़ बना चुके हैं।

व्योम शर्मा, ज़ाकिर खान और कुमार वरुण के अलावा सिरीज़ में ज़ाकिर हुसैन और अलका अमिन जैसे नामी कलाकार भी हैं जो "सिंघम" और "शादी में ज़रूर आना" जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। सिरीज़ में अबीश मैथ्यू और अतुल खत्री जैसे पहचाने हुए स्टेण्ड अप कॉमेडियंस भी कैमियो करते नज़र आते हैं।

ज़ाकिर खान स्वयं इंदौर से आते है और इसलिए शहर की बातों, हरकतों और राजनीति से परिचित हैं। इंदौर में हर दूसरा आदमी किसी पॉलिटिशियन का भांजा, भतीजा, साला, काका आदि होत हि है। देश-प्रदेश के कई नामचीन नेता इंदौर की राजनीति से ही उभर कर सत्ता में आए हैं। शो में क्रिएट किये गए सीन्स एकदम लोकल फील देते हैं और दर्शक को बांधे रखते हैं। सिरीज़ का टाइटल ट्रैक पहले ही हिट हो चुका है और इसे खूब सराहा जा रहा है। गीत के बोल जाने-माने कवि और फिल्म मुक्काबाज के गीत लिख चुके हुसैन हैदरी के हैं और संगीत विशाल ददलानी का है। शो का पहला सीज़न हिट रहा है और दूसरे का इंतज़ार दर्शकों को बे-सब्री से है। अमेज़न प्राइम पर उपलब्ध इस शो को आप मेरी गारेंटी पर देख सकते हैं क्योंकि मेरी गारेंटी का मतलब है चाचा की गारेंटी। और चाचा हमारे विधायक हैं।

Keep Visiting!

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