Monday, 9 April 2018

चाँद आएगा।




पहले पूरी शिद्दत से एक मकाँ बनाएंगे।

फ़िर तेरी मुस्कानों से ही उसे सजाएंगे।।


पूरे दिल से जिस कोने में सर झुकाओगे।

मंदिर-मस्जिद छोड़ खुदा जी वहीँ आ जाएंगे।।


यहाँ मुन्तज़िर लोग हैं के चाँद आएगा।

वहाँ मुन्तज़िर चाँद है के लोग आएँगे।।


सहर, दोपहर, शाम, रात बस एक ही ख़्याल।

हमसे कौन निभा पाएगा? हम किसे निभाएंगे।।


हम को ज़ख़्मी करके जो भी बचना चाहते हैं।

एक दफ़ा खुद से ही पूछें - "बच पाएँगे?"


जिनकी ज़द में यार कभी जुगनू तक ना आया।

लोग वही तुमको ख्वाबों में, शम्स दिखाएंगे।।


आजकल के वक़्त के अहवाल ही क्या "प्रद्युम्न"।

उम्मीद है परवानों सेे की शमा जलाएंगे।।

Keep Visiting!

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