क्या कर लिया है हाल अपना।
रहता नहीं कुछ ख़्याल अपना।।
परवाज़ तो हमेशा ख़ामोश ही रहा।
शोर मचा रहा है ज़वाल अपना।।
बदल जाएंगे कल से हालात अपने।
इस ही भरम में बीत गया साल अपना।।
उसने कहा के -"अपना गिरेबाँ देखो"।
हमने कहा के -"कमरा सँभाल अपना"
अब जाके दिया है जवाब तुमने,
जब हम भूल गये हैं सवाल अपना।।
हम-शायर के पहले सब शेर सुने।
फ़िर हमने भी दिखाया कमाल अपना।।
फ़िराक की तो कोई तफ़्सील ना मिली।
और तफ़्सीर मांग रहा है विसाल अपना।।
शेर कहेंगे और, गर दिल ने दी सदा।
बस यहीं तक था कलाम, फ़िलहाल अपना।।
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