Sunday, 8 April 2018

सियासत नहीं चाहिए।



बेवजह बग़ावत?, नहीं चाहिए।

शायरी में सियासत?, नहीं चाहिए।।



सच कहने में तुमको लानत आती है?

लानत है! ऐसी लानत नहीं चाहिए।।



क्या मुनासिब है नेता का यह कहना,

के हमको शिकायत नहीं चाहिए।।



मुफ्लिस को तो रोटी दे दो मक्कारों।

कसम ख़ुदा की उसको दावत नहीं चाहिए।।



शर भी है इसमें और, आफ़त भी "प्रद्युम्न"।

मौला मेरे मुझे शराफ़त नहीं चाहिए।।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

चार फूल हैं। और दुनिया है | Documentary Review

मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...