Wednesday, 4 April 2018

दुनिया समझा रही है।



आज वो बहुत याद आ रही है।

पास है ही नहीं और दूर जा रही है।।


हम उसे रोज़ तकते हैं और वो,

कम्भख्त! हमे रोज़ ठुकरा रही है।।


हैं शिकस्त चाँद-ओ-महर जिसकी नुमूद से।

है लाज़िम के इतराए वो, इतरा रही है।।


रहमत थी उसकी, बिन कहे आई थी।

तग़ाफ़ुल है उसका, बिन कहे जा रही है।।


कभी इज़्ज़त से हमने माँ की नहीँ सुनी।

सो अब तबियत से दुनिया समझा रही है।।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...