Saturday, 21 April 2018

सूरज सम्भाल लेंगे।



कोई अच्छा मुगालता पाल लेंगे।


कुछ रोज़ इस शहर में निकाल लेंगे।।



चरागों से उनके तो हाथ जल गए,


जो कहते थे सूरज सम्भाल लेंगे।।




ढ़ाएगी कहर देखना पेट की आग।

भूखे बच्चे हाथों में मशाल लेंगे।।


मेरे मालिक, मेरे खालिक, ज़ुबाँ खोलिए।

आप कब तक और कितने सवाल लेंगे?


अपनी गुरबत पर मुफ़लिस अब मुस्कुराता है।

सहते रहने की और क्या मिसाल लेंगे।


लेना है आपसे बहुत कुछ मगर,


हम आपसे रुख़सत फिलहाल लेंगे।

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